जल बचाओ, वीडियो बनाओ, पुरस्कार पाओ प्रतियोगिता में लोगों ने जीते पुरस्कार

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जल बचाओ, वीडियो बनाओ, पुरस्कार पाओ प्रतियोगिता में लोगों ने जीते पुरस्कार
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जल संसाधन, नदी विकास एवं गंगा संरक्षण मंत्रालय के द्वारा आयोजित प्रतियोगिता 'जल बचाओ, वीडियो बनाओ, पुरस्कार पाओ' के पहले पखवाड़े के विजेताओं के नाम घोषित कर दिए हैं। यह प्रतियोगिता 10 जुलाई, 2018 को शुरू हुई थी। 10 जुलाई से 24 जुलाई, 2018 की अवधि के लिए वाराणसी के श्रेष्ठ साहू, भोपाल के श्री सतीश मेवाड़ा और बोकारो के श्री गोपाल कुमार प्रजापति ने क्रमश: प्रथम, द्वतीय एवं तृतीय स्थान प्राप्त किया। विजेताओ को क्रमश: 25 हजार रुपये, 15 हजार रुपये और 10 हजार रुपये का नकद पुरस्कार दिया जाएगा।

'जल बचाओ, वीडियो बनाओ, पुरस्कार पाओ' को मंत्रालय ने भारत सरकार के mygov पोर्टल के सहयोग से online आयोजित किया था। इसका उद्देश्य लोगों में जल संरक्षण के बारे में जागरूकता पैदा करना है। प्रतियोगिता में कोई भी भारतीय नागरिक हिस्सा ले सकता है। उसे इस विषय पर एक मौलिक वीडियो बनाना जरूरी है। इसके बाद उन्हें यू-ट्यूब पर वीडियो अपलोड करना होगा और उसका लिंक www.mygov.in के वीडियो लिंक सेक्शन पर देना होगा। इस वर्ष 4 नवंबर तक हर पखवाड़े में तीन विजेता चुने जाएंगे।

पहले पखवाड़े में प्रतियोगिता संबंधी प्रतिक्रिया बहुत अच्छी रही और ये देखकर बहुत प्रोत्साहन मिलता है कि पहले, दूसरे और तीसरे स्थान के विजेता देश के विभिन्न भागों से आते हैं। mygov को कुल 431 प्रविष्टियां प्राप्त हुई थीं, जिनमें से 38 वीडियो को चुना गया था। चयनित वीडियो की जांच के बाद विभिन्न मानदंडों के आधार पर सर्वश्रेष्ठ तीन वीडियो चुने गये। रचनात्मकता, मौलिकता, तकनीकी श्रेष्ठता, वीडियो की गुणवत्ता और उनका श्रव्य प्रभाव इत्यादि के आधार पर प्रतिभागियों का मूल्यांकन किया गया।

जल संसाधन, नदी विकास एवं गंगा संरक्षण मंत्रालय भारतवासियों से अपील करता है कि वे जल संरक्षण, आदर्श जल उपयोग, जल संसाधन विकास और प्रबंधन के विषय में किये जाने वाले प्रयासों, महत्वपूर्ण योगदानों और उत्तम व्यवहारों पर वीडियो बनाकर अपलोड करें। प्रतिभागियों से आग्रह किया जाता है कि वे केवल मौलिक वीडियो ही अपलोड करें। जल संरक्षण पर अभिनव विज्ञापनों इत्यादि का भी स्वागत है। वीडियो न्यूनतम 2 मिनट से लेकर 10 मिनट की अवधि तक होना चाहिए। वे हिंदी, अंग्रेजी या अन्य क्षेत्रीय भाषाओं में हों तथा भारतीय कॉपीराइट अधिनियम, 1957 या तीसरे पक्ष के बौद्धिक संपदा अधिकारों के किसी प्रावधान का उल्लंघन न करते हों।

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