इस पर विचार होना चाहिए कि कोई एक व्यक्ति "राष्ट्रपिता" कैसे हो सकता है ?

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इस पर विचार होना चाहिए कि कोई एक व्यक्ति "राष्ट्रपिता" कैसे हो सकता है ?

साध्वी प्रज्ञा का "नाथूराम गोडसे" को देशभक्त बताने वाला बयान चर्चा में है। कांग्रेस के लोगों का विरोध तो स्वाभाविक ही है किंतु भाजपा के लोग भी इस विरोध में शरीक हो गए हैं। प्रेस भी अपनी पीपनी बजा रहा है अतः आवश्यक है कि इस पर चर्चा की जाए।

1947 में पूज्य मातृभूमि के विभाजन के तुरन्त बाद सबसे चर्चित घटना गाँधी की मृत्यु है। यह बहुत अजीब बात है कि गाँधी के प्राणांत के बारे में देशवासी बहुत कम जानते हैं। बस एक रट सी लगी रहती है कि गाँधी को, हाय बापू को मार डाला गया। क्यों मारा गया, इस पर कोई चर्चा नहीं होती।

गाँधी को मारने वाले "नाथूराम गोडसे" ने न्यायालय में स्वयं वक्तव्य दे कर गाँधी वध के कारण बताए थे। यह बयान नेहरू सरकार ने 30 साल के लिये ऐसे प्रतिबंधित कर दिए थे जैसे कि यह देश/राज्य के परम गोपनीय प्रपत्र हों। जो बयान कोर्ट में पचासों लोगों की उपस्थिति में दिए गए हों, जिनके बारे में न्यायमूर्ति खोसला ने अपनी पुस्तक में लिखा हो "नाथूराम गोडसे के बयान समाप्त होने के बाद, महिलाएं हिचकियाँ ले कर रो रही थीं, पुरुष खाँसी के बहाने अपने आँसू छुपा रहे थे। मुझे इसमें ज़रा भी संदेह नहीं है कि श्रोताओं को ज्यूरी बना दिया जाता तो वो एक मत से नाथूराम गोडसे को बरी कर देते"।

अतः यहाँ यह प्रश्न अनिवार्य रूप से पूछने का है कि गाँधी के प्राण लेने वाले को देशद्रोही किस आधार पर कहा जा रहा है ? क्या गाँधी राष्ट्र या देश का पर्याय है ? कांग्रेस ने गाँधी को राजनैतिक लाभ के लिये "राष्ट्रपिता" कहा। जिस राष्ट्र के बाप भगवान राम, भगवान कृष्ण नहीं हैं उसके बाप गाँधी बनाये-बताए गए। देश में सभी कोंग्रेसी तो नहीं हैं, बहुत से लोग इसको ठीक नहीं मानते।

पुलिस हत्या के किसी केस की जाँच-पड़ताल करते समय सबसे पहले यह देखती है कि हत्या का हेतु क्या था ? हत्या से किसे लाभ होना था ? आप स्वयं सोचिये कि "नाथूराम गोडसे" की गाँधी से कोई दुश्मनी थी ? गाँधी ने "नाथूराम गोडसे" या नाना आप्टे के पैसे मारे थे ? उनकी ज़मीन दबा ली थी या गाँधी नाथूराम गोडसे अथवा नाना आप्टे के परिवार की किसी लड़की के साथ ब्रह्मचर्य के प्रयोग कर रहे थे जो इन लोगों ने गाँधी मारा ?

हत्या बहुत बड़ा काम है। दूसरे के प्राण जाने के साथ अपने प्राण भी संकट में आ जाते हैं। बरसों मुक़दमा झेलने, आजीवन कारावास या फाँसी का संकट खड़ा हो जाता है ? वो कैसे लोग थे जिन्होंने क़ानून मंत्री अम्बेडकर जी के सज़ा को आजीवन कारावास में बदलने के प्रयास करने तक से मना कर दिया ? उनके बयान "गाँधी वध क्यों" पुस्तक में उपलब्ध हैं। जिसमें वध के कारणों पर विस्तार से चर्चा की गई है।

किसी के प्राण लेना पाप है तो ऊधम सिंह, चंद्र शेखर आज़ाद, भगत सिंह, बटुकेश्वर दत्त, राम प्रसाद बिस्मिल, अशफ़ाक़ उल्लाह आदि सभी इसी श्रेणी में आ जायेंगे। किसी भी कार्य के पीछे उसके कारण से ही पाप-पुण्य तय होता है।

साध्वी प्रज्ञा ने अपने बयान के बाद प्रेस, कांग्रेसियों, कुछ भाजपाइयों के दबाव में स्पष्टीकरण दिया है। भगवती कुछ शब्द आपसे कहना चाहता हूं। आप ने जेल में भयानक पीड़ा सही हैं। आपको इन दुष्टों ने बहुत कष्ट दिए हैं अतः आपका दबाव में आ जाना क्षम्य है मगर ध्यान रखिएगा यदि नैरेटिव बदलना है तो विषय पर डटना पड़ेगा। प्रेस बहुधा मूर्खों से नहीं तो अविद्वानों से भरा पड़ा है। यह सम्पादक जो कहता है, वही लिखते हैं। इनके दबाव में मत आइये।

कांग्रेसियों ने गाँधी वध के बाद सिम्पैथी वेव उपजाई और उसका लाभ लिया। स्वाभाविक है कि वो काँय-काँय करेंगे मगर आप जैसी तेजस्वनी विदुषी का जन्म सत्य के पथ पर डटे रहने के लिये हुआ है।

नई पीढ़ी तक गाँधी वध के सत्य को पहुँचाने का माध्यम बनिए। आपके स्वर में स्वर मिलाने वाले भी बड़ी सँख्या में हैं।

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