न्यायपालिका : बहुसंख्यक समुदाय पर टेढ़ी नज़र ??

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न्यायपालिका : बहुसंख्यक समुदाय पर टेढ़ी नज़र ??
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कल के पटाखों को लेकर कई विचार हो सकते हैं। पर सच तो यही है कि पटाखों को आप प्रतिबंध लगाकर नहीं रोक सकते हैं। रोक तो जागरूकता से ही लगेगी।

मगर जब तक यह भावना बलवती रहेगी कि एक ही धर्म पर कानून अत्याचार कर रहा है, न तो पटाखे चलने बंद होंगे और न ही आप इतने व्यापक पैमाने पर रोक पाएंगे। लोग जब देखते हैं कि न केवल नेताओं बल्कि न्यायपालिका भी बहुसंख्यक समुदाय को आदेश देने में तत्पर है तो जो विद्रोह की भावना पैदा होती है उसे रोकना संभव नहीं है।

कई वर्ष पहले की बात है तब मैं थोडा बहुत लिखने का प्रयास करती थी। उन दिनों इस्लामी आतंकवाद बहुत ही चरम पर था। मैने एक रचना लिखी जिसमें आतंकवाद से पीडित एक बच्चे की कहानी थी और एक पत्रिका में भेजी जो अपने धर्मविरोधी स्वंर का प्रचार करती थी। संपादक महोदय ने मेरी रचना वापस भेज दी और कहा कि आप क्या बात करती हैं आप सरकारी सहायता बंद कराएंगी क्या ? मुझे लगा कि वह धर्म की बुराई वाली कोई कहानी नहीं छापते होंगे। खैर मेरा मन लेखन में आगे जाने का था नहीं तो वह किस्सा आया गया हो गया।

कुछ वर्षों के उपरांत उस लघु पत्रिका का एक और अंक सामने आया तो मैं हैरान थी कि कांवड पर ऐसी कहानी प्रकाशित हुई थी जो आस्थावान कांवड पर भी प्रश्नचिन्ह लगा रही थी। और मैं चकित सी खडी थी आखिर क्यों ?

मेरा आशय बार-बार यही होता है कि आप जब तक बहुसंख्यक समुदाय को निशाना बनाने को प्रगतिशीलता समझते रहेंगे तो एक समय ऐसा आएगा कि वह समुदाय अपने मूल सहिष्णु गुण को त्याग देगा।

साहित्य लोक को साथ लेकर चलता है, वह उसे बार-बार कोसता नहीं है बल्कि वह लोक की खूबियों व खामियों को तौल कर कुछ नया बनाने का प्रयास करता है। आप राम को कोसेंगे, सीता के साथ हुए अन्याोय के बहाने पूरी की पूरी परंपरा को ही खारिज करने का प्रयास करेंगे तो सवाल तो उठेगा ही कि आप आखिर क्यों लिख रहे हैं। भारत का मानस अभी भी सुबह राम राम ही करता है। बदलाव की प्रक्रिया तेज नहीं होती, वह धीमी होती है, आप उस पर ऊपरी रूप से प्रतिबंध लगाएंगे तो वह रूप बदल लेगा।

लोगों के मन में यह धारणा बहुत ही तेजी से बलवती हो रही है कि अल्प संख्यकों पर रहम हो रहा है और बहुसंख्यकों पर चुन-चुन कर निशाना लगाया जा रहा है।

प्रगतिशीलता का अर्थ मात्र इस देश के बहुसंख्यक का विरोध ही बन कर न रह जाए इस बात को भी ध्यान में रखना होगा। बाकी पटाखों वाले फरमान को तो लेकर सब खुश हैं ही। भक्तों को कोसने वाले पत्रकार, पत्रकारों को कोसने वाले भक्ते। खुशी हर तरफ है।

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