मैं साध्वी प्रज्ञा के बयान का समर्थन करता हूँ!
नेता अपने स्वार्थ के लिए और चुनाव जीतने के लिए या फिर स्टार कैम्पेनिंग के लिए साधु-संतों को टिकिट देते हैं। सेलेब्रिटीज़ को टिकिट देते हैं। नौकरशाहों अफसरशाहों को टिकिट देते हैं।
नेता अपने स्वार्थ के लिए और चुनाव जीतने के लिए या फिर स्टार कैम्पेनिंग के लिए साधु-संतों को टिकिट देते हैं। सेलेब्रिटीज़ को टिकिट देते हैं। नौकरशाहों अफसरशाहों को टिकिट देते हैं।
मैं साध्वी प्रज्ञा को कभी मन से माफ नहीं करूंगा: साहेब! और मुझे लगता है साध्वी प्रज्ञा जी अभी राजनीति के लिए अनफिट है।
साध्वी प्रज्ञा ही क्यों मुझे आईपीएस किरण बेदी भी राजनीति के लिए अनफिट लगी थी और वो तो बेचारी चुनाव भी हार गई थी। हां किरण जी मेरी पसंदीदा प्रशासनिक अधिकारी है और निःसन्देह वो देश की धाकड़ और तेज तर्रार प्रशासनिक अधिकारी रहीं हैं।
अपना-अपना प्रोफेशन छोड़ कर राजनीति जॉइन करने वाला हर शख्श मुझे राजनीति के लिए अनफिट ही लगता है। फिर चाहे वो साधु, संत, साध्वी, सन्यासी-सन्यासिन हो या फिर खिलाड़ी, अभिनेता, गीत/संगीतकार हो या फिर पूर्व सैनिक हो या पूर्व आईपीएस, आईएएस नौकरशाह, अफसरशाह हों।
एक प्राचीन कहावत है, जिसका कारज उसी को साजे।
राजनीति करना नेताओं का काम है। इसमें झूठ, छल, कपट, धोखा जैसे पैंतरे आजमाने पड़ते हैं। वोट मांगने से ले कर सत्ता में आने के बाद तक जनता को छकाना पड़ता है और विरोधियों को भी छकाना पड़ता है। झूठे वादे इरादे करने पड़ते हैं। इंसान को बेशर्म और ढीठ होना पड़ता है। चापलूस और निर्लज्ज होना पड़ता है। थूंकचट्टा होना पड़ता है। बेशर्म बेहया होना पड़ता है। दोगला तीगला चौगला होना पड़ता है। ऐसी लाखों खूबियां (गुण/दुर्गुण) जिस इंसान में जितनी ज्यादा मात्रा में हो वो उतना ही बड़ा और सफल राजनेता होता है।
यही नेता अपने स्वार्थ के लिए और चुनाव जीतने के लिए या फिर स्टार कैम्पेनिंग के लिए साधु-संतों को टिकिट देते हैं। सेलेब्रिटीज़ को टिकिट देते हैं। नौकरशाहों अफसरशाहों को टिकिट देते हैं।
अब जो बन्दा अपना हुनर और प्रोफेशन छोड़ के नया नया राजनीति में आया है उसे राजनीतिक उठापटक और छल प्रपंच क्या मालूम? वो तो अपनी विचारधारा ज्ञान और संस्कारों के अनुरूप और अपने आसपास के वातावरण या जीवंत अनुभव के अनुरूप ही बयान देगा।
मैं समझता हूं राजनीतिक दलों को तत्काल सेलेब्रिटीज़ साधु-सन्यासी और अफसरशाहों-नौकरशाहों को टिकिट देनी ही नहीं चाहिए बल्कि इनको 5 साल अपने दल/संगठन से जोड़ के उस संगठन/दल की विचारधारा के अनुरूप ढालना चाहिए। राजनीति का गहन प्रशिक्षण देना चाहिए, नेताओं और प्रवक्ताओं के सान्निध्य में रखना चाहिए और इस प्रक्रिया के बाद ही पास-आउट होने वालों को टिकिट देनी चाहिए।
साधु, संत, साध्वी, सन्यासी, सन्यासिन तो बेचारे वैसे भी निश्छल होते हैं। जो सत्य होता है या जो मन मे होता है उसे निश्छल भाव से बोल देते हैं। तो इसमें इनका क्या कसूर?
साध्वी प्रज्ञा का बयान एकदम सही था और साहेब भाजपा के 90% समर्थकों की भावना के अनुरूप ही था। हां टाइमिंग में थोड़ा उन्नीस बीस का फर्क हो सकता है।
मैं साध्वी जी के बयान का समर्थन करता हूँ!!!