मैन्युफैक्चरिंग कास्ट और मनुवाद

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मैन्युफैक्चरिंग कास्ट और मनुवाद
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Orientation Program के अंतर्गत 6 दिसंबर 2017 को दिल्ली विश्वविद्यालय के अकादमिक स्टाफ कॉलेज (CPDHE) में "मैन्युफैक्चरिंग कास्ट और मनुवाद" विषय पर इलाहाबाद से डॉ॰ त्रिभुवन सिंह जी ने अपना व्याख्यान दिया। उन्हें सुनने के लिए वहाँ देश भर के विश्वविद्यालयों से आये विविध विधाओं के लगभग 125 हायर एजुकेशन के असिस्टेंट और एसोसिएट प्रोफेसर्स उपस्थित थे।
व्याख्यान का विषय "मैन्युफैक्चरिंग कास्ट और मनुवाद" अर्थात जाति का निर्माण और मनुवाद उपस्थित श्रोताओं के लिए एक प्रकार से नया था। जिसका डॉ॰ सिंह ने अपने बहुत ही शोधपरक एवं तथ्यपूर्ण प्रमाणों व संदर्भों के साथ व्यक्त किया।


डॉ॰ सिंह ने अपने व्याख्यान में भारत को भारत की दृष्टि से देखने की कोशिश की उन्होने अपने शोधपूर्ण निष्कर्षों के द्वारा सिद्ध किया कि किस प्रकार 0 AD से 1750 AD तक सम्पूर्ण विश्व की कुल GDP में 25% GDP का शेयरहोल्डर था जबकि ब्रिटेन और अमेरिका मात्र 2% GDP के। अचानक ऐसा क्या हुआ कि भारत की अर्थव्यवस्था लगातार समुन्द्र की गहराईओं में गर्क होती चली गई और मात्र 150 साल में के अंदर – अंदर ही उस समय का 'सबसे बड़ा निर्यातक और पूरी दुनिया का सिरमौर' रहा भारत जिसे उस समय लोगों ने "सोने की चिड़िया" की उपाधि से पुकारा था कंगाल होता चला गया? ये कंगाली का साया इतना भारी था जो वहीं नहीं रूका अपितु आजादी के बाद से आज तक भी हम इस से बाहर नहीं निकाल पा रहे हैं।
डॉ॰ सिंह के द्वारा व्याख्यान में उठाए गए मुख्य बिन्दु निम्न थे:
 सवाल है कि आखिर ऐसा इस देश में क्या था जो हजारों कि॰मी॰ दूर से लुटेरों के रेले के रेले अपनी जान की चिंता किए बिना यहाँ आते रहे तो शोध करने पर एक ही जबाब मिलेगा वो थी इस देश की धन-सम्पदा और ज्ञान-विज्ञान
 यूं तो यूरोप और एशिया के अनेक भागों से समय – समय पर आक्रांताओं ने आकार भारत को लूटा लेकिन उससे भारत की हालत उतनी नहीं बिगड़ी जितना कि 1750 के बाद ब्रिटिश लुटेरों के आने के बाद से बिगड़ने आरंभ हुये। ऐसा क्यों हुआ तो शोध से ज्ञात होता है कि इन ब्रिटिश लुटेरों ने इस देश की धन-सम्पदा को ही नहीं लूटा अपितु उन्होंने यहाँ के छोटे-बड़े लगभग सभी उद्योग-धंधों को नष्ट करना भी आरंभ कर दिया जो इस देश की रीढ़ की हड्डी थे जिसका परिणाम ये निकला कि 1900 आते आते ब्रिटिश लुटेरों ने भारत के समस्त उद्योग नष्ट कर दिए और इस तरह सबसे बड़ा निर्यातक धीरे – धीरे सबसे बड़ा आयातक बनता चला गया?
  •  उद्योगों के विनष्ट होने के कारण बेरोजगारी की बेबसी से गिरमिटिया मजदूर पैदा हुए। बेरोजगारी के कारण लोग रोजगार हेतु शहरों की ओर भागे - "और सौभाग्यशाली हुए तो उनको गोरों का मेला उठाने का काम मिला, क्योंकि गुलाम यदि सस्ते हों तो शौचालय कौन बनवाये"? - विल दुरंत


 बेरोजगारी के कारण 1850 से 1900 के बीच इन उद्योग निर्माताओं में से 2.5 से 3 करोड़ लोग अन्न खरीदने में अक्षम होने के कारण मृत्यु के मुहं में समा गए। जबकि अनाज भारत से इंग्लैंड एक्सपोर्ट होता रहा- विल दुरंत, जे सुन्दरलैंड, गणेश देउस्कर।
 यद्यपि हिन्दू सबसे सुचितापूर्ण जीवन जीने के अभ्यस्त है ( Hindus are cleanest of the clean People, and they still take bath daily and wash their cloths daily, but in this poverty it's impossible to maintain community hygiene - will Durant.) और वे आज भी प्रतिदिन नहाते धोते हैं लेकिन इस दरिद्रता में सामुदायिक सुचिता स्थापित करना असंभव है।
 आज भी ध्यान से देखिये 1947 के बाद भी भारत का जीडीपी 1990 तक क्यों घटता गया ? डायरेक्ट मनी ड्रेन बन्द हो गयी लेकिन इनडाइरेक्ट मनी ड्रेन जारी रहा।
 भारत में अग्रेज़ों द्वारा Anti Entrepreneurship laws जारी रहे और वे आज भी जारी है।
 जो कृषक और उद्योग निर्माता मरने से बचे उनकी स्थिति का वर्णन ऊपर लिखा है। उनकी तस्वीर भी इसी पोस्ट में है। इन्ही को ब्रिटिश सरकार ने पहले 1932 में अछूत, और फिर SC घोसित किया। आज यही SC/ST और OBC हैं।


डॉ॰ सिंह का ज़ोर इस बात पर था कि आजादी के 70साल बाद देश की सरकार एवं बुद्धिजीवियों को एक बार रूक कर सोचना चाहिए एवं ब्रिटिश लुटेरों के इस लगभग 200 साल के लुटकाल पर भारत की दृष्टि से तथ्यपूर्ण शोध होने चाहिए जिससे हमारे देश को कंगाली एवं जातिवाद (casteism) के समुन्द्र में धकेलने वाले इन ब्रिटिश लुटेरों को बेनकाब किया जा सके और देश को जातिवाद के नर्क से भी बाहर निकाला जा सके।

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