"तबलीगी जमात" मुस्लिमों का कट्टरवादी चेहरा
विश्व में हो रहे अधिकतर आतंकवादी हमलों में तबलीगी जमात से सम्बन्ध रखने वाले देवबंदी-वहाबी-सलाफी फिरके के लोग ही ज्यादा सामने आ रहे हैं
विश्व में हो रहे अधिकतर आतंकवादी हमलों में तबलीगी जमात से सम्बन्ध रखने वाले देवबंदी-वहाबी-सलाफी फिरके के लोग ही ज्यादा सामने आ रहे हैं
70 वर्षों से देश मे तबलीगी जमात जैसे संगठन भी चल रहे थे।। लेकिन देश को अब पता चला। क्योंकि कांग्रेस, मीडिया, बुद्धिजीवी 70 वर्षो तक।। तबलीगी जमात, उलेमा हिन्द, जमीयत ए इस्लामी, PFI जैसे कट्टरपंथी संगठनों पर पर्दा डालकर इनकीं असलियत छुपाते रहे।
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पाकिस्तान से नहीं बल्कि भारत से ऑपरेट कर रहा है दुनिया का सबसे बड़ा वहाबियत का केंद्र....!!
तबलीगी जमात जिहाद:
तबलीगी जमात जेहाद द्वारा मज़हब विशेष की अपेक्षाकृत कम कट्टर अथवा उदारवादी कही जाने वाली मुस्लिम जमात को चरणबद्ध तरीके से 4 चरणों में बेहद कट्टर और उग्र वहाबी और सलाफी विचारधारा वाली मुस्लिम जमात में परिवर्तित किया जाता है।
यह Tablighi Jamaat अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बहुत तेज़ी से कार्य कर रही है। इंडोनेशिया, मलेशिया और अफ्रीका जैसे मुस्लिम देशों में जहाँ अपेक्षाकृत उदारवादी मुस्लिम बहुतायत में हैं, वहाँ ये तबलीगी जमात ज़मीनी स्तर पर चुपचाप बड़े ही गुपचुप तरीके से कार्य करके उन्हें वहाबी विचारधारा की ओर धकेलकर कट्टर बना रही है।
विश्व में हो रहे अधिकतर आतंकवादी हमलों में तबलीगी जमात से सम्बन्ध रखने वाले देवबंदी-वहाबी-सलाफी फिरके के लोग ही ज्यादा सामने आ रहे हैं। अपने को अहले-हदीस बताने वाले मुस्लिम युवा भी कुछ वर्षों से इस तबलीगी जमात की ओर आकर्षित हुए हैं।
अभी कुछ समय पहले ये खबर आई थी कि आतंकवादी संगठन अल-कायदा ने तबलीगी जमात के माध्यम से अपने आतंकवादी उद्देश्यों की पूर्ति के लिए वीसा-पासपोर्ट तक हासिल किये थे।
यह कोई बड़ी बात नहीं है कि तबलीगी जमात दुनिया भर में मज़हबी कट्टरपन को बढ़ा रही है और आतंकवाद की नई पौध को फलने-फूलने के लिए बौद्धिक ज़मीन तैयार कर रही है बल्कि सबसे ज्यादा चौंकाने की बात ये है कि इस तबलीगी जमात का अंतर्राष्ट्रीय मुख्यालय जिसे मरकज़ (केंद्र) कहा जाता है, वो भारत में है।
जी हां! भारत की राजधानी नई दिल्ली स्थित निजामुद्दीन दरगाह के पास उर्दू-फारसी के सबसे बड़े शायर मिर्ज़ा असद उल्लाह खां "ग़ालिब" की मज़ार के ठीक सामने बनी हुई तीन-मंजिला सफ़ेद बिल्डिंग, इस अंतर्राष्ट्रीय वहाबी विचारधारा की प्रचारक तबलीगी जमात का वैश्विक मुख्यालय है। जहां दुनिया भर के जमाती आकर वहाबियत की ट्रेनिंग प्राप्त करते हैं और उसे दुनिया भर के 200 से अधिक देशों में फैलाते हैं।
1927 में मौलाना इलियास अल-कांधलवी द्वारा शुरू की गयी ये तबलीगी जमात आज दुनिया भर में बौद्धिक वहाबियत की रीढ़ है। यहाँ पर इस बात को समझना अत्यंत ही आवश्यक होगा कि तबलीगी जमात स्वयं में एक आतंकवादी संगठन नहीं है मगर ये आतंकवाद की जननी अर्थात वहाबी विचारधारा को पनपाने के लिए येन-केन-प्रकारेण खाद-पानी मुहैया करवाती है।
इस तबलीगी जमात के मुख्यालय से विश्व के लगभग हर एक देश में एक सदर (या अमीर) नियुक्त किया जाता है। जैसे कि पाकिस्तान में तबलीगी जमात का सदर तारिक जमील है। फिर उसके बाद उसके नीचे प्रान्त स्तर पर सूबा-अमीर नियुक्त किये जाते हैं और फिर उनके नीचे हर एक धर्मस्थल तक एक अमीर नियुक्त किया जाता है।
ये अमीर प्रत्येक धर्मस्थल से 10-20 लोगों की जमात बनाकर किसी दूसरे ऐसी धर्मस्थल में प्रवास के लिए लिए जाते हैं जिसके निकट रह रहे मुस्लिम अधिकतर उदारवादी विचारधारा को मानने वाले होते हैं।
एक जमात में कम-से कम लोग रखने की कोशिश की जाती है ताकि इनकी गतिविधियों पर बाहरी लोगों की नज़र न पड़े। रेलवे स्टेशनों, बस स्टेशनों आदि पर कुरता-पैजामा पहने एवं अपना भारी-भरकम सामान लिए यदि 10-15 मुस्लिम लोग मिलें तो ये फौरन ये समझ लेना चाहिए कि ये लोग तबलीगी जमात से हैं और अपने धर्मस्थल के अमीर के आदेश पर किसी सुदूर इलाके के धर्मस्थल में बहाबियत के प्रसार के लिए जा रहे हैं।
ये लोग अपना सारा राशन-पानी यानी कि गैस-चूल्हा-बर्तन-सब्जी-मसाले आदि अपने साथ लेकर जाते हैं ताकि इनको ज़रूरी चीज़ों के लिए बाज़ार आदि में घूमना न पड़े। इससे ये लोग वहाँ के लोकल प्रशासन की नज़र में आने से भी बचे रहते हैं और तबलीग के लिए अपने समय का पूर्ण उपयोग कर पाते हैं।
इनका-रहना-खाना-पीना सब कुछ उसी धर्मस्थल में होता है जिस धर्मस्थल को इनके प्रवास के लिए पहले से तय किया जाता है। इसके लिए सोर्स और डेस्टिनेशन धर्मस्थल के तबलीगी जमात के दोनों अमीर पहले से संपर्क में होते हैं। धर्मस्थल में प्रवास के दौरान ये लोग पांचो वक़्त की मज़हबी इबादत के दौरान इबादत के लिए आये हुए लोगों को रोक लेते हैं।
उस धर्मस्थल से जुड़े हुए जमात के लोग भी आसपास रहने वाले शांतिदूतों को धर्मस्थल में आने की दावत देते हैं। उसके बाद ये तबलीगी जमात के प्रचारक उनको धीरे-धीरे पहले से तय सिलेबस के अनुसार व्याख्यान देते हैं और उन्हें अपनी जमात से जुड़ने के लिए बोलते हैं। हर व्याख्यान के बाद वहाँ बैठे 5-10% लोग इनसे जुड़ने के लिए सहमत हो जाते हैं। इन जमातों से जुड़ने के लिए मुस्लिम लोगों को ज्यादा कुछ भी नहीं करना पड़ता, बस अपना पूरा समय कुछ निश्चित वक़्त के लिए देना पड़ता है।
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ये निश्चित समय 4 चरणों में बंटा हुआ होता है 3 दिन, 10 दिन (अशरा), 40 दिन (चिल्ला) और 120 दिन (माय्यावा अशरा)। वैसे तो तबलीगी जमात के ये सारे चरण हर समय कहीं न कहीं चलते ही रहते हैं लेकिन कुछ समय विशेष पर इनकी गतिविधियाँ पूरे नेटवर्क में अप्रत्याशित रूप से बढ़ जाया करती हैं।
तबलीगी जमात का पहला चरण 3 दिन का होता है जिसमें स्कूल-कॉलेजों में पढ़ने वाले छात्र, नौकरी करने वाले नौकरशाह और व्यस्त जीवन जीने वाले मुस्लिम लोग होते हैं जो ज्यादा समय तबलीगी जमात को नहीं दे सकते हैं। ये तबलीगी जमात आमतौर पर सप्ताहांत या 2-3 दिन की लगातार सरकारी छुट्टियों के दौरान आयोजित की जाती हैं। इनका दायरा लोकल स्तर पर 15-20 किलोमीटर के आसपास होता है।
तबलीगी जमात का दूसरा चरण 10 दिन (अशरा) का होता है। इस प्रकार के तबलीगी जमात के चरण आमतौर पर शीतकाल अवकाश के दौरान या थोड़ी लम्बी छुट्टी पड़ जाने वाले पर अधिक आयोजित किये जाते हैं। इनमें शामिल जमाती 30-40 किलोमीटर दूर तक के क्षेत्र को कवर करते हैं।
तबलीगी जमात का तीसरा चरण 40 दिन (चिल्ला) का होता है। वैसे तो ये चरण हमेशा ही कहीं न कहीं चलता रहता है लेकिन ग्रीष्मावकाश के दौरान जब स्कूल-कॉलेजों में छुट्टियाँ पड़ जाती हैं, तब चिल्ला जमातें बहुत ही अधिक संख्या में एक धर्मस्थल से दूसरे धर्मस्थल तक निकलने लग जाती हैं। इन जमातों का दायरा 400 से 500 किलोमीटर के बीच होता है।
तबलीगी जमात का चौथा चरण 120 दिन (माय्यावा अशरा) का होता है। इन जमातों में अक्सर उन्हीं विश्वासपात्र लोगों को भेजा जाता है जो बहुत लम्बे समय से जमात की गतिविधियों से जुड़े हुए होते हैं। इन जमातों में जाने वाले लोग फुल टाइमर जमाती होते हैं। इन जमातों में ज़्यादातर तबलीगी जमात के वही लोग शामिल होते हैं जिन्हें आने वाले समय में जमात के अन्दर कोई बड़ी ज़िम्मेदारी (जैसे कि किसी धर्मस्थल का अमीर बनना) दी जाने वाली होती है।
इन जमातों में शामिल लोगों में सबसे अधिक संख्या रिटायर्ड मुस्लिम लोगों की या लम्बी छुट्टी लेकर आने वाले शांतिदूतों की होती है। यदि आसान शब्दों में इस जमात की कार्यविधि को बताया जाए तो इस जमात से निकलने वाले लोग ही आने वाले समय में वहाबियत के झंडाबरदार बनकर निकलते हैं। इन जमातों का कार्यक्षेत्र अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर होता है। भारत से प्रतिदिन 100 से 150 अन्तर्रष्ट्रीय तबलीगी जमातें विश्व के लगभग 200 देशों के लिए रवाना होती हैं।
भारत के मद्रास से अंडमान निकोबार, इंडोनेशिया, मलेशिया, श्रीलंका तथा दक्षिण-पूर्वी देशों के लिए तबलीगी जमातें रवाना की जाती हैं। मुंबई से अरब तथा अफ्रीकी देशों के लिए जमातें रवाना होती हैं। कोलकाता से बांग्लादेश तथा पूर्वी देशों के लिए तथा नई दिल्ली से पूरे विश्व के लिए तबलीगी जमातें रवाना की जाती हैं।
कल हुई तबलीगी जमात खुलासे में भी इन्ही देशों के लोग निकले।।।