इस्लाम और आतंकवाद : पहले मुर्ग़ी आई या अंडा ?

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यह संसार का सबसे बड़ा यक्ष प्रश्न है। आइये, इस प्रश्न का उत्तर तलाशने की कोशिश करते हैं।

श्रीनगर में CRPF की गाड़ी से कुचलकर एक रोज़ेदार आतंकवादी मारा गया !

पहले मुर्ग़ी आई या अंडा ?

पहला प्रश्न - CRPF की गाड़ी चलकर आतंकवादी के पास गई थी या आतंकवादी चलकर CRPF की गाड़ी के पास आया था ?

जवाब है CRPF की गाड़ी उस तरह से, उस मक़सद से भीड़ में नहीं घुसी थी, जैसे कि यूरोप के देशों में इस्लामिक आतंकवाद द्वारा इन दिनों लोगों को कुचलकर मार दिया जाता है।

इसके उलट, माहे-रमज़ान में, जंग-ए-बद्र की 624वीं सालगिरह के पाक मौक़े पर, वह भीड़ ही दौड़कर, तत्परता से CRPF की गाड़ी के पास आई थी, जिसमें से एक आतंकवादी ने उसके पहियों के नीचे आने में क़ामयाबी पाई और अपने साथियों के रश्क़ का बायस बना।

अब दूसरा प्रश्न- वे आतंकवादी उस गाड़ी के पास क्यों जाना चाहते थे? उत्तर, क्योंकि वे उस पर हमला करना चाहते थे।

तीसरा प्रश्न- लेकिन वे उस पर हमला क्यों करना चाहते थे? उत्तर, क्योंकि वे उससे नफ़रत करते हैं।

चौथा प्रश्न- लेकिन वे उससे नफ़रत क्यों करते हैं? उत्तर, क्योंकि हिंदुस्तान की फ़ौज ने घाटी में अफ़स्पा क़ानून लगा रखा है और विशाल भारद्वाज की फ़िल्म "हैदर" के मुताबिक़ हिंदुस्तान की फ़ौज घाटी की अवाम पर ज़ुल्म करती है।

फ़िल्म में दिखाया गया था ना कि किस तरह से फ़ौज ने एक चिकित्सक के घर को तोप से उड़ा दिया था, जबकि उसका क़सूर इतना ही तो था कि उसने चंद दहशतगर्दों को अपने घर में पनाह दी थी।

ठीक, अच्छी बात है।

अब अगला प्रश्न यह कि अफ़स्पा क़ानून गुजरात में क्यों नहीं है, मध्यप्रदेश में क्यों नहीं है, राजस्थान में क्यों नहीं है, उत्तरप्रदेश में क्यों नहीं है, केवल कश्मीर में क्यों है? उत्तर, आप भी कैसी नादानी भरी बातें करते हैं? इन राज्यों में अफ़स्पा क़ानून लागू क्यों होगा, यहां पर सीमापार आतंकवाद थोड़े ना है? हम्म।

आख़िरी सवाल, लेकिन कश्मीर में ही सीमापार आतंक क्यों है, भारत विरोधी सेंटीमेंट्स क्यों हैं, और दहशत के जनाज़े में मरदूदों का हुजूम कश्मीर में ही क्यों उमड़ता है?

जनाब, इसका उत्तर तो सबसे सरल है। अरे, एक कश्मीर घाटी ही तो भारत का ऐसा प्रांत है, जहाँ मुस्लिम बहुसंख्या में हैं!

मुझको लगता है अपनी "मुर्ग़ी अंडा डायलेक्टिक" में अब हम मुर्ग़ी की पूंछ पकड़ने में क़ामयाब हो गए हैं!

अब चंद फटाफट सवाल-

जो लोग कश्मीर में पत्थर बरसाते हैं, हिंदुस्तान को गालियां बकते हैं, पाकिस्तान के झंडे लहराते हैं, पाकिस्तान की जीत का जश्न मनाते हैं और आतंकवाद को बढ़ावा देते हैं, वे क्या चाहते हैं?

मसलन, जो आतंकवादी रमज़ान के माहे-मुक़द्दस के मौक़े पर CRPF की जीप के नीचे कुचलकर दोज़ख़ को कूच कर गया, उसकी रूह से अगर पूछा जाए कि तुम ऐसा क्यों कर रहे थे, तो वह क्या जवाब देगा?

यही ना कि हमें आज़ादी चाहिए। हमें हिंदुस्तान से आज़ादी चाहिए। फ़ाइन!

तिस पर अगर उसको यह बतलाया जाए कि हिंदुस्तान से आज़ादी मिलने के बाद हिंदुस्तान के कॉन्स्टिट्यूशन से भी आज़ादी मिल जाएगी और हिंदुस्तान के कॉन्स्टिट्यूशन से आज़ादी मिल गई तो धारा 370 और धारा 35A की ऐय्याशी भी ख़त्म हो जाएगी, एंड कश्मीर विल नो लॉन्गर हैव अ स्पेशल स्टेटस एंड इट विल बिकम अ वल्नरेबल टेरेटरी, तब क्या दोज़ख़ के लिए अपनी अटैची तैयार कर रहा वह आतंकी दाढ़ी खुजाते हुए यह सोचने को मजबूर नहीं हो जाएगा कि मेरे ज़ेहन में कहीं सुअर की लीद तो नहीं भरी है!

इस मौक़े का फ़ायदा उठाकर अब आप अगला सवाल पूछ सकते हैं-

अगर आपको हिंदुस्तान से आज़ादी मिल गई, तो आप एक वैसा "ख़ुदमुख़्तार" मुल्क बनेंगे, जैसा पीओके है? या आप पाकिस्तान में विलय पसंद करेंगे, जहाँ ग़ुरबत है? या आप ग़रीब की जोरू की तरह चीन या रूस की लौंडी बनना चाहेंगे, जो रोज़ेदारों पर कोड़े बरसाते हैं?

अब मैं CRPF के हाथों शहीद हुए मुसलमान नौजवान के चेहरे पर हवाइयां उड़ते देख सकता हूं!

चूँकि रमज़ान के क़ायदे मुझ पर लागू नहीं होते, इसलिए ज़ुल्म में कोई भी कोताही बरतने से इनकार करते हुए अब मैं उससे यह पूछता हूं कि-

अगर मुस्लिम बहुसंख्या की वजह से आप भारत से अलगाव चाहते हैं तो क्या हम यह मान लें कि जहाँ-जहाँ मुस्लिम बहुसंख्या होगी, वहाँ-वहाँ भारत से अलगाव के मनसूबे होंगे?
कश्मीर में जनमत संग्रह जब होगा तब होगा, एक हाइपोथेटिकल रेफ़रेंडम तो भारत के मुस्लिमों से इसी सवाल पर किया जाना चाहिए कि आबादी के संतुलन में बढ़त हासिल करने के बाद वे अपने लिए पृथक से पाकिस्तान मांगेंगे या जहाँ वो रहते हैं वहीं पर एक पत्थरबाज़ पाकिस्तान बनाना पसंद करेंगे?

किस मुँह से वो मरहूम इसका जवाब देगा? और देगा तो हिंदुस्तान के दूसरे सूबों में माइनोरिटी के फ़र्ज़ी स्टेटस के साथ चुनावी लामबंदी करने के उसके भाइयों के जो मनसूबे हैं, उनका क्या होगा?

एक बहुत बड़ी भूल 1947 में हुई थी।

उसका एक बहुत ख़ूबसूरत जवाब बहुत बाद में मोरारजी देसाई ने दिया था।

जब पाकिस्तान की तत्कालीन हुक़ूमत ने उलाहना देते हुए कहा था कि कश्मीर को हमें दे दीजिए तो मोरारजी देसाई ने कहा था कि हमें आपको कश्मीर देने से कोई ऐतराज़ नहीं है, लेकिन "इस बार" आपको भारत की समूची मुस्लिम आबादी को भी अपने साथ ले जाना होगा!

"इस बार"! जो 1947 में ही हो जाना चाहिए था, लेकिन नहीं हो पाया था, वह "इस बार"। अबकी बार!

पंजाब... बंगाल... कश्मीर!

एक-एक कर, एक एक सूबे में मुस्लिम आबादी बढ़ने के साथ किश्तों में हिंदुस्तान टूटता रहे, उससे बेहतर तो यही था कि जब 47 में क़ायदे से बंटवारा हो ही रहा था तो एकमुश्त आबादी का भी पूर्ण बंटवारा हो जाता।

पिंड छूटता। बीमारी ख़त्म होती! चैन की सांस लेते!

लेकिन, वैसा होना तो दूर, चमत्कार तो यह था कि बंटवारे के समय जितने मुसलमान पाकिस्तान में गए थे, उससे ज़्यादा भारत में रह गए, और आज भी पाकिस्तान से ज़्यादा मुस्लिम आबादी भारत में है!

बहुत ख़ूब!

जो बोये पेड़ इस्लाम का तो अमन कहां से होय?

मेरा मानना है अभी हम इस सवाल के जवाब के बहुत नज़दीक़ पहुंच गए हैं कि पहले मुर्ग़ी आई या अंडा।

दूसरे शब्दों में, पहले इस्लाम आया या आतंकवाद?

रमजान के मुक़द्दस मौक़े पर तोहफ़ों का जो सबसे ख़ूबसूरत गुलदस्ता हिंदुस्तान कश्मीर को दे सकता है, उसमें मुबारक़बाद की ये तक़रीर लिखी होगी--

कोई रेफ़रेंडम नहीं होगा!

कोई आज़ादी नहीं मिलेगी!

धारा 370 ख़त्म होगी!

कश्मीर भारतीय मुख्यधारा का हिस्सा बनेगा!

कश्मीर में दूसरे प्रांतों के लोग आकर संपत्तियां ख़रीदेंगे, वहां रहेंगे और वहां की जनसांख्यिकी में "मनुष्यता" का संतुलन बढ़ेगा!

वैसा नहीं होने की स्थिति में--

कश्मीर पर आपातकाल लगाया जाएगा!

वहां निर्वाचन प्रक्रिया समाप्त कर दी जाएगी!

दिल्ली से उसको चलाया जाएगा!

अफ़स्पा को और सख़्त किया जाएगा और फ़ौज के हाथ और मज़बूत किए जाएंगे।

जो पत्थर उछालेगा, वह जेल जाएगा और ज़रूरत पड़ने पर पूरे कश्मीर को ही जेल बना दिया जाएगा!

क्योंकि यही कश्मीर ने चाहा था, शिशुपाल की तरह उसको हिंदुस्तान ने सौ मौक़े पहले ही दे दिए थे। सौ बार माफ़ कर दिया था!

रमज़ान मुबारक़ ! शैतान हाफ़िज़ !

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