सत्यानासी (भाग -2)
हमारी चिन्ता में यह अवश्य शामिल है कि “भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी का चरित्र दुनिया के दूसरे सभी देशों की कम्युनिस्ट पार्टियों से विपरीत क्यों रहा”? मन में यह सवाल अवश्य पैदा होता है कि इसने सांप्रदायिक चरित्र क्यों अपना लिया? इसके सामाजिक और सांस्कृतिक कार्यभार “हिन्दू समाज तक सीमित क्यों रहे और वे भी इसकी जड़ें खोदने तक सीमित क्यों रहे”?


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हमारी चिन्ता में यह अवश्य शामिल है कि “भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी का चरित्र दुनिया के दूसरे सभी देशों की कम्युनिस्ट पार्टियों से विपरीत क्यों रहा”? मन में यह सवाल अवश्य पैदा होता है कि इसने सांप्रदायिक चरित्र क्यों अपना लिया? इसके सामाजिक और सांस्कृतिक कार्यभार “हिन्दू समाज तक सीमित क्यों रहे और वे भी इसकी जड़ें खोदने तक सीमित क्यों रहे”?
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