विषैला वामपंथ - आर्थिक विकास का भ्रम और समाज के लिए ख़तरा

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लेकिन इन सभी का उद्देश्य एक ही होता है, देश के पाँवों में एक सांकल बांध देना जिसको तोड़ना लोकतन्त्र में किसी के लिए भी असंभव बन जाता है

केनेडी की हत्या के बाद अमेरिका के प्रेसिडेंट हुए लिंडन B जॉन्सन। उन्हें LBJ से भी पहचाना जाता है। अमेरिका में कृष्णवर्णियों के लिए अलग से वेल्फेयर की योजनाएँ उन्होंने शुरू की।

क्या उनका उद्देश्य वाकई समाज कल्याण था? जॉन्सन के एक वाक्य को लेकर विवाद है, जो वाक्य इस काम की मूल प्रेरणा को अधोरेखित करता है। क्या है यह वाक्य ?

'I'll Have Those N*****s Voting Democratic for 200 Years'

सभी हायतौबा एक अलग बात पर है कि जॉन्सन ने कृष्णवर्णियों को निगर कहा था या नहीं, क्योंकि आज की अमेरिका में यह शब्द का उच्चारण गुनाह है। वैसे यह शब्द आया है नीग्रो से, जो स्पेनिश और पोर्तुगीज मूल का है और उसका अर्थ ब्लॅक ही होता है।

अस्तु, इस बातपर अलग से, अब LBJ के वाक्य पर गौर करें।

उसका अर्थ होता है - फिर तो अगले 200 वर्ष इन लोगों का वोट (अपनी) डेमोक्रेटिक (पार्टी) को मिलता रहेगा।

ऐसा हुआ तो नहीं, बल्कि यह वोट बिकाऊ बना तथा चुनावी ब्लॅकमेल का साधन बन गया। वेल्फेयर के पैसे नेता अपनी जेब से देता तो नहीं और न ही अपनी पार्टी के सभासदों से कोई फंड खड़ा कर के देता है। और इनके लाभार्थी तो देने के पोजीशन में आए तो भी लेना नहीं छोड़ते। देश के गले में परमानेंट बोझ बांधकर ऐसे नेता चले जाते हैं।

ये तो मैं अमेरिका की बात कर रहा था, लेकिन आप जानते ही हैं कि कौवा हर जगह काला ही होता है।

जॉन्सन का कार्यकाल 1963 से 1969 रहा।

सामान्यत: विश्व के सब से पुराने और समृद्ध लोकतन्त्र USA के साथ वामपंथी प्रयोग किये जाते रहे हैं, परिणाम जाँचकर विश्व के सब से बड़े लोकतन्त्र भारत में समय-समय पर छोटे बड़े किश्तों में लागू किया जाते रहे है। जिज्ञासु अपने देश में हुए प्रयोगों की टाइम लाईन जांच सकते हैं।

लेकिन इन सभी का उद्देश्य एक ही होता है, देश के पाँवों में एक सांकल बांध देना जिसको तोड़ना लोकतन्त्र में किसी के लिए भी असंभव बन जाता है। अधिक से अधिक इतना ही कर सकते हैं कि लोगों को आत्मनिर्भरता के लिए प्रेरित करें।

असल में वामपंथ के लिए लोकतन्त्र दोनों बाजुओं से बजनेवाला ढोलक है। ढोलक लिखा है, आप अपनी रुचि का वाद्य मान लीजिये। मृदंग, पखवाज़, खोल, ढ़ोल.... मुझे कोई समस्या नहीं। यहाँ आप को एक बात को समझना होगा कि इन वाद्यों में दोनों बाजुओं के ध्वनि अलग-अलग होते हैं। एक स्वर दूसरे के प्रमाण में तीखा या तेज होता है, दूसरा फ्लॅट होता है। इन वाद्यों में बजाने के लिए जो चमड़ा तना होता है, उसपर बजाने से पहले गीले आटे का लेपन करना होता है। आप को यह पता नहीं हो तो किसी भी जानकार से कनफर्म करा सकते हैं।

तो मित्रों, वामी के लिए लोकतन्त्र एक ढोलक सा होता है, कभी एक बाजू बजाता है तो कभी दूसरी। एक को मुफ्त में दिलाता है तो वहीं दूसरी को चेताता है कि यह आप से वसूलकर दिया जा रहा है। असल में लोगों को बहुत बड़ी गलतफहमी होती है कि देश इन्कम टैक्स पर चलता है। ऐसा बिलकुल नहीं है, लेकिन इसे मुफ्तखोरी का समर्थन न माना जाये। मैं केवल एक वामपंथी रणनीति से अवगत करा रहा हूँ। एक बाजू कहती है कि नहीं देने देंगे और दूसरी बाजू कहती है कि छीनकर लेंगे - कलहजीवी वामपंथियों को इससे अलग क्या चाहिए ? वो बड़े तबीयत से बजाते रहेंगे, आटा लागते रहेंगे और दोनों पक्षों को कहते रहेंगे कि आटा खत्म हो रहा है, लगाया नहीं तो तेरी बाजू बजेगी नहीं, आटा ले आ जल्दी से कहीं से भी - केजरिया की चंदे की अपील सुनी ही होगी ?

हालांकि जिन्हें वे मुफ्त दे रहे हैं इन्हें वे कभी यह नहीं कहेंगे कि कमाने के अवसर दे रहे हैं, आओ कमाओ, कोई लिमिट नहीं है। इनका खेल जिस दिन पूरा समझ में आयेगा, ढोलक के दोनों बाजुओं की जनता खुद इन्हें हर चौक चौराहे पर लटका देगी। और ये कभी समझ में ना आए इसीलिए ये शिक्षा, मीडिया पर कब्जा कर बैठे हैं जिनके द्वारा देश की सिस्टम तथा नयी पीढ़ी की अवचेतना को कंट्रोल कर रहे हैं।

लेकिन इनकी भी घड़ी आएगी, हम रहे या न रहे, अपना योगदान दे कर जायेंगे ताकि हम नहीं तो कोई बात नहीं, आनेवाली पीढ़ियों के लोग इन्हें लटकाएंगे जरूर। आज तक देश के पाँव में बेडी और गले में फांस बन कर रहे हैं ये वामपंथी।

लिखने को बहुत है लेकिन विषयांतर हो जायेगा, अलग से लिखेंगे हम सभी। आप भी लिखें। और जो लिख नहीं सकते वे इस जानकारी को शेयर करें।

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