इसी दिन से डरता है एक भागी हुई बेटी का बाप !!!

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भारत का एक सामान्य पिता बस इसी दिन से डरता है।

वह न बेटी के प्रेम से डरता है, न जाति से डरता है, न गाँव से डरता है... वह अब समाज से भी नहीं डरता। वह डरता है तो बेटी को यूँ नोच लिए जाने से डरता है। वह डरता है तो ऐसे "अशरफों" से डरता है, "अजितेशों" से डरता है, "अफ़रोजों" से डरता है...

कल तक जो लोग प्रेम की दुहाई दे कर "पिता" को विलेन सिद्ध कर रहे थे न, उनमें से कोई इस लड़की के शव को देखने भी नहीं जाएगा। इस उन्नीस वर्ष की लड़की के शव के साथ कोई खड़ा नहीं होगा। न अंजना हिरण्यकश्यप आएंगी, न कोई नारीवादी आएगा, न कोई प्रेमवादी आएगा। इसके लिए न कोई डिबेट होगी, न कोई बुद्धिजीवी आलेख लिखेगा। इस शव के लिए किसी की आँख में एक भी अश्रु नहीं हैं। इस लड़की की हत्या पर यदि कोई टूट कर रोया होगा तो केवल और केवल वही पिता रोया होगा, जिसके मुह पर थूक कर यह भाग गई थी। इस लड़की के साथ-साथ वह बाप भी थोड़ा सा मर गया होगा। बाप इसी मृत्यु से डरता है।

कई बार कहा है, फिर कह रहा हूँ! अपने आँगन की तुलसी को सम्भालिए। उसके लिए समय निकालिये। उसके मित्र बनिये। ऐसे मित्र, कि यदि उसे प्रेम भी हो तो वह सबसे पहले आप को बताए। यही पिता का कर्तव्य है।

बेटियाँ बहुत मासूम होती हैं। पोय की लताओं की तरह... गुलाब के फूल की तरह... उन्हें बताइये कि उनकी ओर बढ़ने वाला हर हाथ प्रेम का नहीं है, अधिकांश उन्हें नोचने के लिए बढ़ते हैं।

जानते हैं! कॉलेज में जब कोई नई सुन्दर लड़की घुसती है न, तो कॉलेज के आधे लड़के अपने दोस्तों को यही कहते पाए जाते हैं, "अबे चल साले! क्या मस्त माल आया है।" सुनने और स्वीकार करने में कष्ट होगा, पर दुर्भाग्य से यही हमारे समय का सच है। बेटियों को बताइये कि वे ऐसे ही कालखण्ड में जी रही हैं।

और हाँ! बेटों को भी बताइये कि लड़कियाँ 'माल' नहीं होतीं। लड़कियों का अनेक रूप होता है, और कुछ अपवादों को छोड़ दें तो वे हर रूप में पूज्य होती हैं। लड़की जब बहन होती है तो विवाह के वर्षों बाद भी मायके के भिखारी तक को प्रणाम करती है। सम्पति के लोभ में भाई भले भाई के विरुद्ध हो जाय, बहन नहीं होती। जब दो भाई धन के लिए आपस मे लड़ते हैं, तो केवल और केवल बहन ही होती है जो दोनों को साथ देखने के लिए अपना सारा सामर्थ्य झोंक देती है।

लड़की जब पत्नी होती है, तो एक ही झटके में अपना सर्वस्व छोड़ कर पति के सर्वस्व को स्वीकार करती है। उसके सम्बन्ध, उसके कर्तव्य, उसके दुख-सुख... सबको एक क्षण में अपना लेती है, और अपना सारा जीवन उन्हीं में न्योछावर कर देती है।

लड़की जब माँ होती है, तो क्या होती है यह लिखने का सामर्थ्य नहीं मेरे पास, बस इतना जानता हूँ कि मेरे आराध्य भगवान राम ने यदि किसी का पैर छुआ था तो केवल अपनी माँ का पैर छुआ था। लड़की जब माँ होती है तो वो होती है जिसके चरण भगवान कृष्ण छूते हैं। विश्व भले कहे कि मनुष्य को ईश्वर जन्म देता है, पर भौतिक सच्चाई यह है कि मनुष्य को स्त्री जन्म देती है। अपने बेटों को बताइये कि "स्त्री माँ होती है, माल नहीं होती"

हम सभ्यता के संक्रमण काल मे जी रहे हैं। हम उस समय में हैं जब समाचारपत्र का हर पृष्ठ किसी न किसी बेटी की हत्या की कहानी कहता है। ऐसे समय में पिता होना बड़ा कठिन है... बड़ा कठिन है पिता के कर्तव्य का पालन करना। बड़ा कठिन है अपने बच्चों में संस्कार के बीज डालना... पर डालना होगा मित्र! यही एकमात्र उपाय है। छोड़िये स्वतंत्रता के फिल्मी नारों को, वे सब फर्जी हैं। दूसरों की बेटी के लिए स्वतंत्रता माँगने वाली अंजना कश्यप अपनी बेटी को वोट देने तक साथ ले कर जाती है। अपने बच्चों के चारों ओर अपने प्रेम का सुरक्षा कवच बनाइये। नहीं तो कौन जाने किसी दिन के समाचारपत्र में.....

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सर्वेश तिवारी श्रीमुख की कलम से

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