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लोरियों से खुश थे हम, बस लोरियां सुनते रहे
इस बात को समझने में कठिनाई होगी कि जिन्हें हम प्राच्यवादी कहते हैं वे भारत को समझना नहीं चाहते थे, भारत की टोह लेना चाहते थे। यह टोह कुछ वैसी थी जैसे सेना शत्रुपक्ष की टोह लेती है। इरादा बचाने और बढ़ाने का नहीं होता, तोड़ने और मिटाने का, लूटने और अधिक से अधिक समेटने और लेकर भागने का रहता...
Bhagwan Singh | 9 Dec 2017 9:49 PM ISTRead More