केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, मध्यप्रदेश के संभावित सीएम...?

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केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, मध्यप्रदेश के संभावित सीएम...?
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केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, मध्यप्रदेश के संभावित सीएम...?

केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर को भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व द्वारा मुरैना जिले के दिमनी से उम्मीदवार बनाया गया है, इसी के साथ उन्हें मुरैना जिले की अन्य विधानसभा सीटों की भी जिम्मेदारी दी गई है। इसी सिलसिले में २२ ओक्टुबर को उन्होंने अपने संसदीय क्षेत्र की अम्बाह विधानसभा सीट का दौरा किया।

तोमर उन तीन केंद्रीय मंत्रियों में शामिल हैं, जिन्हें मुख्यमंत्री पद के लिए कई संभावित चेहरों को आगे करके सत्ता विरोधी लहर का मुकाबला करने और कांग्रेस के कब्जे वाली सीटों पर कब्जा करने के लिए दिग्गजों का इस्तेमाल करने की भाजपा की रणनीति के तहत विधानसभा चुनावों में मैदान में उतारा गया है।

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अगर बीजेपी चुनाव जीतती है तो तोमर को सीएम की कुर्सी के लिए सबसे आगे माना जा रहा है। वह पार्टी अभियान समिति के प्रमुख भी हैं और जाहिर तौर पर उनके हाथ में बहुत कुछ है और वह मध्य प्रदेश और दिल्ली के बीच और मध्य प्रदेश की सड़कों पर मीलों का सफर तय कर रहे हैं।

अम्बाह विधानसभा सीट से भाजपा नेतृत्व ने उस सीट से वर्त्तमान विधायक कमलेश जाटव पर ही दॉव खेला है. कमलेश जाटव २००८ का चुनाव भी भाजपा के टिकट पर जीत चुके हैं लेकिन फिर २०१८ में उन्होंने कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा कर जीत दर्ज की थी। २०२० में मध्य प्रदेश में उत्पन्न हुए राजनीतिक संकट के समय वो सिंधिया का समर्थन करते हुए एक बार फिर भाजपा में शामिल हो गए थे और अपने ही इस्तीफे से खाली हुई सीट पर हुए उपचुनाव में bjp के प्रत्याशी के रूप में लगभग १३ हजार वोटों से दोबारा जीत दर्ज की थी।

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दिमनी, जहाँ से इस बार भाजपा के नरेंद्र सिंह तोमर को विधान सभा प्रत्याशी बनाकर उतारा है वो भी इस अम्बाह सीट के साथ ही है, हालाँकि नाम घोषित होने से लेकर अभी तक वे अपने विधानसभा क्षेत्र में नहीं गए हैं जिस कारण क्षेत्र के लोगों में थोड़ी नाराज़गी है।

नरेंद्र सिंह तोमर यहाँ से सांसद है जिस कारण यहाँ की अन्य सीटों पर भाजपा प्रत्याशियों को मज़बूत करने की जिम्मेदारी भी उनके ही कन्धों पर है. यहाँ तक कि स्थानीय भाजपा नेताओं का कहना है कि उन्हें जीतने के लिए दिमनी में प्रचार करने की अधिक ज़रूरत नहीं है, उनसके ऊपर राज्य में कहीं और अधिक जिम्मेदारियाँ हैं।

तोमर 26 सितंबर को 39 उम्मीदवारों की दूसरी सूची में नामित दिग्गजों में से एक थे।

तोमर ने सूची या अपनी उम्मीदवारी पर कुछ अधिक नहीं कहा है। पिछले एक पखवाड़े में उन्होंने कई बार ग्वालियर (दिमनी से 60 किमी) और यहां तक कि मुरैना जिले के कई इलाकों जैसे पोरसा, अंबा और सबलगढ़ का दौरा किया है, लेकिन दिमनी का नहीं।

जबकि भाजपा इस बात पर जोर दे रही है कि तोमर के अभी तक दिमनी का दौरा नहीं करने का कोई मतलब नहीं निकाला जाना चाहिए, राजनीतिक पर्यवेक्षकों के एक वर्ग का मानना है कि वह उस सीट से उम्मीदवार बनाए जाने से नाराज हैं जिसे कांग्रेस ने 2018 और 2020 के उपचुनावों में जीता था, जिसमें 49% और फिर 55% वोट मिले थे।

मुरैना के एक स्थानीय भाजपा नेता ने कहा, "दिमनी मुख्य रूप से एक ग्रामीण निर्वाचन क्षेत्र है, जिसमें 200 से अधिक गांव शामिल हैं। यहां चुनाव प्रचार करना एक कठिन काम है। तोमर साहब के पास करने के लिए अन्य महत्वपूर्ण काम हैं। इसलिए, दिमनी में प्रचार का जिम्मा उनके बेटे द्वारा उठाया जा रहा है।" यह सच है कि तोमर और दलितों का निर्वाचन क्षेत्र में निर्णायक प्रभाव है, लेकिन यह सुझाव देना कि सभी तोमर नरेंद्र सिंह तोमर को वोट देंगे, शायद सही नहीं होगा क्योंकि तोमर वोट भी विभाजित हो सकते हैं।''

दिमनी 2008 तक एससी-आरक्षित सीट थी। मुरैना नेता ने कहा, "अगर जरूरत पड़ी तो अभियान के अंत में समुदाय का समर्थन हासिल करने के लिए तोमरों की एक पंचायत आयोजित की जा सकती है।"

भाजपा ने आखिरी बार दिमनी 2008 में जीती थी। 2013 में बसपा ने इसे छीन लिया और 2018 में कांग्रेस के गिर्राज दंडोतिया ने जीत हासिल की।

दंडोतिया 18,000 से अधिक वोटों से जीते, लेकिन मार्च 2020 में वह ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ भाजपा में चले गए। उस वर्ष के अंत में उपचुनाव में, भाजपा ने दंडोतिया को मैदान में उतारा, लेकिन कांग्रेस के रवींद्र सिंह तोमर भिड़ोसा ने उन्हें 26,000 से अधिक वोटों से हरा दिया।

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