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साहित्य - Page 8

  • और मुशरिक (बहुदेववादी) स्त्रियों से विवाह न करों जब तक की वे ईमान न लाएँ- (सूराह : अल-बक़रा : 221)

    तन्वी सेठ प्रकरण के पीछे चाहे जो राजनीति, कूटनीति या विश्वनीति रही हो, भारतीय परिप्रेक्ष्य में उसका एक ज़रूरी सामाजिक संदर्भ भी है, जिसकी अनदेखी नहीं की जा सकती है।यह है "इंटरफ़ेथ मैरिजेस" का मसला।भारत में हिंदुओं के शादी-ब्याह सम्बंधी मामलों के लिए "हिंदू मैरिज एक्ट 1955" है और मुस्लिमों...

  • बाईबल और वामियों के चंगुल से निकलता भारतीय इतिहास

    साक्ष्य मिल रहे हैं, फिर शोध से क्यों डरते हैं इतिहासकार? इतिहासकारों का मानना है कि केवल वस्तुओं का मिलना ही इतिहास नहीं होता, इतिहास होने का प्रमाण नहीं होता, बल्कि उन्हें सैद्धांतिक प्रश्न (theoretical question) से गुजरना होता है, जो दार्शनिक तौर पर उस वस्तु का पक्ष रख सकें, बचाव कर सकें, उसकी...

  • लंगड़ा: आमों का रस-राज

    दुनिया फ़ानी है, दुनिया की लज़्ज़तें फ़ानी हैं, आज हैं कल नहीं। इस बयान का सबसे बड़ा इश्तेहार लंगड़ा आम है। "पानी केरा बुदबुदा, अस लंगड़े की जात।" कि ये चला-चली की बेला का फल है. आया नहीं कि गया. देरी से आता है, जल्दी जाता है! साहब, लंगड़े का यही हिसाब है। कि आज वह कच्ची कैरी है, कल पका फल बन जाएगा,...

  • लोकतंत्र का इफ़्तार, बाकी सब बेकार

    यह परंपराओं का देश रहा है। प्रकृति-प्रेम, आदर्श-रिश्ते, परिवार, त्योहार सभी के लिए उत्सव की परम्परा रही है। और जबसे यह देश धर्म-निरपेक्ष लोकतंत्र हुआ, तब से तो कितनी ही स्वस्थ परम्पराएं इससे जुड़ गईं।आतिथ्य की परंपरा सर्वोपरि है इस देश में। अपने अतिथि का उचित सम्मान, अपने आस-पड़ोस के लोगों की चिंता...

  • इन्हें सेकुयलरिज़्म के दलाल कहें या हिज़ाब के ग़ुलाम?

    शाब्बाश, सौम्या! 2015 में तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा भारत में गणतंत्र दिवस की परेड अटेंड करने आए थे। परेड के बाद एक स्पीच में उन्होंने भारत को बहुसंस्कृतिवाद का पाठ सिखाने की कोशिश की और सहिष्णुता पर लेक्चर दिया।तभी रियाद से ख़बर आई कि शाह अब्दुल्लाह मर गया है। महत्वपूर्ण स्ट्रैटेजिक...

  • मोदी हत्या की साजिश: सत्ता लोलुपों का छद्म सेकुलरवाद बेनकाब

    प्रधानमंत्री की हत्या की साज़िशें न रचिए, शहीद मोदी की जन-स्मृतियाँ और ज़्यादा तीक्ष्ण, जीवन्त और शाश्वत होंगी।विश्व भर की सभ्यताओं में "राजनैतिक हत्याएँ" होती रही हैं। सत्ता की महत्वकांक्षा जघन्य अपराध और साज़िशें करवाती आई है जिससे कोई भी साम्राज्य या लोकतंत्र अछूता नहीं रहा है। स्वतंत्रता के तुरंत...

  • प्रयाग V/s अल्लाहबाद : फ़र्क तो पड़ता है साहब, नाम से ही तो सब-कुछ है

    फ़र्क तो पड़ता है साहब, नाम से ही तो सब-कुछ है! फ़र्क नहीं पड़ता तो बुरा क्यों लग गया। प्रयाग हो या अल्लाहबाद, नाम ही तो है।शायद इसलिए कि अल्लाह को कृष्ण और कृष्ण को अल्लाह नहीं कहा जा सकता। कबीर भी नहीं कह सके, और उन्हें भी पंडित और मुल्ला कहना पड़ गया। ईश्वर एक है भी, तो नाम तो अलग हैं और नाम ही...

  • प्रिय, सुज़न्ना अरुंधती रॉय के नाम खुला पत्र

    हम भारतीय आपके बिना बेहतर कर सकते हैं! इन सभी वर्षों में हम इस तथ्य के आदी हो चुके हैं कि आपको "ध्यान की असमानता" पसंद नहीं है, लेकिन हम पहले से ही आपको बहुत आवश्यक ध्यान देते-देते थक चुके हैं। प्रेम, करुणा और देखभाल से भरी "घोर मानववादी" होने के आपके सभी दावों और घोषणाओं के बावजूद, मुझे यह बताना...

  • इस्लाम और आतंकवाद : पहले मुर्ग़ी आई या अंडा ?

    यह संसार का सबसे बड़ा यक्ष प्रश्न है। आइये, इस प्रश्न का उत्तर तलाशने की कोशिश करते हैं। श्रीनगर में CRPF की गाड़ी से कुचलकर एक रोज़ेदार आतंकवादी मारा गया ! पहले मुर्ग़ी आई या अंडा ? पहला प्रश्न - CRPF की गाड़ी चलकर आतंकवादी के पास गई थी या आतंकवादी चलकर CRPF की गाड़ी के पास आया था ? जवाब है...

  • श्रीमद्भागवत गीता का समयकाल

    श्रीमद्भागवत गीता भारतीय चिंतन के सार-तत्व को समझने का सबसे अच्छा स्रोत है। 2 पंक्तियों के कुल 700 श्लोकों की इस छोटी-सी पुस्तिका ने भारतीय मानस को सबसे अधिक प्रभावित किया है और इसे सदा ही सर्वमान्य आध्यात्मिक शास्त्र का स्थान दिया गया है। भारत के सभी प्रमुख चिंतकों ने गीता के संदेश को किसी न किसी...

  • बंगाल की कलंक-कथा

    बंगाल में पिछले दिनों जो हुआ, उस पर किसको अचरज है? केवल उन्हीं को, जो इतिहास से अनजान हैं। क्योंकि तथ्यक तो यही है कि बंगाल अगर जल रहा है तो कौन-सी नई बात है? बंगाल से ही तो इस पूरे फ़साद की शुरुआत हुई थी! बंगाल ही तो मुस्लिम लीग का गढ़ था ! बंगाल से ही तो बंटवारे की विषबेल पनपी थी! सांस्कृीतिक...

  • शिया मुस्लिम और भारत

    एक दिन पहले (26/05/18) जब मैंने इस आशय की एक, किंचित विवादास्पद और प्रोवोकेटिव, पोस्ट लिखी कि वर्तमान सत्तारूढ़ सरकार को 2019 के लोकसभा चुनाव में यह निश्चय कर लेना चाहिए कि उसे "आतंकवाद" के वोट नहीं चाहिए और उसे ध्रुवीकरण पर अपना ध्यान केंद्रित करना चाहिए, तो उस पर अनेक भली-बुरी प्रतिक्रियाएं आईं।...

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