15 अगस्त: स्वतन्त्रता की खुशी या बँटवारे का दर्द?
15 अगस्त 1947 को हमें खंडित आजादी मिली तो बंटवारे के गुनहगारों ने हमें ये समझाया, बेटे! कहाँ स्वाधीनता रूपी महान उपलब्धि और कहाँ विभाजन जैसा तुच्छ त्याग. अरे! इतने बड़े देश के एक-दो टुकड़े किसी को खैरात में दे भी दिया तो क्या चला गया जो इतने बेचैन होते हो. चीन द्वारा हमारी जमीन हड़पे जाने पर इन्हीं मातृद्रोहियों के द्वारा देश की संसद में खड़े होकर ये कहा गया कि वहां तो तिनका भी नहीं उगता. ऐसे ही मातृघातक संतानों ने कच्छ के रण हड़पे जाने की दुश्मनों की कोशिश पर ये कह दिया था कि उस जगह के लिये क्यों विलाप करे जहाँ एक गिलास पानी भी बिना कीड़ा निगले नहीं पी सकते.
15 अगस्त 1947 को हमें खंडित आजादी मिली तो बंटवारे के गुनहगारों ने हमें ये समझाया, बेटे! कहाँ स्वाधीनता रूपी महान उपलब्धि और कहाँ विभाजन जैसा तुच्छ त्याग. अरे! इतने बड़े देश के एक-दो टुकड़े किसी को खैरात में दे भी दिया तो क्या चला गया जो इतने बेचैन होते हो. चीन द्वारा हमारी जमीन हड़पे जाने पर इन्हीं मातृद्रोहियों के द्वारा देश की संसद में खड़े होकर ये कहा गया कि वहां तो तिनका भी नहीं उगता. ऐसे ही मातृघातक संतानों ने कच्छ के रण हड़पे जाने की दुश्मनों की कोशिश पर ये कह दिया था कि उस जगह के लिये क्यों विलाप करे जहाँ एक गिलास पानी भी बिना कीड़ा निगले नहीं पी सकते.
15 अगस्त 1947 भारत की आजादी का दिन था. हमें आजादी मिली, उस खुशी को आज भी हम हर साल आजादी के दिन के रूप में मनातें हैं पर इस खुशी को मनाते हुये हममें से कितने लोग हैं जिनके मन में कोई वेदना होती है, कोई पीड़ा होती है?
किसी का भी स्वाभाविक प्रश्न होगा कि आजादी के दिन कोई वेदना या कोई पीड़ा क्यों हो?
पर ये सवाल सिर्फ वही पूछेगा जिसने भारतभूमि को माँ रूप में नहीं देखा, जिसके अंदर भारत विभाजन का अपराध बोध नहीं है, जिसने कभी भारत विभाजन की सबसे ज्यादा कीमत चुकाने वाले पंजाबियों और बंगालियों के दर्द को महसूस ही नहीं किया. ये सवाल वो भी पूछेगा जिसने भारत को ईश्वर रचित और देवताओं की क्रीड़ा स्थली नहीं माना, जिसने कभी प्रभु श्रीराम के 'जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी' के स्वर्गिक उद्गार का स्मरण ही नहीं किया और न ही भारत को एक रखने हेतू कृष्ण और आद्यगुरु शंकराचार्य जैसे अवतारों के व्रत को याद रखा.
ये सवाल उन नमकहरामों के मुंह से भी निकलेगा जिसने वंदेमातरम् के मन्त्रद्रष्टा ऋषि बंकिम की आनंदमठ नहीं पढ़ी, जिसने हिमालय में देवता देखने वाले नहीं कालिदास का साहित्य नहीं पढ़ा, जिसे कारागृह में भारत माता का साक्षात्कार करने वाले उत्तरयोगी श्री अरविन्द का स्मरण नहीं है, जिसने कालापानी की सजा काट रहे हिंदुत्व के वर्तमान स्वरुप के प्रणेता स्वतन्त्रय्वीर सावरकर की अवमानना की. जिसे गोडसे का आत्मबलिदान का मोल नहीं पता है.
15 अगस्त 1947 को हमें खंडित आजादी मिली तो बंटवारे के गुनहगारों ने हमें ये समझाया, बेटे! कहाँ स्वाधीनता रूपी महान उपलब्धि और कहाँ विभाजन जैसा तुच्छ त्याग. अरे! इतने बड़े देश के एक-दो टुकड़े किसी को खैरात में दे भी दिया तो क्या चला गया जो इतने बेचैन होते हो. चीन द्वारा हमारी जमीन हड़पे जाने पर इन्हीं मातृद्रोहियों के द्वारा देश की संसद में खड़े होकर ये कहा गया कि वहां तो तिनका भी नहीं उगता. ऐसे ही मातृघातक संतानों ने कच्छ के रण हड़पे जाने की दुश्मनों की कोशिश पर ये कह दिया था कि उस जगह के लिये क्यों विलाप करे जहाँ एक गिलास पानी भी बिना कीड़ा निगले नहीं पी सकते.
भारत विभाजन की वेदना और पीड़ा हर उस मन में है जिनके लिए भारत का कण-कण शंकर है, जिनके लिए भारत भूमि का हर टुकड़ा एक तीर्थ है, जिनके लिए पवित्र सिंधु नदी, गौरवशाली नगर लाहौर, बप्पा रावल का रावलपिंडी, मुल्तान और अटक के बिना भारत माता अपूर्ण है.
भारत विभाजन का पाप हम सबके मत्थे है और हमारा ये पाप इसलिए अक्षम्य है क्योंकि हमने अपनी माता का अंगछेदन करते हुए उनकी दोनों भुजाएं काट दी और इसका टूटा-फूटा और कटा-फटा नक्शा देखकर भी हमें वेदना नहीं होती, क्योंकि हमने श्रीराम के पुत्र लव, पाणिनि, भगत सिंह और गुरु नानक देव की जन्मस्थली को अपने से अलग कर दिया, क्योंकि हमने दाहिर की बहादुर बेटियां सूर्य और परिमल को देश विभाजन के साथ विस्मृत कर दिया और उनका वो मान नहीं रखा जिनकी वो हकदार थीं. हमारा पाप इसलिए भी अक्षम्य है क्योंकि देश विभाजन को मानकर हमने मोहनजोदड़ो और हड़प्पा के अवशेष उनके वैरियों को सौंप दिए, हिंगलाज और ढाकावासिनी माँ भगवती को उनके भरोसे छोड़ आये जिनके लिए वो नापाक बुत मात्र हैं, वेदों के संकलन स्थल को उनके जिम्मे छोड़ आये जिनके लिए वो कुफ्र की किताबें हैं.
भारत विभाजन सिर्फ राजनैतिक समझौता या खैरात वितरण नहीं था, बल्कि ये हम जैसे भारत माता की लाखों संतानों को अनाथ करना था. काश कि भारत विभाजन के वक़्त कोई विभाजन के जिम्मेदारों की गिरेबान पकड़ कर पूछता कि अपने ब्रिटिश आकाओं को खुश करने के लिए जलियांवाला बाग़ में कुछ सौ भारतीयों को बेदर्दी से मार डालने वाला जनरल डायर अगर मार डाले जाने लायक था तो लाखों लोगों के क़त्ल, हजारों ललनाओं के वैधव्य और लाखों बच्चों को सिर्फ कुर्सी की हविस में अनाथ कर देने वाले तुम लोगों के लिए कौन सी सजा तय होनी चाहिए ?
भारत विभाजन के पीछे की वजहें कोई कुछ भी गिनाये पर मेरे लिए भारत विभाजन की वजह तीन ही थी, पहला हिन्दुओं का कमजोर मनोबल तथा हिंदुत्व की भावना का अभाव और दूसरा ये कि हमने ये मान लिया कि चलो इस विभाजन के बहाने आबादी का संतुलन ठीक होगा और तीसरा ये कि भारत सिर्फ भूमि नहीं अपितु जीवित-जाग्रत भगवती है इस भावना का विस्मरण.
अखंड भारत के नक्शे को अपने अन्तस्थ: में रखते हुए भारत भक्ति में जुट जाइये, यही हुतात्मा गोडसे को अतृप्त आत्मा को मोक्ष दिलवाएगा, यही श्यामा प्रसाद मुख़र्जी की आत्मा को भी शांति देगी और यही ऋषि अरविंद की भविष्यवाणी को साकार करने का माध्यम बनेगा.
हमारे ऋषियों ने जब अतीत में ऋग्वेद के हिरण्यगर्भ सूक्त में जब गाया था, "यस्येमे हिमवन्तो महित्वा यस्य समुद्रं रसया सहाहुः । यस्येमाः प्रदिशो यस्य बाहू कस्मै देवाय हविषा विधेम" तो यकीनन उनके अंदर कटे-फटे और विभाजित भारत का चित्र नहीं बल्कि अखंड भारत रहा होगा जिसके खंडित होने का दर्द दुर्भाग्य से अब हमें नहीं होता.
आजादी के दिन का सदुपयोग विभाजन के दर्द को महसूस करते हुये करिये बस इतना ही कहना है.