सारिका श्रीवास्तव ने उनकी 'नकली डॉक्टर' की पहचान का पर्दाफ़ाश करने वाले मि॰ अनिल वर्मा पर लगाए निराधार आरोप

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जैसा कि samachar24x7 द्वारा 25 सितंबर को "दिल्ली - कोरोना प्रोटोकॉल तोड़ते हुये 'नकली डॉक्टर ?' द्वारा मंदिर परिसर में आँखों के कैंप का आयोजन, सवाल उठाए जाने पर कैंप बंद करके भागे" शीर्षक से एक समाचार प्रकाशित किया था।

इस समाचार में दिल्ली की जामा मस्जिद क्षेत्र के छिपपीवाड़ा स्थित राधा कृष्ण मंदिर में वहीं की एक क्षेत्रीय महिला 'सारिका श्रीवास्तव' द्वारा आयोजित आँखों के कैंप में घटित घटनाक्रम का जिक्र था।

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जिसमें बताया गया था कि मि॰ अनिल वर्मा (प्रमुख संपादक samachar24x7 ग्रुप) द्वारा सामाजिक हित में किस प्रकार वहाँ 'सारिका श्रीवास्तव' के आँखों का 'नकली डॉक्टर' होने का पर्दाफाश किया गया था।


जबकि वहाँ अपने झूठ का पर्दाफाश होने से बौखलाई हुईं 'सारिका श्रीवास्तव' एवं उनके सहयोगियों द्वारा मि॰ वर्मा के साथ जबर्दस्त धक्का-मुक्की एवं बदतमीजी भी की गई थी। लेकिन सामाजिक हित का ध्यान रखते हुये मि॰ वर्मा ने उस सारे अपमान को झेला और घटनास्थल पर ही डट कर सारिका श्रीवास्तव के चेहरे से 'डॉक्टर' होने का झूठा नकाब जनता के समाने ही उतार दिया था। जिसके बाद मंदिर प्रशासन ने सारिका श्रीवास्तव का वो कैंप बीच में ही बंद करा दिया था और वो वहाँ से लगभग 12:30PM पर चली गईं थी।

मि॰ वर्मा भी अपनी टीम के साथ कैंप स्थल से ये सोचकर वापस आ गए कि अब शायद सारिका श्रीवास्तव को अपनी गलती समझ में आ जाए और वो अपने नाम के साथ 'डॉक्टर' होने की झूठी पहचान लगाना छोड़कर आगे से लोगों को अपनी सही पहचान ही बताएँगी!!

लेकिन ये मि॰ वर्मा की गलतफहमी ही सिद्ध हुई, क्योंकि जो सारिका श्रीवास्तव कैंप स्थल पर अपनी डॉक्टर पहचान को प्रमाणित नहीं कर पाईं थी वो वहाँ से सीधा जामा मस्जिद क्षेत्र के पुलिस स्टेशन पहुँच गईं थीं, और वहाँ जाकर 'सारिका' ने मि॰ वर्मा के विरूद्ध शिकायत दी कि मि॰ वर्मा ने उनके साथ कैंप स्थल पर हाथापाई और गाली - गलौज की है। अपनी शिकायत में बताए गए झूठे और बनावटी तथ्यों के आधार पर उन्होंने मि॰ वर्मा के खिलाफ पुलिस को पूरी तरह गुमराह करने की कोशिश की थी।

उनकी शिकायत के आधार ओर पुलिस ने तुरंत ही मि॰ वर्मा को थाने आने के लिए कॉल किया जिसके बाद लगभग 2:30PM पर वो अपनी पत्नी के साथ जामा मस्जिद थाने पहुँचे।


जैसे ही अनिल वर्मा थाने में गए तो उन्हें एक मानसिक झटका लगा क्योंकि प्रथमदृष्ट्या पुलिस अधिकारियों ने उनके साथ ऐसा व्यवहार किया जैसा किसी अपराधी के साथ किया जाता है, क्योंकि तब तक उन अधिकारियों को सिर्फ सारिका द्वारा बताए गए एक तरफ के आधे - अधूरे बनावटी तथ्यों की ही जानकारी थी।

लेकिन जब मि॰ वर्मा से अधिकारियों ने बात की और samachar24x7 की टीम द्वारा बनाई गई 37 मिनट 30 सेकेंड की वो वीडियो रिकार्डिंग भी दिखाई जो इस पूरे घटनाक्रम के दौरान कैंप स्थल पर बनाई गई थी। वीडियो को देखकर पुलिस अधिकारियों के सामने सारिका द्वारा फैलाये गए झूठ से पर्दा हट गया था। क्योंकि सारिका का कहना था कि मि॰ वर्मा द्वारा उनके हाथ पर खरोचें मारी गईं हैं जबकि वीडियो में साफ दिखाई दे रहा था कि जब वो लगभग 12:36PM पर कैंप स्थल से गईं थीं तो उनके दोनों हाथ एक दम साफ दिखाई दे रहे हैं उन पर किसी भी प्रकार के कोई निशान नहीं हैं

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लेकिन हमारे कानून द्वारा महिलाओं को दिये गए कुछ विशेष अधिकारों के कारण (जिसका आजकल की कुछ महिलाएं पुरुषों के विरूद्ध गलत फायदा उठा रही हैं) शायद वो थोड़े मजबूर नज़र आए!!

मि॰ वर्मा के थाने बुलाये जाने की खबर सुनकर उनके कुछ जानकार थाने पहुँच गए थे। उन सभी ने अपने ही क्षेत्र का मामला जानकर उसे आगे बढ़ाने से रोकने के लिए सारिका श्रीवास्तव को समझने की बहुत कोशिश की, कि वो इस प्रकार के झूठे आरोप मि॰ वर्मा पर ना लगाएँ! इसके अलावा मि॰ वर्मा ने भी महिला की इज्ज़त का मामला समझते हुये बात को आगे बढ़ाना उचित नहीं समझा और इसी कारण उन्होंने थाने में सभी के समाने सारिका से कई बार यहाँ तक कह दिया कि "एक 'नकली डॉक्टर' होने के आरोप के अतिरिक्त, हर वो शब्द वापस लेने को तैयार हैं जो सारिका को अपशब्द लग रहा हो अगर उन्हें ऐसा लगता है कि वहाँ हुई धक्का-मुक्की में गलती से हाथ लग गया है तो मि॰ वर्मा सॉरी बोलने को तैयार हैं"।


लेकिन सारिका श्रीवास्तव उस समय किसी की भी कोई भी बात सुनने या मानने को तैयार नहीं थीं। उनके हाव-भाव से ऐसा लग रहा था कि जैसे कोई अन्य व्यक्ति सारिका के कंधे पर बंदूक रखकर अपना उल्लू सीधा कर रहा हो और मि॰ वर्मा या उनकी पत्नी (जो जामा मस्जिद क्षेत्र से भाजपा की निगम प्रत्याशी रह चुकी हैं और वर्तमान में वहाँ से मण्डल अध्यक्ष हैं) अपनी कोई निजी दुश्मनी निकाल रहा हो??

क्योंकि सबसे बड़ी तो बात ये थी कि मि॰ वर्मा और उनकी पत्नी की बेदाग छवि के कारण सारिका के परिवार वाले (पति, ससुर आदि) भी सारिका का साथ देने के लिए थाने नहीं आए थे!! हाँ उन्होंने फोन पर ही सारिका को समझाने की बहुत कोशिश की थी कि वो किसी भी प्रकार के झूठे केस करने के चक्कर में ना पड़े, लेकिन सारिका ने अपने परिवार की बातों को भी नहीं माना और वो पुलिस अधिकारियों के पीछे इसी बात को लेकर पड़ी रहीं की उसकी शिकायत के आधार पर केस बनाए एवं मि॰ वर्मा को अरेस्ट करके जेल भेजें!!

लेकिन वीडियो रिकार्डिंग सामने आने के बाद से अपनी निष्पक्ष ज़िम्मेदारी समझते हुये पुलिस अधिकारी ऐसा नहीं कर पा रहे थे, लेकिन दूसरी तरफ कानून द्वारा महिलाओं को दिये गए कुछ अवांछित अधिकार उन्हें सारिका के अनुसार कार्य करने को भी विवश कर रहे थे!!

आखिर 4:30PM पर अधिकारियों ने सारिका की मेडिकल जाँच कराने के लिए उन्हें लोक नायक अस्पताल भेजा जहाँ से लगभग 6PM वो वापस आईं तब तक मि॰ वर्मा अपनी पत्नी सहित थाने में ही मानसिक तनाव के साथ बैठे रहे, क्योंकि सारे साक्ष्य उनके पक्ष में होने के बाद भी एक महिला की झूठी शिकायत पर (जो कानून की कमजोरी का फायदा उठा रही थी) उनके ऊपर गिरफ्तारी की तलवार लटकी हुई थी। सारिका की मेडिकल जाँच में ना तो कुछ आना था और ना ही कुछ आया!!

कानूनन तो सारिका श्रीवास्तव को अपने ऊपर 'नकली डॉक्टर' ना होने के प्रमाण प्रस्तुत करने चाहिए थे, लेकिन वो प्रमाण उसके पास नहीं थे क्योंकि वो डॉक्टर की झूठी पहचान के आधार पर ही लोगों को और यहाँ तक की देश की सबसे बड़ी पार्टी "भाजपा' को भी धोखा दे रही थी!!

अपने चेहरे से झूठ का नकाब उतरता देखकर ही वो और उसके कुछ आका (जिनकी शायद आशा वर्मा से राजनीतिक टेंशन हो) मि॰ वर्मा को अपना आसान शिकार समझकर उन्हें किसी भी प्रकार जेल कराना चाह रहे थे।

लगभग रात के 7 बजे थाना प्रभारी ने सारिका श्रीवास्तव सहित मि॰ वर्मा एवं उनकी पत्नी को अपने सामने बुलाया और दोनों से ही पूरे मामले की वास्तविकता जाननी चाहिए, उनके सामने भी मि॰ वर्मा ने ये ही कहा कि "अगर मैंने इनके लिए कोई भी अपशब्द कहा हो या किसी भी प्रकार की गलत हरकत की हो तो समझिए कि मैंने अपनी बहन के साथ की हो एवं अगर किसी भी प्रकार ये सिद्ध हो जाता है (जो कि सिद्ध होना असंभव है) तो जो भी सज़ा कानून देना चाहे वो भुगतने को तैयार हैं।

इसके बाद थाना प्रभारी महोदय ने कुछ सवाल अपने उन अधिकारियों से भी किए जिन्होंने वो वीडियो रिकार्डिंग देखी थी और फिर किसी निकर्ष पर पहुँचते हुये कहा कि अभी वो दोनों ही वहाँ से जाएँ और आगे केस की जाँच के आधार पर जब आवश्यकता होगी तो बुलाया जाएगा।

लेकिन थाना प्रभारी महोदय की ये बातें सुनकर सारिका श्रीवास्तव बौखला गई और उसे मि॰ वर्मा को जेल भेजने की अपनी चाल फेल होती नज़र आई, इस कारण वो उसी समय मामले को आगे DCP और CP तक ले जाने की बातें कहने लगीं। रात के लगभग 8 बजे तक सारिका ने बहुत कोशिश की कि किसी भी प्रकार येन-केन-प्रकारेण मि॰ वर्मा को जेल हो जाए। लेकिन वो इस कार्य में सफल नही हो पाईं और अपने घर चली गईं।

उसके बाद लगभग रात के 10:30 बजे तक पुलिस अधिकारी कुछ कानूनी कागजी कार्यवाही पूरी करते रहे और फिर मि॰ वर्मा से एक सादा पेपर पर लिखवाया गया कि जब भी पुलिस या कोर्ट उन्हें बुलाएँगे तो उन्हें आना पड़ेगा, इसके बाद लगभग 8 घंटे तक मानसिक तनाव झेलते हुये थाने में रहने के बाद रात के 10:30 बजे उन्हें घर आने दिया।


हम ये सारा मामला जनता के सामने लेकर इसलिए आए हैं कि जनता देखे और फैसला करे कि 'क्या समाज के हित में किसी झूठ से पर्दा हटाना इतना बड़ा अपराध है कि कानून द्वारा महिलाओं को दिये गए अधिकारों की कमजोरी का फायदा उठाकर कोई 'फ़्राड महिला' किसी पुरूष की पूरी ज़िंदगी को बर्बाद करने के लिए अपना हथियार बना ले??

क्या किसी के पास इसका जबाब है कि अगर हमारे पास रिकार्डिंग किया हुआ वीडियो नहीं होता तो इस महिला और इसके आकाओं ने मि॰ अनिल वर्मा की ज़िंदगी का क्या हाल किया होता??

क्या किसी के पास इसका जबाब है कि महिलाओं की सुरक्षा के लिए जो अधिकार कानून ने उन्हें दिया है तो जब वो उस अधिकार का गलत फायदा उठाती हैं तो ऐसी महिलाओं को कानूनन क्या सज़ा मिलनी चाहिए??

माना कि कानून ने महिलाओं को अधिकार दिया है तो पुरूष को अपनी बात कहने या सफाई रखने का अधिकार क्यों नहीं दिया, अगर किसी पुरूष के पास स्वयं को निर्दोष प्रमाणित करने के साक्ष्य ना हों और वो ऐसी महिलाओं के चंगुल में फस जाए तो.....?

सवाल तो और भी बहुत हैं जिन पर कानून के निर्माताओं को बैठकर अवश्य विचार करना चाहिए, किसी को भी दिये गए अधिकारों का मतलब निर्बाध/सीमा रहित नहीं होना चाहिए.....

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