मैं राम हूँ: मैं निर्वासित था अयोध्या से

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मैं राम हूँ: मैं निर्वासित था अयोध्या से

मैं राम हूँ -

मैं निर्वासित था अयोध्या से

मैं राम हूँ -

मैं निर्वासित हूँ आज भी

अयोध्या से।

मैं राम - निर्वासित रहा

सीता की उलाहनाओं से भी

निःशब्द, राजमहल से निकलती सीता ने

नहीं किया मुझसे कोई भी प्रश्न।

सीता-

निर्वासित किया जिसने

अपने प्रति मेरे कर्तव्यों से।

मैं राम -

निर्वासित रहा

शब्दों और भावों से भरी पातियों से

जो कभी नहीं भेजी मुझे

वनवासिनी सीता ने।

कभी नहीं कहा

कि मेर हीे कारण मिले

पुनः वनवास ने

कितना व्यथित किया उसे।

निर्वासित रहा मैं

उन संदेशों और गीतों से

जो सूचित हुए अयोध्या को

महर्षि की कुटिया से

पुत्र-जन्म के उत्सव पर।

सरयू ने संभवतः

देख लिया था अश्रुजल

ज़्यों अनायास ही हाथों से

छूट पड़ी थी दातून।

मैं राम-

मिथिला की व्यथा को

चित्त पर धरे लौट आया था

जान चुका था-

मिथिला ने बढ़ा ली है अवध से

समुद्र-सी दूरी।

सीता की विदाई का उलाहना देते

मिथिला के बाग, सरोवर, गृहस्थ

निर्वासित रखते हैं मुझे

अपनी स्मृतियों से।

मैं राम हूँ -

जिसे भुला रखा है उस लोक ने भी

जिनके मध्य भेज दी थी मैंने अपनी सीता

वह लोक जिसने कहा वह दूर है मुझसे

क्योंकि धर्म हूँ मैं।

मैं राम हूँ-

मेरे निर्वासन के

अनगिनत प्रयास पर

मुखरित अयोध्या

निर्वासित नहीं करती

मेरे हिस्से का प्रेम!

मेरे बिछोह में

बिखरती अयोध्या

पुकारती है मुझे

घाटो, गलियों, रास्तों से

फूटती है सुगंध-सी

अंकित किए जाती है

समय-चक्र पर

मेरा ही नाम।

मेरी ही पैजनियों को

सीने से लगाए

मठों, मंदिरों, गलियों, घाटों में

फिरती अयोध्या

लौट आती है सरयू के तट पर

पूछ जाती है कि

कहाँ हूँ मैं?

प्रतीक्षारत अयोध्या

मना नहीं पाती

कोई सा भी उत्सव

अपने मन से।

दियों के झिलमिल को

चंद्रमा तक पहुँचा आती है सरयू

दिए जो दे जाते हैं मुझे

मेरे निर्वासन के दुःख के

अनगिनत संदेश।

मैं राम-

प्रतीक्षारत हूँ

सीता के लौट आने की

उसके बिना क्या जाऊँ मैं अयोध्या।

मैं राम हूँ -

अनंतकाल से मेरी है अयोध्या

मैं राम हूँ -

अनंतकाल तक मेरी रहेगी अयोध्या!

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