धरिणीम् भरणीम् मातरम् : (2) केले की खेती

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धरिणीम् भरणीम् मातरम् : (2) केले की खेती
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चाय बेचने वाले टेनु डोंगार बोरोले और शिक्षक लक्ष्मण ओंकार चौधरी आधुनिक तकनीक से केले की खेती करके बने करोड़पति

अगर कोई कहे कि किसान सालाना करोड़ रुपए कमा सकते हैं, तो सुनने वाला उसे पागल समझ सकता है। मगर महाराष्ट्र का जलगांव भारत में केलों की राजधानी है और यहां के कई किसान करोड़पति हैं।
यहाँ 62 साल के टेनू डोंगार बोरोले और 64 साल के लक्ष्मण ओंकार चौधरी ऐसे ही किसान हैं।
टेनू डोंगार बोरोले पहले चौराहे पर चाय बेचते थे और गांव वाले उन्हें टेनया बुलाते थे। अब वे टेनु सेठ बन गए हैं। तो लक्ष्मण ओंकार चौधरी शिक्षक थे।
सिंचाई की कमी, केलों के पौधे पालने-पोसने की सुविधा और बाज़ार तक इनकी पहुँच ने इनकी किस्मत बदल दी। केले से एक साल का चौधरी का टर्नओवर एक करोड़ रूपए पार कर गया है। परंपरागत खेती करते समय चौधरी के पास सिर्फ 4 एकड़ जमीन ही थी। लेकिन अब ये बढ़कर 10 गुना यानी 40 एकड़ हो गई है। वो साल में अब 12,500 कुंतल केले की पैदावार निकाल लेते हैं। पिछले साल ये रूपए 900 प्रति क्विंटल यानी कुल रूपए 1,12,50,000 में बिके जबकि इस साल ये भाव रूपए 1200 प्रति कुंतल है यानी करीब 25 प्रतिशत ज्यादा, जिनसे इस साल चौधरी जी की कमाई होगी कुल रूपए डेढ़ करोड़।
टेनु बोरोले भी कई एकड़ में केले की खेती कर रहे हैं। दोनों किसान ख़ुशकिस्मत है कि इन्हें सिंचाई में मदद मिल रही है।
चौधरी 1974 से ही केले की खेती कर रहे थे। तब वह परंपरागत केले ही पैदा करते थे, जिनमें 18 महीने में एक बार फल आते थे। लेकिन नई तकनीकी और नए किस्म के पौधे आ जाने से अब ये फसल 9 महीने से 12 महीने में तैयार हो जाती है और इससे 3 फसल ली जाती हैं जिसमे तीनों फसलों में कुल समय 28 माह का लगता है यानी 1 फसल 9 माह में तैयार हो जाती है।
खेती के लिए --
केले के खेती वाले खेत की पीएच वैल्यू 6.5 से 7.5 के बीच होनी चाहिए। खेत की उपजाऊ ताकत और पीएच वैल्यू को जानने के लिए किसान अपने जिले के कृषि विज्ञान केंद्र या जिला कृषि विभाग में संपर्क करें।
खेती के लिए 30-40 डिगरी सेल्सियस वाले इलाके ज्यादा मुफीद माने गए हैं, उत्तरप्रदेश, बिहार, मध्यप्रदेश बेहतर है इसकी खेती के लिए। गरमी के मौसम यानी मई - जून के महीनों में तेज गरम हवा से पौधों को बचाने के लिए माकूल इंतजाम रखना जरूरी होता है। तेज गरम हवा केले के लिए बहुत ही नुकसानदायक होती है। अपने इलाके की आबोहवा और खेत की उपजाऊ ताकत के आधार पर उम्दा किस्म के केले की बोआई करनी चाहिए। केले की उम्दा किस्में हरी छाल, बसराई ड्वार्फ, ग्रेंड नेन वगैरह हैं। हरी छाल किस्म के पौधे 200-260 सेंटीमीटर लंबे होते हैं। इस किस्म पर बड़े आकार के केले लगते हैं। बसराई ड्वार्फ किस्म के पौधे छोटे और इस किस्म पर लगने वाले केले थोड़े मुड़े होते हैं, ग्रेंड नेन किस्म यानी टिश्यू कल्चर तकनीक से तैयार पौधे 300 सेंटीमीटर से ज्यादा लंबे होते हैं। इस किस्म के केले मुड़े हुए होते हैं। टिश्यू कल्चर से तैयार पौधे की फसल तकरीबन 11 माह में तैयार हो जाती है। खेत की तैयारी के समय 50 सेंटीमीटर गहरा, 50 सेंटीमीटर लंबा और 50 सेंटीमीटर चौड़ा गड्ढा खोद लें और बरसात का मौसम शुरू होने से पहले यानी जून के महीन में इन खोदे गए गड्ढों में 8.15 किलोग्राम नाडेप कंपोस्ट खाद, 150-200 ग्राम नीम की खली, 250-300 ग्राम सिंगल सुपर फास्फेट वगैरह डाल कर मिट्टी भर दें और समय पर पहले से खोदे गए गड्ढों में केले की पौध लगा देनी चाहिए। हमेशा सेहतमंद पौधों का चुनाव करना चाहिए जिसे आप खुद नर्सरी में तैयार कर सकते है या मार्किट से सीधे खरीद सकते है। खराब और बेमेल पौधों को रोपाई के समय ही हटा दें।
केला ज्यादा पानी की मांग करने वाली फसल है। पानी की बचत और कम पानी में ज्यादा रकबे की सिंचाई करने के लिए ड्रिप इरिगेशन सिस्टम को अपनाएं और फसल पर मल्चिंग का इस्तेमाल कर पानी को धूप और हवा द्वारा उड़ने से बचाएं, ताकि पौधा पूरे पानी का इस्तेमाल कर सके। केले की फसल को ज्यादा खाद की जरूरत होती है, इसलिए खाद की खुराक मिट्टी की जांच के बाद ही तय करें। पानी की बचत के लिए जब बरसात का मौसम खत्म होता है यानी अक्तूबर के महीने में पौधे के चारों तरफ गन्ने की सूखी पत्तियां या पुआल वगैरह की 10-15 सेंटीमीटर परत बिछा दें । पौधों पर फूल यानी फल लगना शुरू हो जाए, तो पौधों को गिरने से बचाने के लिए उन्हें सहारा देने की जरूरत होती है। सहारा देने के लिए बांस के डंडों से सहारा देना चाहिए, या रस्सी से बांध भी सकते है। घार में लग रहे केले की लंबाई और उस की क्वालिटी बढ़ाने के लिए नर फूल काटना जरूरी होता है। जून महीने में लगाए गए केले के पौधों में अगले साल मई महीने में फूल निकलना शुरू होता है। पौधे पर फूल दिखाई देने के 30 दिन बाद पूरी घार पर केले बनने लगते हैं।
घार में केला तैयार होने में तकरीबन 100-140 दिन का समय लगता है। टिश्यू कल्चर से तैयार पौधों में 8-9 महीने बाद फूल आना शुरू होता है और तकरीबन एक साल यानी 12 महीने में फसल तैयार हो जाती है, इसलिए समय को बचाने के लिए और जल्दी आमदनी लेने के लिए टिश्यू कल्चर से तैयार पौधे को ही लगाएं।
लाभ -
नई किस्म के केले की फसल के लिए किसानों को प्रति एकड़ 70 से 80 हजार रुपये लागत आती है।
- एक एकड़ में 1234 पौधे लगते हैं। केला का घौद (कांदी) स्थानीय स्तर पर न्यूनतम 300 रुपये में बिक जाता है।
- मार्किट में भेजे जाने से कीमत दोगुनी तक अधिक हो जाती है। इससे किसानों को प्रति एकड़ 2.5 लाख से लेकर 3.5 लाख रुपये तक आमदनी होती है। और सहफसली के साथ मुनाफे में 40% तक वृद्धि की जा सकती है।
सरकारी सुविधा - सरकार किसानों की कोशिशों में बिजली, सिंचाई, बेहतर सड़क, कोल्ड स्टोरेज और बैंकों की वित्तीय मदद जैसे उपायों से मदद करती है।
विशेष -- विश्व में केला एक महत्वपूर्ण फसल है। भारतवर्ष में केले की खेती लगभग 4.9 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में की जा रही है। जिससे 180 लाख टन उत्पादन प्राप्त होता है। महाराष्ट्र में सबसे अधिक केले का उत्पादन होता है। महाराष्ट्र के कुल केला क्षेत्र का केवल जलगाँव जिले में ही 70 प्रतिशत क्षेत्र में केले की खेती की जाती है। देशभर के कुल केला उत्पादन का लगभग 24 प्रतिशत भाग जलगाँव जिले से प्राप्त होता है। केले को गरीबों का फल कहा जाता है। केले का पोषक मान अधिक होने के कारण केरल राज्य एवं युगांडा जैसे देशो में केला प्रमुख खाद्य फल है। केले के उत्पादों की बढती माँग के कारण केले की खेती का महत्व दिन प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है।
सम्पूर्ण विस्तृत जानकारी के लिए आप मेरे ब्लॉग की विजिट कर सकते है -- ajesth.blogspot.com
और अधिक जानकारी के लिए नजदीकी किसान मित्र, ब्लाक कृषि अधिकारी व जिला उद्यान विभाग से संपर्क करें।

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