"श्रीमद्भगवद्गीता" की प्रामाणिकता तर्कानुतर्क अकाट्य है
वास्तव में "गीता" को साहित्यिक चोरी कह कर उन्होंने अपना उपहास स्वयं किया है। वे स्वयं में सोचें कि बौद्ध धर्म का मूल "अनात्मवाद है, प्रतीत्यसमुत्पाद है" और गीता का मूल "आत्मवाद" है। तिस पर भी वे दोनों का साम्य देख लेते हैं। इसे हास्यास्पद कहें, या सनातन का अंध विरोध कहें।


X
वास्तव में "गीता" को साहित्यिक चोरी कह कर उन्होंने अपना उपहास स्वयं किया है। वे स्वयं में सोचें कि बौद्ध धर्म का मूल "अनात्मवाद है, प्रतीत्यसमुत्पाद है" और गीता का मूल "आत्मवाद" है। तिस पर भी वे दोनों का साम्य देख लेते हैं। इसे हास्यास्पद कहें, या सनातन का अंध विरोध कहें।
0
Tags: #श्रीमद्भगवद्गीता#गीता#सौन्दरनन्द#बौद्ध जातक#अश्वघोष#कालिदास#महाभारत#गीतारहस्य#पतंजलि योग#पाणिनि#बुद्धचरित#बौद्धायन#बौद्धधर्म