कौन था हबीबुर्रहमान एवं क्या सुभाष बोस की मौत या गुमशुदी के लिए वो जिम्मेदार था ?
कर्नल हबीबुर्रहमान ब्रिटिश आर्मी का अंग रहा था और इसने अंग्रेज फौजी के रूप में भारत के बाहर इंग्लैंड के लिए खूब जंगे लड़ी थीं
कर्नल हबीबुर्रहमान ब्रिटिश आर्मी का अंग रहा था और इसने अंग्रेज फौजी के रूप में भारत के बाहर इंग्लैंड के लिए खूब जंगे लड़ी थीं
सुभाष बोस की अज्ञात यात्रा
सुभाष बोस: भावना और तथ्य के बीच झूलती एक इतिहास कथा
18 अगस्त 1945 भारतीय इतिहास का वह रहस्यपूर्ण दिन है जिसे बीते 70 साल से ज्यादा हो चुके हैं लेकिन इस तारीख के साथ लिपटी रहस्य की परतें और घनी होती गईं हैं. इस तारीख की तह तक जाने के लिए तीन जांच आयोग बने. अलग-अलग देशों की आला खुफिया एजेंसियों ने अपने तरीकों से इस तारीख से जुड़ी सच्चाई को खंगालने की कोशिश की. कुछ स्वतंत्र जांच भी हुई. कई देशों में हजारों पेजों की गोपनीय फाइलें बनीं. तमाम किताबें लिखीं गईं. लेकिन यह एक ऐसा रहस्य है जो जितना सुलझा लगता है उतना हीअनसुलझा ...
किताब बताती है कि बोस 18 अगस्त 1945 अर्थात् 15 अगस्त 1945 को जापान के मित्रदेशों की सेनाओं के समक्ष आत्मसमर्पण के पश्चात् साइगोन हवाई अड्डे से अज्ञात स्थान की ओर उड़े थे,
हालाँकि टोक्यो में सूचना थी कि नेताजी... जापानी जनरल सिदेई के साथ टोक्यो पहुँचेंगे...
लेकिन माना जाता है कि नेताजी का ठिकाना संभवतः मंचूरियन था !... यह स्थान रूस के बहुत निकट था और नेताजी ब्रिटिश अथवा मित्र देशों की सेनाओं के सामने आत्मसमर्पण न करके मंचूरियन में रहते हुए रूस की मदद से अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध जारी रखने के पक्ष में थे !
हालाँकि रूस खुद मित्र देशों का अंग था, परंतु नेताजी शायद स्टालिन... किसी फौजी जनरल अथवा ब्रिटिश-मोमिन षड्यंत्र का शिकार हो गए थे !
नेताजी की मौत में जेहादी एंगल भी प्रतीत होता है, जिसके सूत्रधार जनरल शाहनवाज़ और कर्नल हबीबुर्रहमान हो सकते हैं...
साइगोन से चलते समय नेताजी के साथ उनका ADC कर्नल हबीबुर्रहमान था, जो सितंबर 1944 में ही आज़ाद हिंद फौज से जुड़ा था
मेरा आकलन है कि यह ब्रिटिश भेदिया था!
कर्नल हबीबुर्रहमान ब्रिटिश आर्मी का अंग रहा था और इसने अंग्रेज फौजी के रूप में भारत के बाहर इंग्लैंड के लिए खूब जंगे लड़ी थीं ! यह शख्स INA कैसे पहुँचा और इतनी जल्दी नेताजी का विश्वासपात्र कैसे बना, यह एक अलग रहस्यमयी कहानी है!
हो सकता है कि जनरल शाहनवाज़ खान ने हबीबुर्रहमान को नेताजी का ADC बनने में मदद की हो!
नेताजी के साथ अनेक बक्सों में INA का खजाना भी था...
किताब में यह भी उल्लेख है कि सोना 150 किलो तक था, लाखों येन थे...
यह आश्चर्यजनक है कि, नेताजी निर्वासित भारत सरकार के प्रधानमंत्री थे और जापान, जर्मनी और रूस सहित 9 देशों ने इस सरकार को पूर्ण मान्यता दे रखी थी, उनके लिए सिर्फ एक पुराना, खराब जापानी 92-2 सैली एयरक्राफ्ट हो! 11 लोग पहले से ही उस पर सवार हों और नेताजी को सिर्फ एक ADC अर्थात् सिर्फ हबीबुर्रहमान के साथ चलने की अनुमति दी जाए... साथ मे INA के बक्सों हों,जिसमे भारत की निर्वासित सरकार का खज़ाना भरा हो...
विमान ताइहोकू हवाईअड्डे पर ईंधन भरने उतरा और वापस उड़ने की कोशिश के दौरान सिर्फ 50 मीटर ऊपर जाकर विमान 'लहराता हुआ' नीचे गिर पड़ा, विमान में आग लग गई, जनरल सिदेई सहित 6-7 लोग घटनास्थल पर मारे गए! नेताजी 90% जल गए...
जिन्हें ताइहोकू मिलिट्री अस्पताल में भर्ती कराया गया(आजतक किसी भी जाँच आयोग को इस अस्पताल में नेताजी के आठ घंटे जीवित रहते इलाज का कोई रिकार्ड नहीं मिला और न ही... मृत्यु प्रमाणपत्र!)... सबसे आश्चर्यजनक तथ्य यह है कि कर्नल हबीबुर्रहमान का बाल भी बांका न हुआ, सिर्फ दाएं हाथ की अंगुलियाँ थोड़ी सी झुलस गईं, जिसके ट्रीटमेंट की कोई ज़रूरत थी ही नहीं...!
ताइहोकू हवाई अड्डे के रिकार्ड में 18 अगस्त 1945 वाले दिन किसी हवाई दुर्घटना का ज़िक्र नहीं था और न.. ही किसी पुलिस थाने में किसी दुर्घटना अथवा किसी मृत्यु की FIR ! हबीबुर्रहमान कथित रूप से नेताजी के शव का पोस्टमार्टम भी नहीं करवाता है और न... ही INA के अन्य जनरलों को नेताजी की मृत्यु की सूचना देता है!
हबीबुर्रहमान एक बन्द ताबूत के पास बैठकर फोटो खिंचाता है, मगर उसमे नेताजी का शरीर या चेहरा नहीं दिखाया जाता है!
हबीबुर्रहमान का तर्क था कि नेताजी का चेहरा जल गया था, इसलिए उनके शरीर और चेहरे का चित्र नहीं लिया गया!
दुर्घटनाग्रस्त हवाई जहाज़ का भी कोई फोटो नहीं लिया गया!
किताब में ज़िक्र है कि हबीबुर्रहमान ने दुर्घटनास्थल के संबंध में 2 बयान दिए थे!
पहले बयान में उसने कहा था कि दुर्घटनाग्रस्त हवाई जहाज़ हवाई पट्टी पर ही गिर गया था!
दूसरे बयान में हवाई अड्डे से 150 मीटर दूर हवाई जहाज़ के गिरने का ज़िक्र किया गया! सबसे संदेहास्पद तथ्य यह है कि नेताजी का मृत अवस्था में और नष्ट हवाई जहाज़ का चित्र आज तक उपलब्ध क्यों नहीं है?
1939-45 के मध्य चले 2nd World war के हज़ारों चित्र और न्यूज़ रीलें उपलब्ध हैं...
कई बक्सों में बन्द INA के खजाने का क्या हुआ?
हबीबुर्रहमान ने सिर्फ 30 तोले सोने और 20 हज़ार येन ही कुबूल किये, जबकि माना जाता है कि सिर्फ सोना ही 150 किलो से ज़्यादा था और लाखों येन थे जो भारत, जापान और कई देशों से नेताजी को प्राप्त हुए थे!यह सोना भारत की निर्वासित सरकार का रिज़र्व गोल्ड था... जिसके प्रधानमंत्री सुभाष चंद्र बोस थे!
नेताजी की मृत्यु/हत्या...18 अगस्त को हो गई तो सुभाष बोस के परिवार को सूचना 25 अगस्त 1945 को क्यो दी गई? जबकि संचार व्यवस्था पूरी तरह चाक चौबंद थी!
इन 7 दिनों में नेताजी के साथ क्या हुआ?
या उन्हें खज़ाना छीनकर रूस अथवा ब्रिटिश सेनाओं को हस्तगत कराने में हबीबुर्रहमान कामयाब हो गया?...
क्या हबीबुर्रहमान ने ही तो सुभाष चंद्र बोस की हत्या करके शव ठिकाने लगा दिया?...
यह ध्यान रखिये कि नेताजी का चीफ ऑफ जनरल स्टाफ मोहम्मद जमान कयानी था,....
चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ मेजर जनरल शाहनवाज़ खान था,(अनेक लोगों का मानना है कि यह सब लोग ब्रिटिश सरकार के Stooge/Agent थे)
आगे पुस्तक बताती है कि इस धारणा के पीछे ठोस कारण थे...
23 मार्च 1940 को देश के मुस्लिमों ने लाहौर में पाकिस्तान की माँग पूरे जोशोखरोश और प्रस्ताव पास करके रख दी थी!
अंग्रेजों का मानना था कि भारत की सत्ता हमने मुस्लिमों को युद्धों में हरा कर प्राप्त की है, अतः भारत छोड़ने से पहले मुस्लिमों को उनकी जनसंख्या के अनुपात में एक देश प्रदान किया जाना चाहिए!
1940 से अंग्रेजों और मुस्लिमों के बीच गलबहियाँ प्रारम्भ हो चुकी थीं! अंग्रेज और मुस्लिम यह अच्छी तरह जानते थे कि गाँधी- नेहरू- पटेल और काँग्रेस मानसिक रूप से भारत विभाजन के लिए तैयार हो गए थे!
1921 के बाद से लगातार हिंदुओं के हत्याकांडों से यह लोग आतंकित थे!
हिंदुओं की कोई आवाज़ नहीं थी देश में!
सिर्फ एक आदमी था, जो तस्वीर का रुख मोड़ सकता था...
जनता उसकी दीवानी थी...
वह सुभाष बोस थे!
यदि वह जीवित रहते तो कभी भारत को दो-तीन हिस्सों में नहीं बँटने देते! ऐसे में सुभाष बोस को रास्ते से हटाया जाना जरूरी था!
पुस्तक बताती है कि विंस्टन चर्चिल का मंत्रिमंडल सुभाष को बगैर मुकदमा चलाये गोली मार कर खत्म कर देने का पक्षधर था!
ऐसे में हबीबुर्रहमान, कयानी और शाहनवाज़ खान... ब्रिटिशर्स के साथ मिल गए हो तो कोई बड़ी बात नहीं है! आखिर यह सभी ब्रिटिश सेना में लंबे समय तक कार्य कर चुके थे! दिखावे के लिए हबीबुर्रहमान और जनरल शाहनवाज खान पर लाल किले में ब्रिटिश रानी के खिलाफ सशस्त्र विद्रोह का दिखावटी मुकदमा चलाया गया...
जिसमे 2 पेशियों में जवाहर लाल नेहरू भी काला कोट पहनकर दिखावटी रूप से शामिल हुए थे! इस जुर्म की सज़ा सिर्फ मृत्यु दंड था...
मगर बेहद रहस्यमयी परिस्थितियों में इन तीनों को बरी कर दिया गया...
किताब आगे बताती है कि कथित आज़ादी के बाद जनरल शाहनवाज़ खान पाकिस्तान चले गए!
जनरल कयानी पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर के गिलगित के पोलिटिकल एजेंट अर्थात् राज्यपाल समकक्ष बन गए!
मगर सबसे संदिग्ध व्यक्ति कर्नल हबीबुर्रहमान रहमान जो कि भिम्बर, कश्मीर का रहने वाला था, उसके पिता और बाबा जो अपने नाम के आगे 'राजा' लिखते थे, सेंट्रल सुपीरियर सर्विसेस ऑफ पाकिस्तान का अंग बन गया!
गौर कीजिए जो शख्स 18 अगस्त 1945 को नेताजी सुभाष बोस का दायां हाथ था, वह सिर्फ 2 साल बाद मोहम्मद अली जिन्ना का दायां हाथ बन गया और उसे कश्मीर को भारत से अलग करने की ज़िम्मेदारी दी गई!
इसी हबीबुर्रहमान ने भिम्बर, मीरपुर, मुज़फ़्फ़राबाद, उड़ी, बारामुला इत्यादि को कत्लगाह बना दिया! राजा हरि सिंह की पूरी सेना मारी गई...
हबीबुर्रहमान ने कश्मीर के 40% हिस्से को पाकिस्तान बनाकर जिन्ना को भेंट कर दिया...
यह था असली जिहाद!
इसके एवज में पाकिस्तान ने हबीबुर्रहमान को निम्न इनामों इकराम से विभूषित किया..
1.फतेह ए भिम्बर
2.फख्र ए कश्मीर
3.गाज़ी ए कश्मीर
4.सितारा ए पाकिस्तान
5.सितारा ए इम्तियाज़
6.तमगा ए इम्तियाज़...
और सर्वश्रेष्ठ सरकारी पद!
यह इनाम था... सुभाष चंद्र बोस की 'रहस्यमयी मौत'/हत्या का...
यह शख्स हबीबुर्रहमान नेताजी की मौत का एकमात्र गवाह बना!
इसकी गवाही को देश को मानने के लिए मजबूर किया गया!हबीबुर्रहमान की गवाही को कभी अंग्रेजों ने तक ने नहीं माना,
मगर नेहरू सरकार ने मान लिया!
पुस्तक कुछ और चीजें ध्यान में लाती है,... जैसे भारत छोड़कर पाकिस्तान जा चुके जनरल शाहनवाज़ खान को नेहरू ने पाकिस्तान से किन परिस्थितियों में वापस बुलाकर सांसद और मंत्री बनाया?
1965 भारत-पाक युद्ध के समय शाहनवाज़ खान केंद्र सरकार में मंत्री थे,
मेरठ से सांसद थे, मगर शाहनवाज़ खान का पुत्र, पाकिस्तानी सेना में कोर कमांडर के रूप में भारत के विरुद्ध युद्ध लड़ रहा था!
शास्त्री जी की केंद्र सरकार इसके वाबजूद भी शाहनवाज़ खान को मंत्रिपद से हटाने की हिम्मत नहीं कर सकी!
यही नहीं... शाहनवाज़ खान को केंद्र सरकार ने INA के सेनानी के रूप में कई सौ एकड़ जमीन शाहनवाज खान को पुरुस्कार स्वरूप प्रदान की...
हरिद्वार के पास ऐथल रेलवे स्टेशन इसी ज़मीन के एक कोने पर है!
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(पुस्तक के लेखक श्री संजय श्रीवास्तव, न्यूज़ नेटवर्क 18 में एसोशिएट एडिटर हैं।)