कांग्रेस : प्रियंका "गांधी" वाड्रा परिवार के मुक़ाबले कमजोर होती राहुल गांधी की स्थिति ?

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प्रियंका वाड्रा के कोरोनाकाल बस कांड के इस पूरे दौरान क्या भूतपूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी कहीं भी दिखे?

प्रियंका की इस बस राजनीति के दौरान स्वयं राहुल गांधी का कोई ट्वीट, बयान आदि देखने को नहीं मिला अभी तक। राहुल के नजदीकी समझे जाने वाले किसी कांग्रेस नेता से लेकर कांग्रेस आईटी टीम तक के किसी कर्मचारी ने कोई सार्वजनिक बयान दिया हो यह देखने में नहीं आया।

जो भी लोग राजनीतिक मामलों से परिचित हैं वे अच्छी तरह जानते हैं कि कभी युवा कांग्रेस के अध्यक्ष रहे आरपीएन सिंह राहुल टीम से आते हैं और उनके रहते उन्हीं के जिले कुशीनगर के अजय कुमार सिंह लल्लू को उत्तर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनाये जाने के पीछे अपनी मां सोनिया गांधी के के जरिये प्रियंका ही रहीं। यही वजह है कि सभी ने यूपी कांग्रेस अध्यक्ष लल्लू को सड़क से लेकर लॉकअप, जेल तक घिसटते-कपड़े फाड़ते देखा। लल्लू के अलावा वाड्रा के घोषित चेले पूनिया और गौरव पांधी... इसके अलावा लगभग कांग्रेसियों ने प्रियंका की बस की सवारी नहीं की।

यह सामान्य नहीं है।

लोकसभा 2019 के चुनाव हारने के बाद बिना किसी विरोध, विवाद, असंतोष, शिकवा-शिकायत जिसकी कोई जगह स्वामिभक्त कांग्रेस पार्टी में गांधी परिवार को लेकर हो ही नहीं सकती... अचानक बिलावजह राहुल गांधी "ये लो अपनी लकुटि कमरिया" शैली में अध्यक्ष पद से रूठ जाते हैं। बालहठ चलता है.. मनाने के साथ ही आह-आह, हाय हाय और नहीं-नहीं के दौर चले। अंततः ड्रामा बेटे से शुरू हो माता जी तक पहुंच कर खत्म हुआ।

जो इसे भी सामान्य मानते हैं वे सही नहीं हैं। दरअसल यह कांग्रेस के भीतर नेतृत्व के स्तर पर अधिकार और वर्चस्व की लड़ाई थी, जो राहुल लड़ रहे थे और लड़ रहे हैं। राजनीति में कांग्रेस पार्टी के पारिवारिक विरासत को संभालने के बाद से बाकायदा पार्टी अध्यक्ष बनने तक... अब तो याद करने और हिसाब लगाने में भी मुश्किल होता है कि राहुल ने कितने और कौन-कौन से चुनाव हारे! अंतिम अगर बताना हो तो अमेठी याद जरूर आता है।

अंततः राहुल पर दबाव पड़ा। और यह दबाव कहीं बाहर से नहीं बल्कि घर के भीतर से पड़ा और कहा जा सकता है कि 'गांधी' पर सवाल 'वाड्रा' ने उठाया। सामने प्रियंका वाड्रा.. नेपथ्य में रॉबर्ट वाड्रा और भविष्य में रेहान वाड्रा जो अब कागजों पर रेहान गांधी बनाया जा चुका हैं।

रही बात सोनिया एंटोनियो माइनो गांधी जी की चुप्पी के साथ लगभग यंत्रवत होना.. तो इसकी वजह है सोनिया पर गहरे दबाव का होना! यह दबाव है वेटिकन का, चर्च का। जिसने 2019 के लोकसभा चुनावों के नतीजों के बाद अपने दीर्घकालिक एजेंडे के तौर पर तैयार किया। सोनिया के बाद भारतीय राजनीति में परिवार की संपत्ति कांग्रेस का नेतृत्व करने और सत्ता वापसी के मामले में राहुल पर चर्च को अब भरोसा न रह गया। अब बचीं प्रियंका... जिन्हें राजनीति में चर्च ने सक्रिय तो 2019 लोकसभा चुनाव से पहले ही करा तो दिया था लेकिन भाई-मां को सहयोग करने जैसा दिखने तक ही रोके रखा था। लेकिन 2019 चुनावी नतीजों जो पिछले साल आज के ही दिन भाजपा के पक्ष में प्रचंड बहुमत के रूप में आये थे, प्रियंका वाड्रा को काम पर लगा दिया। प्रियंका के साथ ही रॉबर्ट वाड्रा की राजनीतिक सक्रियता कांग्रेस में लगातार बढ़ते जाने वाली है। आगे के लिए रेहान वाड्रा... बाकायदा गांधी के तौर पर तैयार है ही।

पार्टी महासचिव प्रियंका वाड्रा का 2019 लोकसभा के बाद से ही अक्सर जमीन पर उतरना... इस बस कांड से पहले सीएए के कथित विरोध के समय उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ की सड़कों पर किये गए तमाशे इस सबका साफ साफ संकेत है कि कांग्रेस में नेतृत्व की विरासत की दावेदार और सक्रियता में प्रियंका सामने हैं।

चर्च के तय कार्यक्रम के अनुसार गांधी परिवार की अगली नस्ल खुद भी सियासत मे आने को बेचैन नजर आयी है। खानदान की इस नयी कड़ी की ब्रांडिंग की तैयारी भी शुरू हुई। रेहान ने उम्र का 19 वां साल पूरा कर लिया और बीसवें मे प्रवेश किया है। बालिग होते और 2019 लोकसभा चुनाव में पहली बार वोट करने के बाद से ही सियासी बयान देने लगे। चुनाव के दौरान पब्लिक डोमेन मे राजनीतिक टिप्पणियां, कांगेस का बचाव, भाजपा सरकार की आलोचना, सवाल करना और उंगलियां उठाना खूब हुआ बिल्कुल विपक्षी नेता की तरह। अभी तक रेहान का फोकस कांग्रेस आलाकमान यानी अपनी माता प्रियंका वाड्रा गांधी और मामा राहुल गांधी का पक्ष रखना रहा है। सोशल मीडिया के प्लेटफार्मस पर वो खूब एक्टिव दिखते हैं। रेहान वाड्रा के नाम से पेज बना है। जिसपर समय-समय पर पर खूब सियासी बातें मुखरित होती हैं।

इसलिए किसी ने इसका सज्ञान लिया हो या न लिया हो लेकिन मुझे कम से कम प्रियंका वाड्रा की हालिया उत्तर प्रदेश केंद्रित बस में राहुल गांधी का सवार तक न होना मेरी इस धारणा की पुष्टि करता दिखता है। वैसे भी उनसे अमेठी सीट खाली करवा ही ली गयी है जिस पर रेहान क्यों न सोचें बैठने को!

बाकी समय है जो समय के साथ स्वयं सत्य को स्थापित करेगा।

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