निजामाबाद : एक कलेक्टर के प्रयासों द्वारा बाल श्रम के खिलाफ छेड़ा गया अभियान २० वर्ष से लगातार सफलता की राह पर

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निजामाबाद : एक कलेक्टर के प्रयासों द्वारा बाल श्रम के खिलाफ छेड़ा गया अभियान २० वर्ष से लगातार सफलता की राह पर
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इस जिले में होने वाली नई दुल्हन की दहेज की मात्रा उन बीड़ियों की संख्या पर आधारित होती है जिन्हें एक लड़की अधिक से अधिक बना सकती है

निज़मनाबाद एक जिला है जो भारत के तेलंगाना राज्य में बीड़ी क्षेत्र में बाल श्रम के प्रसार के लिए जाना जाता है, उसका एक मण्डल वेलपुर, जो 2 अक्टूबर, 2001 को राज्य में पहला बाल श्रम मुक्त मंडल होने के कारण लगातार सुर्खियों में रहा है, दो दशक के बीत जाने के बाद भी मण्डल की स्थिति बाल श्रम मुक्त है। ये वहाँ के निवासियों, अधिकारियों के अथक और निरंतर प्रयासों से ही संभव है इसके लिए सभी का लिए धन्यवाद; तत्कालीन कलेक्टर जी अशोक कुमार (आप वर्तमान में राष्ट्रीय जल मिशन, MoWR, RD & GR में अतिरिक्त सचिव एवं मिशन निदेशक के पद पर कार्यरत हैं)।

सरकार या किसी सामाजिक संस्था द्वारा समाज सुधार के लिए आरंभ किए गए अधिकतर कार्यों में की समाप्ती के कुछ समय/वर्षों बाद ये देखने में आता है कि उसका असर समाप्त हो चुका है, विशेषकर बाल-श्रम के खिलाफ अधिकांश अभियानों का प्रभाव अभियान के पूरा होने के कुछ ही समय बाद समाप्त हो जाता है, जब बच्चे स्कूल छोड़ देते हैं और बाल-श्रम के रूप में अपने पुराने कार्यस्थल पर लौट जाते हैं।

लेकिन यहां एक ऐसा विशेष मामला है जहाँ आज से 20 वर्ष पूर्व 2001 में बाल श्रम के खिलाफ आरंभ किए गए अभियान के पूरा होने के बाद 20 साल जितना लंबा समय व्यतीत होने के उपरांत भी समुदाय के पूर्ण नियंत्रण, प्रतिबद्धता और भागीदारी के कारण तेलंगाना (जो उस समय आंध्र प्रदेश का ही भाग था) के एक उप-जिले में आज 2021 में भी जारी है।

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निजामाबाद में बाल श्रम प्रथाओं के खिलाफ सफल अभियान एक सपने का परिणाम था, जो ईमानदार स्वयंसेवकों के साथ विचार-मंथन सत्रों और हितधारकों के साथ विचार-विमर्श के आधार पर प्रतिबद्ध लोगों के एक समूह और समुदाय की कुल भागीदारी द्वारा किए गए निरंतर केंद्रित प्रयासों द्वारा सावधानीपूर्वक योजना बनाने के बाद इसे बहुत सूक्ष्म स्तर के कार्यों में विभाजित करके लागू किया गया था।

क्षेत्र में टीम द्वारा जिला कलेक्टर के द्वारा लगातार निगरानी और दैनिक प्रतिक्रिया ने पाठ्यक्रम में सुधार करने और दिन-प्रतिदिन के आधार पर क्षेत्र में उत्पन्न होने वाली विभिन्न स्थितियों के अनुकूल रणनीति बदलने में मदद की। इस लचीले दृष्टिकोण लेकिन स्वयंसेवकों की दृढ़ प्रतिबद्धता ने स्थानीय जनता के दिलों को जीत लिया और इसे एक जन-आंदोलन बनाने के प्रयासों में शामिल होने के लिए आकर्षित किया, जिसमें जाति, पंथ या राजनीतिक संबद्धता के बावजूद सभी को शामिल किया गया था।

इन प्रयासों की परिणति Velpur को एक बाल-श्रम मुक्त मंडल बनाने में हुई, और इसका ही सुखद परिणाम था कि इस मण्डल में 5 से 15 वर्ष तक की उम्र के सभी बच्चे स्कूलों में थे। आंदोलन की सफलता से ग्रामवासियों के मन में निर्मित हुई गर्व की भावना ने इस अभियान के पूरा होने के 20 साल बाद भी प्रयासों को लगातार बनाए रखने में मदद की।

तेलंगाना में निजामाबाद एक ऐसा जिला है जो बाल-श्रम के प्रसार के लिए जाना जाता है। जिले में बड़ी संख्या में बच्चे बीड़ी उद्योग में लगे हुए हैं। कहा जाता है कि इस जिले में होने वाली नई दुल्हन की दहेज की मात्रा उन बीड़ियों की संख्या पर आधारित होती है जिन्हें एक लड़की अधिक से अधिक बना सकती है। उसकी फुर्तीली उंगलियाँ जितनी अधिक बीड़ी मात्रा में बीड़ी लपेट सकती हैं, उसकी दहेज की राशि उतनी ही कम होगी।

भारत सरकार के श्रम विभाग की राष्ट्रीय बाल श्रम परियोजना (National Child Labor Project) ने इस जिले को बाल श्रम की अधिकता वाले जिले के रूप में पहचाना था और 1994 में ही जिले में 34 NCLP स्कूल शुरू किए थे। 2001 में जिले के परियोजना वाले इन 34 गैर-आवासीय विद्यालयों में लगभग 1400 लड़कियां पढ़ रही थीं।

उस समय के तत्कालीन कलेक्टर श्री जी.अशोक कुमार के नेतृत्व में मंडल में 9 जुलाई 2001 से शुरू होकर 90 दिनों का गहन अभियान चलाया गया। इस अभियान के लिए CMO मि॰ सुधाकर, के नेतृत्व में एक कोर टीम बनाई गई थी, इस टीम में श्रीमती निर्मल कुमारी, {Girl Child Development Officer (GCDO)}, श्री प्रकाश, श्री लक्ष्मण, श्री श्रीनिवास रेड्डी, Mandal Resource Persons (MRPs) सदस्य के रूप में जुड़े थे एवं इस टीम को मंडल के नोडल अधिकारी श्री सयाना, श्री रवि कुमार, मंडल राजस्व अधिकारी (MRO), श्री सुब्रमण्यम, मंडल विकास अधिकारी (MPDO), श्री शंकर (MEO) द्वारा समर्थित किया गया।

बाद में, यह अभियान समुदाय के एक बड़े आंदोलन में बदल गया, जिसमें गांव के प्रत्येक सदस्य ने यह सुनिश्चित करने का संकल्प लिया कि उनके पड़ोस के सभी बच्चों को स्कूलों में भेजा जाएगा। उन्होंने अपने संकल्प की याद दिलाने के लिए गांवों में बड़े-बड़े बोर्ड लगा दिए।

इस अभियान में देखा गया कि 5-15 आयु वर्ग के सभी बच्चों को उपयुक्त स्कूलों में नामांकित किया गया था। उन्हें पढ़ने के लिए किताबें, वर्दी और अन्य सुविधाएं दी गईं। 2 अक्टूबर 2001 को Velpur को बाल-श्रम मुक्त मंडल घोषित किया गया। मंडल के सभी 8057 बच्चे स्कूल में थे। इसमें 800 से अधिक बच्चों को वापस स्कूलों में लाया गया और 9 मानसिक रूप से मंद बच्चों को जिन्हें इस अभियान के दौरान पहचाना गया और उन्हें खानपान देने वाले संस्थान में भर्ती कराया गया।

जिन ग्रामीणों ने इन बाल श्रमिक बच्चों को गारंटी के रूप में रखकर उनके माता-पिता को कर्जा दे रखा था उन सभी ने वो कर्जा जो लगभग 37 लाख रुपये था उसे ना केवल बट्टे खाते में डाल दिया, बल्कि इन बच्चों को स्कूलों में शामिल होने के लिए किताबें और कपड़े भी प्रदान किए गए थे।

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अभियान के परिणामों को औपचारिक रूप देने के लिए, सभी ग्राम पंचायतों ने अपने अधिकार क्षेत्र में सभी प्रकार के बाल श्रम पर प्रतिबंध लगाने का औपचारिक प्रस्ताव पारित किया और सभी स्कूली उम्र के बच्चों को स्कूलों में भेजने का बीड़ा उठाया।

उन्होंने किसी भी बच्चे को काम पर रखने वाले को बहिष्कृत करने का फैसला किया। इसका व्यापक प्रचार-प्रसार किया गया। उन्होंने 500 रुपये के इनाम के साथ चुनौती दी है, जो अपने अधिकार क्षेत्र के भीतर किसी भी स्कूल छोड़ने वाले छात्र को रिपोर्ट कर सकता है। फिर एक सार्वजनिक समारोह में सभी सरपंचों ने सरकार के साथ एक समझौता ज्ञापन (एमओयू) में प्रवेश किया, जिसमें सभी बच्चों को उनके अधिकार क्षेत्र में स्कूल भेजने के लिए प्रतिबद्ध किया गया था।

उन्होंने स्कूलों में सभी स्कूली उम्र के बच्चों को बनाए रखने को सुनिश्चित करने का भी बीड़ा उठाया। बदले में सरकार ने पहुंच, बुनियादी सुविधाएं और आवश्यक शिक्षक प्रदान करने का बीड़ा उठाया। समझौते पर डीईओ ने जिलाधिकारी की मौजूदगी में हस्ताक्षर किए। यह एपी अनिवार्य शिक्षा अधिनियम 1985 के प्रावधानों के अनुसार था और यह इतिहास में पहली बार था कि सरपंच और सरकार के बीच इस तरह के समझौते पर हस्ताक्षर किए गए थे।

बाल श्रम के खिलाफ अभियान को चलाने और अधिकारियों, लोगों और अभिभावकों के बीच उत्साह ने यह सुनिश्चित किया कि बच्चे आज भी स्कूल जा रहे हैं। टीमें हमेशा सतर्क रहती हैं और संबंधित अधिकारियों को वापस रिपोर्ट करती हैं, अगर उन्हें कोई बच्चा मिलता है, जो संभवतः प्रवासी परिवारों से संबंधित है, मंडल में स्कूलों से बाहर है।

बाल श्रम के कलंक को खत्म करने के लिए दिन-रात काम करने वाली टीमों के प्रयासों का वर्णन करते हुए श्री अशोक कुमार, जो अब राष्ट्रीय जल मिशन, MoWR, RD & GR में अतिरिक्त सचिव एवं मिशन निदेशक के पद पर कार्यरत हैं, ने कहा कि उन्होंने बाल श्रम को रोकने के लिए होटल, चाय की दुकानों, साइकिल की दुकानों, कार सर्विस स्टेशनों जैसे कार्यस्थलों को, बीड़ी कारखानों, खेतों, वन क्षेत्रों, ईंट भट्टों की जाँच करने के लिए खंगाला कि क्या वहाँ पर बच्चे किसी भी प्रकार के श्रम में लगे हुए थे ।

उन्होंने आगे बाते "मैंने शिक्षक संघों के साथ बैठक की और उनका समर्थन मांगा। मैंने प्रधानाध्यापकों और शिक्षकों के साथ भी बैठकें कीं। यह उन पर बहुत स्पष्ट रूप से प्रभावित था कि यह अभियान सीधे शिक्षा से संबंधित था और बच्चों को बनाए रखने के लिए उन्हें व्यक्तिगत रूप से जिम्मेदार होना चाहिए।

अंतत: 2 अक्टूबर 2001 को वेलपुर को बाल श्रम मुक्त मंडल घोषित किया गया। मंडल के सभी 8,057 बच्चे स्कूलों में थे। यह इस तथ्य को रेखांकित करता है कि जब पूरा समुदाय शामिल होता है तभी बाल श्रम आदि जैसी प्रमुख सामाजिक बुराइयों से प्रभावी ढंग से निपटा जा सकता है।

वेलपुर में इस अभियान पर आधारित एक फिल्म 'मा ओर्लो बालाकर्मिकालु लेरु ('Maa Orlo Balakarmikalu leru)' बनाई गई थी जिसने वर्ष 2002 के लिए आंध्र प्रदेश में सर्वश्रेष्ठ टीवी वृत्तचित्र के लिए गोल्डन नंदी पुरस्कार जीता था।

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