सत्यानासी (भाग -2)
कम्युनिस्ट आन्दोलन की विफलता साम्यवाद की विफलता नहीं है, न ही यह मार्क्सवाद की व्यर्थता का प्रमाण है। यह उन असावधानियों की देन है, जिनमें से कुछ कम्युनिस्ट मैनिफेस्टो में भी दिखाई देती हैं। अपनी विफलता के बाद भी कम्युनिस्ट आन्दोलन ने, विशेषत: रूसी क्रान्ति ने, केवल सोवियत संघ को ही नहीं, उससे प्ररित...
Bhagwan Singh | 6 Feb 2018 4:15 PM ISTRead More
सत्यानासी (भाग -1)
मैंने बचपन में यह नाम नहीं सुना था। भारतीय कृषि और वानिकी को चौपट करके खाद्यान्न के मामले में परनिर्भर बनाने के कुछ विश्वासघाती उपक्रम किसी देश द्वारा किए गए। इसी का परिणाम था कुछ वनस्पतियों का बहुत कम समय में भारत के सुदूर कोनों में फैल जाना। इनका नामकरण यदि पारिभाषिक शब्दावली तैयार करने वाली...
Bhagwan Singh | 3 Feb 2018 12:15 PM ISTRead More
भारतभक्ति का दूसरा नमूना
भारतभक्ति के लिए जिस दूसरे प्राच्यवादी को याद किया जाता रहा है वह हैं मैक्स मुलर। उन्होंने यदि ऋग्वेद और अन्य पवित्र ग्रन्थों का ब्राह्मणों के चंगुल से उद्धार न किया होता तो मै ऋग्वेद पर बात करना तो दूर, उसकी प्रति तक का दर्शन नहीं कर सकता था। मैं इसके लिए उनका ऋणी हूं। हमारे पुरातन ज्ञान को...
Bhagwan Singh | 21 Dec 2017 11:30 AM ISTRead More
मनोरंजन के लिए ही सही
• हम वर्ण व्यवस्था को नहीं समझते से तुम्हारा क्या मतलब था? क्या सोलह वेदों की तरह सोलह वर्ण भी बनाने का इरादा है?" नहीं समझते ही नही समझना तक नहीं चाहते क्योंकि राजनीत के लिए नासमझी अधिक जरूरी है। समझ बाधक है। समझ से जोश ठंडा पड़ जाता है। समस्या के समाधान के लिए समझ की ज़रूरत होती है।...
Bhagwan Singh | 19 Dec 2017 2:09 PM ISTRead More
संस्कृत भाषियों का देश और जोंस की महिमा
विलियम जोंस को शोध नहीं करना था। उनके सामने सब कुछ तय था। न होता तो उन भाषाओं को जिनके विषय में उन्हें कुछ पता न था, एक ही आदि भाषा से व्युत्पन्न न मान लेते। उदाहरण के लिए चीनी और अरबी। यदि हम उनके सभी व्याख्यानों को ध्यान से पढ़ें तो पाएंगे कि उनको यूरोप मे अपने पदों पर काम करते हुए...
Bhagwan Singh | 17 Dec 2017 10:00 PM ISTRead More
इंडोफीलिया का उपचार
"जहर का उतार जहर है" तो अपनी इंडोफीलिया से मुक्ति के लिए भारतीयों में यूरोफीलिया पैदा करना। इंडोफोबिया से मुक्त होने के लिए भारतीयों के मन में यूरोफोबिया पैदा करना। यदि भारत में काम करने वाले कंपनी के गोरे कर्मचारियों की विवशता यह थी कि उन्हें भारतीय भाषाएं सीखनी पड़ती थीं और इसके कारण वे भारतीयों...
Bhagwan Singh | 16 Dec 2017 10:45 PM ISTRead More
मलबे के मालिक
शीर्षक तो मोहन राकेश की कहानी का है और मालिक के रूप में उस पर बैठे प्राणी से अधिक भिन्न दशा मानविकी के क्षेत्र में हमारी नहीं है।,हमारा प्राचीन ज्ञान नष्ट करके मलबे में बदला जा चुका है और नया ज्ञान उन्ही से प्राप्त होने के कारण जिन्होंने पुराने ज्ञान को मलबे में बदला, विषाक्त है, जिसने राष्ट्रीय...
Bhagwan Singh | 15 Dec 2017 6:52 PM ISTRead More
विलियम जोंस से सर विलियम जोन्स का सफर (2)
हम यह समझ लें कि यह इंडोफीलिया (भारत रति) या इंडोफोबिया (भारत भीति) थी क्या तो यह समझने में कुछ मदद मिलेगी किस एकजुटता से यूरोप और अमेरिका के सभी विद्वानों ने इसे उलट कर भारतीयों के मन में यूरोफीलिया और यूरोफोबिया में बदलने के लिए कितना दुर्धर्ष प्रयत्न किया और किन हथकंडों का प्रयोग बिना संकोच के...
Bhagwan Singh | 14 Dec 2017 9:30 PM ISTRead More
इतिहास भूत है, पकड़ लेगा
मुझे याद नहीं कौन था, पर था अमेरिकन, जिसने आपसी परिचय के क्रम में, यह जानकर कि मै प्राचीन भारत के इतिहास का अध्येता हूं प्रश्न किया था, Why Indians are so obsessed with history? (भारत के लोगो पर इतिहास का भूत क्यों सवार रहता है?) मैने उससे पूछा था, Why Americans have no courage to face their own...
Bhagwan Singh | 13 Dec 2017 7:19 PM ISTRead More
'बे-सर' विलियम जोंस से 'सर' विलियम जोन्स का सफर (1)
विलियम जोंस का जज के रूप में चयन कंपनी ने किस आधार पर किया था, यह हमें नहीं मालूम। यह मालूम है कि उन्हें सर की उपाधि भारत में किये गए कामों के पुरस्कार के रूप में ही मिला था। क्या था वह काम? जज के रूप में उनके फैसलों के लिए उनका नाम नहीं लिया जाता। उनकी कीर्ति उनके द्वारा एशियाटिक सोसायटी आफ बंगाल...
Bhagwan Singh | 13 Dec 2017 1:02 PM ISTRead More
विलियम जोन्स हों या मैक्समुलर ये हमारा काम कर रहे थे या अपना?
जिन दो प्राच्यविदों को प्राचीन भारतीय सभ्यता के प्रति सबसे अधिक संवेदनशील माना जाता है वे हैं विलियम जोन्स और मैक्समुलर। इन दोनों के बीच आते हैं मिल जिनको प्राचीन भारत की सभी उपलब्धियों की अपयाख्या करते हुए उससे अधिक क्रूरता से ध्वस्त करते देखा जा सकता है जितनी क्रूरता से मध्यकाल में मन्दिरों और...
Bhagwan Singh | 11 Dec 2017 11:00 PM ISTRead More
हम अपना काम समझे हैं, वे अपना काम करते हैं
भारत में ऐसे दस पांच पश्चिमी विद्वान कई रूपों में सक्रिय मिल जाएंगे जो हिन्दुत्व से इतना अधिक प्यार करते हैं कि हिन्दुत्व प्रेमी संगठन तक उनसे मार्गदर्शन लेते हैं। इनमें से एक को वाजपेयी दौर में पद्मभूषित किया गया था और वर्तमान मोदी सरकार में इतिहास अनुसंधान परिषद की सलाहकार समिति में भी स्थान दिया...
Bhagwan Singh | 10 Dec 2017 11:30 PM ISTRead More