टूटते भ्रम खुलते तिलिस्म, नग्न होते चेहरे : 2019 लोकसभा चुनाव

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टूटते भ्रम खुलते तिलिस्म, नग्न होते चेहरे : 2019 लोकसभा चुनाव
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टूटते भ्रम खुलते तिलिस्म, नग्न होते चेहरे : 2019 लोकसभा चुनाव

2019 बेहद महत्वपूर्ण वर्ष! पचास वर्ष बाद जब नए भारत और इसके इतिहास की बात होगी, साल 2019, 1857 और 1947 की तरह महत्वपूर्ण स्थान रखेगा।

2019 एक छद्म लोकतंत्र के चुनावी वर्ष से अधिक धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व रखता है। क्योंकि एक तरफ होड़ लगी है कि ईसाई और इस्लाम में से हिन्दू को कौन पहले खाएगा ? तो दूसरी तरफ योद्धा संक्रमण काल में चल रहे हैं। सम्मोहित हैं।

ईसाई पंथ उम्र में इस्लाम से बड़ा है लेकिन मजहब के विस्तार में ईसाई से पहले इस्लाम ने काम किया। आज भी दोनों टक्कर ले रहे है। मजेदार बात यह है कि भारत में इन दोनों अब्राहमिक शक्तियों में अब तक कोई बड़ा टकराव देखने को नहीं मिला है। बाज़ दफे दोनों हमेशा साथ खड़े मिलते हैं।

बर्बर आतंक और बारीक आतंक के खेल में केवल यही दोनों नहीं हैं। एक तीसरी विनाशकारी शक्ति भी सक्रिय है वह है प्राकृतिक आपदा और भौतिक समृद्धि की अशांति। आधुनिक जीवन-शैली के साइड इफेक्ट्स।

इन तीनों से अगर कोई जंग ले सकता है तो वह है सनातन धर्म व्यवस्था या हिन्दुत्व आधारित भारतीय आध्यात्म ।

क्योंकि अकेले हम ही हैं जो जिगऱ भी रखते हैं तो उदात्त महत्तम दर्शन भी। हम कभी न नहाने वालों को रोज नहाना सिखा सकते हैं तो हराम मानने वालों को सुर दे सकते हैं। अभी कुछ ही दिन पहले हमने देखा मार्क्सवादी इतिहासकार इरफ़ान हबीब ने आउटलुक पत्रिका (फरवरी 2018) में लिखे एक लेख में दावा किया कि "this notion of the motherland came to us from the West along with the concept of nation" और एक युवा सनातनधर्मी भिड़ गया था। अथर्ववेद 'माता भूमि':, पुत्रो अहं पृथिव्या:। यजुर्वेद-नमो मात्रे पृथिव्ये, नमो मात्रे पृथिव्या:। वाल्मीकि रामायण 'जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी! हबीब के सब गुप्त प्रकट अभिप्राय-अभिप्रेत हवा? हबीब चुप थे।

एन डी टीवी के एक कार्यक्रम में एक युवा ने क्रिप्टो उदित राज की लंका लगा दी थी।

यह कुछ उदाहरण केवल इसलिए कि दर्शन, वैचारिकी और थाट प्रासेस में हमसे सशक्त कोई नहीं। एक समय था जब हम भयंकर छिद्रान्वेषण, आत्महत्या की सीमा तक अति आत्म-आलोचना जैसी ग्रंथियों से बंधे थे। अब ऐसा नहीं है। आत्मविश्वासी भारत बंधन तोड़ रहा है।

ऐसा ही एक बंधन है विकास। इसका मतलब है संसाधनों का स्वामित्व पर यथार्थ है असमान वितरण। इंडीवुजुअलाइज्ड प्रोडक्ट्स तैयार कर के बाजार को बांटना। दरअसल विकासवाद उपभोक्तावाद का ही नया नाम है जिसमें चतुर लोग सीधे सरल लोगों को मजबूर कर देते हैं कि वह ऐसी चीजों पे अपनी कमाई खर्च कर दें जिनकी कि उन्हें जरूरत ही नहीं।

इस अर्थ में 2019 और भी महत्वपूर्ण है कि क्रिश्चियन पति की पत्नी, जिसकी जड़ों में मोहम्मडन रक्त है और जो विकासवाद उपभोक्तावाद भौतिकतावाद की तरह चमचमाती तीखे नाक नक्श वाली आकर्षक सुंदरी है वह कांग्रेस की कप्तान है।

सनातन धर्म और इस सनातन देश को समझना होगा। उन युवाओं को आगे आने दीजिए, आगे लाइए जो हबीब और उदित राज जैसों की बत्ती गुल कर सकते हैं। स्वजनों को साथ रखिए। क्योंकि

'शरीरे अरि प्रहरति हृदये स्वजनस्थता'!

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