Mob-Lynching ? अल्लाह की ऊंटनी की जान के बदले पूरी कौम का खात्मा - सूरा अल-आराफ़

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अरब के हिजाज और सीरिया के दरमियानी इलाके में इस्लाम के जुहूर से काफी पहले समूद नाम की जाति रहा करती थी। कुरआन में इस जाति के बारे में कहा गया है कि ये लोग अरबों की वो कौमें थी जो मिट गई, नष्ट हो गई, हलाक कर दी गई। कुरआन में कई स्थानों पर इस जाति का ज़िक्र आया है। सूरा 7 अल - आराफ़ की आयात 73 से 79 एवं सूरा 11 हूद की आयात 61 से 68 में जिक्र है कि समूद की ओर एक नबी भेजे गये थे जिनका नाम था "सालेह"।

जैसा कि कुरान बाकी नबियों के बारे में कहता है वैसा ही उसने सालेह के बारे में भी कहा है कि उन्होंने अपनी कौम को तौहीद की ओर बुलाया और कहा, तुम लोग एक ईश्वर को छोड़ के किसी और की इबादत न करना और इस याददिहानी के लिये अल्लाह ने अपनी एक निशानी धरती पर भेजी है। वो निशानी एक ऊँटनी और उसका एक बच्चा था। इब्ने-कसीर की तफ्सीर में आता है कि उस ऊँटनी और उसके बच्चे को अल्लाह ने अपनी निशानी बनाते हुये एक पर्वत से निकाला था।

खैर, तौहीद की याददिहानी के रूप में जब वो ऊँटनी आई तो उसे सामने कर सालेह ने अपनी कौम से कहा, ये दोनों ऊँटनी अल्लाह की ओर से एक चमत्कार है तो इसे उसकी जमीन पर चरने दो और कोई इसे न छेड़ना और न ही किसी बुरे ख्याल से भी हाथ लगाना। अगर तुम लोगों ने ऐसा किया तो अल्लाह तुमको अज़ाब में डाल देगा। सालेह ने ये भी कहा कि अब से नियम है कि तालाब से एक दिन तुम लोगों की ऊँटनियाँ पानी पियेगी और एक दिन केवल ये दोनों ऊंटनियाँ। अब वो दोनों ऊँटनियाँ मिलकर इतना पानी पी जाती कि किसी के लिये कुछ बचता ही नहीं तो नाराज़ होकर एक दिन समूद जाति वालों ने मिलकर दोनों ऊँटनियों को मार डाला।

इससे सालेह नाराज़ हो गये और अल्लाह से दुआ कर कहा कि इस कौम को अज़ाब में डाल दो और उसके बाद उन दो पशुओं के मारे जाने के एवज में एक-एक कर और चुन चुन कर वो पूरी कौम हलाक कर दी गई और उस कौम का एक नामलेवा भी न बचा।

ये कहानी आपकी (मुस्लिमों) ही किताबों से है, जहाँ एक ऊँटनी के लिये एक पूरी कौम को अज़ाब में डालकर नष्ट करने की बात है वो भी महज इस आधार पर कि वो ऊँटनी अल्लाह की निशानी थी और उसे मारने वाला शख्स खुदा और उसके नबी को पसंद नहीं है।

भईया ! स्वयं देव-स्वरुप गायें हमारे लिये भगवान की ऐसी ही निशानी है जिसे मारा जाना हमको और हमारे भगवान को न तो पसंद है और न ही बर्दाश्त।

खुदाई निशानियों को तकलीफ देने वालों के "लींचिंग" का उदाहरण और इतिहास आपके यहाँ से शुरू होता है और सौभाग्य से वहाँ भी प्रश्न एक पशु और इंसान के जान के बीच तुलना की थी जहाँ आपके खुदा और उसके नबी सालेह ने एक नहीं बल्कि पूरी कौम के इंसानों के जान की कोई कीमत दो पशुओं के सामने कुछ न समझी।

यही संदेशा गाय के लिये हमारी ओर से भी क्यों नहीं समझते?

सादर!

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