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लेख - Page 3

  • शिवसेना : चेहरा - चाल - चरित्र

    मुंबई को भारत की आर्थिक राजधानी बनाने में वहाँ की कपड़ा मिलों की बहुत बड़ी भूमिका थी। मुंबई में सैकड़ों मिलें थीं, जिनमें लाखों मजदूरों को रोजगार मिला हुआ था। लेकिन मजदूर यूनियनों पर वामपंथियों का कब्जा था, जिसका मतलब था कि यहाँ लगातार हड़तालें होती रहती थीं, जिससे मिल-मालिक परेशान रहते थे। मिल-मालिकों...

  • इस्लाम बनाम अन्य : क्या इस्लाम दुनिया के लिए खतरा बन चुका है

    आज इस्लाम इंग्लैंड में दूसरा सबसे बड़ा धर्म बन गया है।यों तो अब भी इंग्लैंड में मुस्लिमों की आबादी कुल आबादी का 5 प्रतिशत है, लेकिन लंदन में मुस्लिमों की आबादी 12 प्रतिशत से अधिक है। लंदन बोरो के कई सबर्ब्स, ब्लैकबर्न, ब्रैडफ़र्ड जैसे इलाक़ों में यह आंकड़ा तो 25 से 35 प्रतिशत तक चला गया है यह बहुत बहुत...

  • ओह्ह दीवाली !! हाय पर्यावरण, हाय प्रदूषण

    दिल्ली की हवा में इतने सारे स्तरों पर और इतने अधिक कारणों से साल के 12 महीने, दिन के चौबीस घंटे इतना अधिक ज़हर घुल रहा है कि जिनके अंदर सोचने वाली नसें ज़िंदा हैं उनकी रूह अगली पीढ़ियों के भविष्य के बारे में सोच कर ही काँप जाती है। सबसे ज़्यादा आक्रोश जगाने वाली बात यह है कि हर साल, पूरे साल भर के 364...

  • सुनो मीलॉर्ड! हर भारतीय है राम का वंशज

    आदरणीय मीलॉर्ड क्या वैटिकन में जीसस के वंशजों की तलाश हुई थी कि वैटिकन को क्रिश्चियनिटी का केंद्रबिंदु बनाया जा सके? मक्का के काबा की पवित्रता को सुनिश्चित करने से पहले क्या नबी के वंशजों को ढूँढा था धर्म ने?हिन्दू धर्म पर सवाल संभवतः इसलिए किए जाते हैं क्योंकि हमारा धर्म आपको इतना स्पेस और सहूलियत...

  • इसी दिन से डरता है एक भागी हुई बेटी का बाप !!!

    भारत का एक सामान्य पिता बस इसी दिन से डरता है। वह न बेटी के प्रेम से डरता है, न जाति से डरता है, न गाँव से डरता है... वह अब समाज से भी नहीं डरता। वह डरता है तो बेटी को यूँ नोच लिए जाने से डरता है। वह डरता है तो ऐसे "अशरफों" से डरता है, "अजितेशों" से डरता है, "अफ़रोजों" से डरता है... कल तक जो लोग...

  • भागी हुई लड़कियों का बाप !!!

    भागी हुई लड़कियों का बाप !!! वह इस दुनिया का सबसे अधिक टूटा हुआ व्यक्ति होता है। पहले तो वह महीनों तक घर से निकलता नहीं है, और फिर जब निकलता है तो हमेशा सर झुका कर चलता है। अपने आस-पास मुस्कुराते हर चेहरों को देख कर उसे लगता है जैसे लोग उसी को देख कर हँस रहे हैं। वह जीवन भर किसी से तेज स्वर में बात...

  • इस पर विचार होना चाहिए कि कोई एक व्यक्ति "राष्ट्रपिता" कैसे हो सकता है ?

    साध्वी प्रज्ञा का "नाथूराम गोडसे" को देशभक्त बताने वाला बयान चर्चा में है। कांग्रेस के लोगों का विरोध तो स्वाभाविक ही है किंतु भाजपा के लोग भी इस विरोध में शरीक हो गए हैं। प्रेस भी अपनी पीपनी बजा रहा है अतः आवश्यक है कि इस पर चर्चा की जाए। 1947 में पूज्य मातृभूमि के विभाजन के तुरन्त बाद सबसे चर्चित...

  • मैं साध्वी प्रज्ञा के बयान का समर्थन करता हूँ!

    मैं साध्वी प्रज्ञा को कभी मन से माफ नहीं करूंगा: साहेब! और मुझे लगता है साध्वी प्रज्ञा जी अभी राजनीति के लिए अनफिट है। साध्वी प्रज्ञा ही क्यों मुझे आईपीएस किरण बेदी भी राजनीति के लिए अनफिट लगी थी और वो तो बेचारी चुनाव भी हार गई थी। हां किरण जी मेरी पसंदीदा प्रशासनिक अधिकारी है और निःसन्देह वो देश...

  • किताबों में नहीं हर देशभक्त के दिल में बसते हैं सावरकर

    स्वातंत्र्यवीर सावरकर का पूरा नाम विनायक दामोदर सावरकर था। 'नाम में क्या रखा है' वाली वाहियात फिलॉसपी और किसी के साथ भले चस्पां हो जाती हो पर ऐसा सावरकर के नाम के साथ कतई नहीं है। ऐसा इसलिए नहीं है क्योंकि वो सचमुच "विनायक" थे। हिन्दू ग्रंथों ने कहा है कि हर शुभ काम विनायक गणेश के नाम के साथ शुरू...

  • प्रोपेगंडा पत्रकारिता का काला चेहरा!

    प्रोपेगंडा पत्रकारिता का चेहरा देख लीजिये, स्याह काला होता है। एकदम खदान के कोयले के माफिक कालाअभी कुछ दिनों पहले रवीश कुमार जी अक्षय कुमार जी के प्रधानमंत्री जी के साथ वाले इंटरव्यू पर कमियां खंगाल रहे थे, कि रोशनी कम है। हालांकि सूर्य की रोशनी में इंटरव्यू लिया गया था। और छाया आ रही है, जबकि कुछ...

  • भरोसा बड़ी चीज़ है बाबू.... पहले तो होता नहीं और हो जाये तो आसानी से टूटता नहीं !!

    भरोसा बड़ी चीज़ है बाबू। पहले तो होता नहीं और हो जाये तो टूटता नहीं और हो के टूट जाये तो कभी जुड़ता नहीं। जहाँ भरोसा होता है न बाबू वहां जिंदगी बड़ी आसानी से निकल जाती है। बड़ी से बड़ी मुश्किलों के पहाड़ चूर हो जाते हैं। लेकिन भरोसा ऐसी चीज़ है बाबू कि होता नहीं है, आधों को तो खुद पे नहीं होता और...

  • विषैला वामपंथ - आर्थिक विकास का भ्रम और समाज के लिए ख़तरा

    केनेडी की हत्या के बाद अमेरिका के प्रेसिडेंट हुए लिंडन B जॉन्सन। उन्हें LBJ से भी पहचाना जाता है। अमेरिका में कृष्णवर्णियों के लिए अलग से वेल्फेयर की योजनाएँ उन्होंने शुरू की। क्या उनका उद्देश्य वाकई समाज कल्याण था? जॉन्सन के एक वाक्य को लेकर विवाद है, जो वाक्य इस काम की मूल प्रेरणा को अधोरेखित...

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