"धिम्मियों" का नया चेहरा सिद्धू

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धिम्मियों को पहचानिये - अब तो ये धीम्मिपना भी खुलकर दिखाने लगे हैं

शेख अहमद दीदात ने "क्राइस्ट इन इस्लाम" नाम से एक बड़ा मशहूर लेक्चर दिया था जिसने पश्चिमी ईसाई जगत और अफ्रीका में ईसाईयों के बीच दावत की राह आसान कर दी थी।

दीदात का वो मशहूर लेक्चर मेरे पास भी है। सवा घंटे के उस लेक्चर और उसके बाद पैंतालीस मिनट तक चले सवाल-जबाब सत्र में दीदात ने सामने बैठे ईसाई श्रोताओं को ये समझा दिया था कि इस्लाम के अंदर उनके जीसस क्राइस्ट और मदर मेरी का दर्ज़ा बड़ा ऊँचा है, इतना ऊँचा जितना आपके बाईबल में भी नहीं है। दीदात ने उनको ये समझा दिया कि क्राइस्ट और उसकी माता को दुनिया में अधिक सम्मान इस्लाम और उसके पैगंबर ने दिलवाया है न कि ईसा के शिष्यों और बाईबल ने। दीदात ने उन्हें चहकते हुये ये भी कहा कि हम आपके ईसा का नाम अलैहेसलाम (जो एक सम्मान सूचक शब्द है) लगाये बिना नहीं लेते।

दीदात के उस लेक्चर के बाद ईसाई जगत में उथल-पुथल मच गई और कई "धिम्मी" ईसाई मजहब परिवर्तन कर मुसलमान हो गये। मजहब परिवर्तन करते समय वो ईसाई धिम्मी ये भूल गये कि इस सम्मान के लेक्चर से अभिभूत होकर उन्होंने किन सत्यों और किन तथ्यों से आँखें मूँद ली है। वो भूल गये कि कैसे उनके गिरिजाओं को जमींदोज किया गया था। वो ये भी भूल गये कि कैसे उनकी मुकद्दस किताब तौरात, ज़बूर और इंजील को मिलावट से युक्त बताया गया, वो भूल गये कि कैसे उनके बुनियादी सिद्धांत यानि ट्रिनिटी, सूलीकरण और सदेह स्वर्गारोहण के सिद्धांत को इस्लाम ने सिरे से खारिज कर दिया है। वो ये भी भूल गये कि कैसे उनके पादरियों की सेलिबेसी को गैर-ईश्वरीय कृत्य बताया गया है। वो ये भी भूल गये कि कैसे इस्लाम ने उनको इस बात के लिये जहन्नम का इंधन घोषित किया हुआ है क्योंकि वो ईसा और उसकी माता को खुदा मानतें हैं।

दीदात से इम्प्रेस होकर वो जब अपने चर्च में और अपने लोगों में लौटे तो वहाँ जाकर ठीक वही बातें कही जो आज पाकिस्तानी आर्मी चीफ कमर जावेद बाजवा से मिलने के बाद नवजोत सिंह सिद्धू कह रहे हैं।

दीदात से इम्प्रेस "धिम्मी ईसाई" अपने लोगों से कह रहे थे कि तुम्हें पता नहीं कि मैं दीदात से क्या सौगात लेकर आया हूँ। तुम्हें पता नहीं कि मैं दीदात से अपने जीसस और मदर मेरी के लिये कितना सम्मान लेकर आया हूँ। तुम्हें पता नहीं कि आज दीदात ने कैसे अपनी मुकद्दस किताब में हमारे जीसस का नाम पच्चीस मर्तबा निकाल कर दिखाया है।

आज सिद्धू भी बाजवा से इम्प्रेस होकर उसी "धिम्मी अंदाज़" में कह रहे थे कि तुम्हें पता नहीं कि मैं वहाँ से क्या लेकर आया हूँ। मैं गुरु नानक देव जी की पाँच सौंवी प्रकाश वर्ष के लिये बोर्डर खुलवाने की सौगात लेकर आया हूँ। बाजवा की ओर से अमन का पैगाम लेकर आया हूँ वगैरह-वगैरह।

भईया, जब मेरे जीसस और मदर मेरी का इतना ही सम्मान है तुम्हारे यहाँ तो फिर काहे उस जीसस के एक भी चर्च को तुम अपनी अरब भूमि में खड़े नहीं होने देते? काहे तुम हमको उस जीसस के मानने पर जहन्नमी घोषित करते हो? काहे तुम ये कहते हो कि हमारे ईसाईयत के सारे बुनियादी सिद्धांत ही गलत हैं और हमारे इंजील में मिलावट है और काहे हमारे ईश्वर को अधिक से अधिक एक रसूल का दर्ज़ा देते हो जबकि हम उनके खुदा मानते हैं? काहे तुम्हारी नज़रें हमारे बैतुल-मुकद्दस पर है?

तब दीदात से ये सारे सवाल न तो वो धिम्मी ईसाई पूछ पाये थे और न ही बाजवा से ऐसे सवाल पूछने की हिम्मत आज सिद्धू में थी कि भईया कमर बाजवा !

हमारे नानक देव का और सिखी का इतना ही सम्मान है तो काहे हमारे लोगों को तुम्हारे मुल्क में दोयम दर्जे का नागरिक समझा जाता है और काहे उन्हें उनके मूलभूत अधिकारों से वंचित रखा जाता है? काहे तुम हमारे गुरुपर्व को पाकिस्तान का राष्ट्रीय पर्व रूप में मान्यता नहीं देते? काहे तुम्हारे लाहौर में महाराणा रणजीत सिंह जी के नाम और सम्मान में कुछ भी नहीं है? बाबा गुरुनानक देव जी का दर्ज़ा तुम्हारे मजहब के हिसाब से क्या है और हम सिखों को क्या तुम काफिर और दोज़खी नहीं मानते? इतना ही प्रेम उमड़ रहा है तो काहे विभाजन में तुमने हमारा सबसे अधिक खून बहाया था और हमारे बहन-बेटियों की अस्मतरेजी की थी? काहे डोडा में तुमने चुनचुनकर सत्रह सिखों को बेदर्दी से मार दिया था?

धिम्मी मानसिकता ऐसी ही होती है जो सोना गंवाकर और कोयला बटोर कर ही खुश हो जाती है। धिम्मी मानसिकता ऐसी ही है जो बलात्कार होने के बाद बलात्कारी के इस तर्क पर खुश हो जाती है कि रेप का छोड़ो मज़ा तो तुमको भी आया न।

हमें सब काम छोड़कर बस एक काम करना है और वो काम है ऐसे धिम्मियों को पहचानना वरना हमें महाविनाश से कोई नहीं बचा सकता।

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