फिर सूखे में जल रहा बुंदेलखंड
किसानों के अनुसार बारिश न होने से मूंग, उर्द, मूंगफली, तिल की फसल पहले ही प्रभावित हो चुकी थी और अब रबी की फसल के भी बचने की कोई उम्मीद नहीं है। बुंदेलखंड के निवासियों की मांग है कि यहाँ के हालात को देखते हुये सरकार द्वारा बुंदेलखंड को सूखा घोषित कर देना चाहिए। खेतों का प्लाट टू प्लाट सर्वे हो, किसान पहले से ही कर्ज में है।
Arvind Singh Tomar | Updated on:15 Feb 2018 7:14 PM IST
किसानों के अनुसार बारिश न होने से मूंग, उर्द, मूंगफली, तिल की फसल पहले ही प्रभावित हो चुकी थी और अब रबी की फसल के भी बचने की कोई उम्मीद नहीं है। बुंदेलखंड के निवासियों की मांग है कि यहाँ के हालात को देखते हुये सरकार द्वारा बुंदेलखंड को सूखा घोषित कर देना चाहिए। खेतों का प्लाट टू प्लाट सर्वे हो, किसान पहले से ही कर्ज में है।
कभी 'वीरों की धरती' कहा जाने वाला बुंदेलखंड अब सूखे के कारण देश में महाराष्ट्र के विदर्भ जैसी पहचान बना चुका है। बुंदेलखंड का भूभाग देश के दो राज्यों उत्तर प्रदेश के बांदा, चित्रकूट, महोबा, उरई-जालौन, झांसी और ललितपुर और मध्य प्रदेश के टीकमगढ़, छतरपुर, सागर, दतिया, पन्ना और दमोह जिलों में विभाजित है।
यूपी में एक ओर जहां कुछ इलाकों में पिछले दिनों हुई ओलावृष्टि ने वहाँ खड़ी फसलों को बर्बाद कर दिया है, वहीं बुंदेलखंड में इस वर्ष भी सूखे के भयंकर हालत हैं जिसके कारण वहाँ के निवासी पानी की एक-एक बूंद के लिए तरस रहे हैं। यह लगातार दूसरा साल है, जब बुंदेलखंड सूखे की त्रासदी झेलने को विवश है। क्षेत्र के ज्यादातर डैम, नदियां, तालाब, और हैंडपंप सूख चुके हैं। जानकारों का कहना है कि पूरे बुंदेलखंड के जलाशयों में किसानों की फसलों को तो क्या वहाँ के मवेशियों के पीने के लिए भी पानी नहीं है। ऐसे में यहाँ की अधिकतर फसलें बर्बाद हो चुकी हैं और जो बची भी हैं उनका भी बर्बाद होना तय है।
सालों साल बढ़ रहा है अवैध खनन: इस इलाके में बढ़ रहे अवैध खनन का भी यहाँ के पर्यावरण को बिगाड़ने में भी बहुत बड़ा हाथ है। आजादी से आज तक राज्य एवं केंद्र में कितनी ही सरकारें आई और गईं लेकिन किसी ने भी इस अवैध खनन माफिया पर अंकुश नहीं लगाया। इसके विपरीत स्थानीय नेताओं से लेकर पार्टियों के हाईकमान तक के संबंध इन खनन माफियाओं के साथ अनेक बार खुल कर सामने आते रहे हैं। नेताओं की मिलीभगत के कारण ही स्थानीय प्रशासन भी इस माफिया के लोगों की तरफ से आंखे मूँद कर अपनी जेबें गर्म करता रहता है। अगर कभी कोई ईमानदार प्रशासनिक अधिकारी इनके विरूद्ध कोई कानूनी कार्यवाही करने की हिम्मत भी करत है तो या तो उसका ट्रांसफर करा दिया जाता है या फिर उसे मौत की नींद सुला दिया जाता है इसी कारण अनेक ईमानदार कर्मचारी/अधिकारी इस खनन माफिया के खिलाफ कोई कार्यवाही करने से डरते हैं।
केंद्र को चाहिए बुंदेलखंड को सूखाग्रस्त घोषित करे: क्षेत्र के किसानों के मुताबिक, बुंदेलखंड पिछले कई दशकों से मौसम की मार झेलता आया है। कभी ओलावृष्टि, कभी बाढ़, लेकिन ज्यादातर तो सूखे ने ही यहाँ के लोगों की कमर तोड़ी है। मौसम विभाग की तरफ से इस बार कहा जा रहा था कि बारिश अच्छी होगी, लेकिन विभाग की भविष्यवाणी बुंदेलखंड में एक बार फिर गलत साबित हुई।
गरौठा विधान सभा क्षेत्र ग्राम घनौरा थाना ककरबई, बरमाइन, गोकूल, कुरैठा समेत करीब 17 से अधिक गांवों में प्राकृतिक वारिश न होने के कारण खेत सूखे पडे है। सरकार द्वारा यहां जितने भी तालाब ,पोखर,नहर, टेल सरकारी कागजातों में बनी है। वह पूरी तरह सूखी पड चुकी है।
इस सूखे के कारण ही बुंदेलखंड में चारो तरफ भयंकर बरबादी और तबाही के हालत बने हुये हैं। यूं तो इस सूखे से सभी परेशान हैं लेकिन इसका सबसे अधिक नुकसान किसान किसानों को झेलना पड़ रहा है। ग्रामीण क्षेत्र के लोगों का कहना है कि शहरी इलाकों में तो किसी ना किसी तरह पीने के पानी का इंतजाम हो जाएगा, लेकिन दूर-दराज के ग्रामीण इलाके तो पीने के पानी की बूंद-बूंद को भी तरस जाएंगे इतना ही नहीं फसल खराब होने के कारण बुंदेलखंड में किसानों की आत्महत्या करने के आंकड़े भी बढ़ सकते हैं।
यहां के कई किसानों तो कर्ज के बोझ तले दबकर आत्महत्या करने को मजबूर हो रहे है। लेकिन केंद्र की मोदी और प्रदेश की योगी सरकार को इन गांव के हजारों लोगों की कोई चिंता नहीं है। विधायक गरौठा चुनाव से पहले तो किसानों को लेकर उनके लिए लडते देखे जाते थे अब वह सरकार में आने के बाद जनता से सामाना करने से बच रहे है। डीएम, एसडीएम को यहां के लोगों की समस्या सुनने का समय नहीं रहता जिससे उनके गांव से पानी की समस्या का निदान नहीं हो पा रहा है।
किसानों के अनुसार बारिश न होने से मूंग, उर्द, मूंगफली, तिल की फसल पहले ही प्रभावित हो चुकी थी और अब रबी की फसल के भी बचने की कोई उम्मीद नहीं है। बुंदेलखंड के निवासियों की मांग है कि यहाँ के हालात को देखते हुये सरकार द्वारा बुंदेलखंड को सूखा घोषित कर देना चाहिए। खेतों का प्लाट टू प्लाट सर्वे हो, किसान पहले से ही कर्ज में है। एक लाख तक के कर्ज माफी से कोई राहत नहीं मिलने वाली है। सूखे के कारण हर वर्ष किसानों की अधिकांश जमीन तो बंजर पड़ी रहती है।
जब इस बारे में प्रशासन से जानकारी ली गई तो झांसी के जिलाधिकारी का कहना है, कि यहाँ के हालात बहुत खराब हैं। हर दिन की रिपोर्ट शासन को भेजी जा रही है।
झांसी के बांधों में घटता जल स्तर: झांसी के बेतवा नहर डिस्ट्रीब्यूशन ब्लॉक एक्सक्यूटिव इंजीनियर संजय कुमार के मुताबिक, ललितपुर-झांसी में पानी की सप्लाई वाले माताटीला डैम के अलावा इलाके में सुकवां-ढुकुवां, पारीछा, पहूज, सपरार, पहाड़ी, लहचूरा, डोंगरी और खपरार डैम के पानी का उपयोग किया जाता है, लेकिन इनमें इस बार अभी से ही जलस्तर घट चुका है।
अगर जनवरी-फरवरी में इन बांधों का जल स्तर इतना घट गया है तो इसका मतलब है कि मार्च-अप्रैल में शहरी इलाकों में भी पानी का संकट होगा।
सपरार बांध का हाल भी बुरा है। यहां से मऊरानीपुर क्षेत्र की 2 लाख आबादी को पीने का पानी मुहैया कराया जाता है। बांध का पूर्ण जलस्तर 224.64 मिलियन घन फीट है, लेकिन भीषण गर्मी के चलते जलस्तर घटकर 21.18 मिलियन घन फीट रह गया है।
जल संस्थान सप्लाई के लिए बांध से रोजाना एक मिलियन घन फीट कच्चा पानी ले रहा है। सपरार बांध से जुड़े अफसरों की मानें तो बांध में पीने के उपयोग के ही लिए पानी बचा है। अब आगे बारिश की कोई उम्मीद भी दिखाई नहीं दे रही अतः आगे के महीनों में तो पानी का संकट खड़ा होना निश्चित है।
माताटाला बांध में पानी कम होने की वजह से कच्चे पानी का प्रेशर कम होता जा रहा है। इसके लिए सिंचाई विभाग के अधिकारी राजघाट बांध से पानी लेंगे, ताकि माताटाला बांध का वाटर लेवल बढ़ाया जा सके। बता दें, राजघाट बांध में भी पानी का जल स्तर अभी 17 फीट नीचे है। माताटीला बांध से झांसी महानगर के अलावा कैंट बोर्ड बबीना, एमईएस, सीएचसी बबीना, भेल, राजघाट, रोहित सरफैक्टेंट्स, पीएसी, रामनाथ सिटी, मिलिट्री फार्म, झांसी विकास प्राधिकरण, कैंट बोर्ड झांसी, एमईएस झांसी, आईजीएफआरआई, मेडिकल कालेज, कैलिव विहार और हंटर रोड को पानी उपलब्ध कराया जा रहा है।
पिछले सालों से वारिश न होने के कारण किसानों के खेत सूखे पडे हुए है । किसान भूखों मरने की नौबत पर आ चुका है। अपनी जमीन जायदाद को रखाने के लिए उन्हें रहना भी मजबूरी होती है। जिसके कारण कर्ज लेकर अपना जीवन यापन करना पड रहा है। कर्ज का बोझ बढ जाने के कारण ही किसान आत्महत्या जैसे कदम उठाने को मजबूर हो जाता है। इन गांवों में जिनके परिवारों में दो से अधिक लोग वह दूसरे शहरों में जाकर मजदूरी करने को विवश हो गए है। यह पलायन लगातार बढता जा रहा है।
ग्रामीणों ने इस बार आक्रोशित होकर मांग करते हुए कहा है कि सरकार को इन गांवों को सूखाग्रस्त घोषित करके गांवों के लोगों को तत्काल आर्थिक सहायत दिलाई जाए। गांवों में पानी की समुचित व्यवस्था के लिए सरकारी टयूब बैल और बडी संख्या में हैण्डपम्पों की तत्काल व्यवस्था की जाए नही तो क्षेत्र के लोग बडे आंदोलन के लिए सडकों पर उतरकर सरकार के खिलाफ विरोध करने पर मजबूर होगे ।