जागो सरकार : Web Series देश और लोगों की धार्मिक भवानाओं से खेल रहीं हैं

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जागो सरकार : Web Series देश और लोगों की धार्मिक भवानाओं से खेल रहीं हैं

आजकल भारत में सिनेमा के इस रूप का भयंकर नशा चल रहा है। "ओवर द टॉप मीडिया सर्विसेज" ओटीटी के तहत नेटफ्लिक्स और अमेजॉन प्राइम बिना कोई कांट-छांट के डायरेक्ट कंटेंट आपके घर में, मोबाइल पर पहुँचा रहे है।

दरसअल डिजिटल प्लेटफॉर्म "सेंसरशिप" के दायरे में नहीं आते है। एक दम खुल्ला मैदान है। कोई भी कंटेंट दिखा सकते है। और दिखाया भी जा रहा है। समय सीमा की कोई चिंता नहीं है।

इस समय तो देश के सोशल मीडिया में "पाताल लोक" नाम की वेब सीरीज़ को लेकर माहौल गरम है। इस सीरीज़ में दिखाई गई कहानी को लेकर लोगों में बहुत आक्रोश है और ये आक्रोश दिन प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है।

यह वेब सीरीज़ है या राष्ट्रवाद, सनातन को बदनाम करने और खुली गाली देने का षड्यंत्र ? फ़िल्म की प्रोड्यूसर अनुष्का शर्मा (क्रिकेटर "विराट कोहली" की पत्नी) और डायरेक्टर और पटकथा लेखक सुदीप शर्मा हैं लेकिन फ़िल्म का कंटेंट देखकर लगता है कि वेब सीरीज़ के असली फाइनेंसर शायद "दुबई या सऊदी अरब" से हों

1. इस वेब सीरीज़ में एक कुतिया का नाम "सावित्री" रखा गया है, जबकि सभी जानते हैं कि सावित्री का नाम हिन्दू स्त्रियॉं में श्रद्धा से लिया जाता है।

2. अप्रत्यक्ष रूप से योगी आदित्यनाथ से मिलते जुलते पात्र पर प्रहार किए गए हैं, उन्हें किसी और पात्र के माध्यम से भगवा कपड़ों में छुआछूत करता दिखाया गया है।

3. कोर्ट में यह साबित हो जाने के बाद भी कि जुनैद की हत्या ट्रेन की सीट के लिए एक झगड़े का परिणाम थी उसमें गौमांस का एंगल डाल कर लिंचिंग करार दिया गया है

4. शुक्ला नामक ब्राह्मण पात्र स्त्री संसर्ग/सेक्स/बलात्कार करते समय कान पर "जनेऊ" चढ़ाता है

5. मन्दिर के पुजारी और महंत मन्दिर में मांस खाते हुए दिखाए गए हैं।

6. हिन्दू महिला को जब मुस्लिम औरत पानी देती है तो हिन्दू महिला पानी पीने से इंकार कर देती है

7. हिन्दू भगवान बने पात्र को अपमानजनक तरीके से गिरता हुआ दिखाया गया है

8. सारे दुर्दान्त अपराधी, गुंडे शुक्ला, त्रिवेदी, द्विवेदी और त्यागी दिखाए गए हैं

9. एक मुस्लिम करेक्टर इमरान रूपी है जो निहायत टेलेंटेड हैं पुलिस में सब-इंस्पेक्टर है और आईएएस की तैयारी कर रहा है हिन्दू उस पर छींटा-कशी करते हैं

10. दिखाया गया है कि आर्यावर्त नामक देश मे मोमिनों को पानी पीने तक की आज़ादी नहीं है

11. इस पाताल लोक वेब सीरीज़ में साधु-संतों माँ-बहन की गलियां बकते दिखाए गए हैं

12. मार काट के लिए गुंडे विशेषकर 'चित्रकूट' से बुलाये जाते हैं

13. अप्रत्यक्ष रूप से वर्तमान सरकार को तानाशाही शासन बताया गया है

14. अनेक बार भगवा कपड़ो में "जय श्रीराम" बोलते लोगों को गुंडागर्दी करते दिखाया गया है

इसी प्रकार इससे कुछ समय पहले आईं "Ghoul", "Leila" और Sacred Games ने भी लोगों की भावनाओं से खिलवाड़ करते हुये उन्हें आक्रोशित किया था और जनता में इस प्रकार की OTT पर आने वाली वेब सीरीज़ पर अंकुश लगाने की मांग उठी थी।

"घोल" अर्थात घोल अरबी शब्द है। पिशाच या राक्षस।

इस शब्द के इर्दगिर्द ऐसे भारत की कल्पना की गई है। जिसमें अल्पसंख्यक/शांतिदूतों पर अत्याचार बढ़ गया है। तानाशाह सरकार की क्रूर आर्मी आतंकियो से बेहद कठोरता से व्यवहार करती है। भिन्न भिन्न प्रकार की यातनाएं दी जाती है। सरकार/सिस्टम में विश्वास नहीं रहा। तब अली, घोल/पिचाश को बुलाता है। और आर्मी से बदला लेते हुए, सभी को मार देता है।

"लैला" प्रयाग अकबर की नॉवेल है। लैला में दो हजार चालीस के भारत की कल्पना की गई है। ऐसा शासन बतलाया गया है। कि अल्पसंख्यक/शांतिदूतों पर अत्याचार बढ़ गए। और साम्प्रदायिक वारदातें काफी बढ़ गई है। इसमें लव-जिहाद को भी पिरोहा गया है। हर तरफ भगवा पहने लोग है। जो मनमानी कर रहे है। अभिव्यक्ति की आजादी का नामोनिशान नही है। बापू की तस्वीर को कोई स्थान नही है, आर्यवर्त में।

इन दोनों कंटेंट में मोदी सरकार के कार्यकाल 1.0 और 2.0 के आधार पर हिन्दू फोबिया वातवारण की कल्पना की गई है।

आज हमारा बॉलीवुड दो गुटों में विभाजित है।

"दो गुट" मतलब लेफ्ट और राइट ।

क्योंकि उरी, परमाणु, मणिकर्णिका, जैसी फिल्में लेफ्ट के लिए अंध-राष्ट्रीयता और प्रोपेगैंडा करार दिया था।

इसलिए सारे क्रिएटिव लेफ्टिस्ट डिजिटल प्लेटफार्म पर आ चुके हैं। क्योंकि फ़िल्मी कंटेंट पर सेंसर बोर्ड की कैंची लटकी हुई है। बिना सेंसर बोर्ड की अनुमति के कंटेंट दर्शकों तक नहीं जा सकता है। टेलीविजन कंटेंट पर भी गाइड लाइन तय है। परन्तु डिजिटल प्लेटफॉर्म के लिए कोई कानून नहीं है।

लैला और सेक्रेड गेम्स के बाद डिजिटल प्लेटफॉर्म को सेंसरशिप के दायरे में लाने की मांग उठी है। क्योंकि सेक्रेड गेम्स तो बेहद असभ्य, अश्लीलता भरा है।

भारत सरकार पहले से ही ओटीटी प्लेटफार्मों के नियमन पर विचार कर रही है। सुप्रीम कोर्ट ने साल 2019 की शुरुआत में केंद्र को ओटीटी मीडिया प्लेटफॉर्म पर प्रदर्शित सामग्री को विनियमित करने का निर्देश दिया था। अक्टूबर दो हजार उन्नीस में भारत सरकार के सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने डिजिटल प्लेटफॉर्म के ओएनर्स के साथ मीटिंग करते हुए; उन्हें कंटेंट के लिए चेताया था। साथ ही कुछ वक्त भी दिया है। इधर सरकार बिल लाने की तैयारी में है।

आज सोशल मीडिया पर पाताल लोक को लेकर बहस छिड़ी हुई है। और बहस लम्बी हो चली।

डिजिटल प्लेटफॉर्म से पूर्व भी फिल्मों के जरिए प्रोपेगैंडा परोसा गया है। लेकिन सेंसर के दायरे में। परन्तु डिजिटल अभी खुल्ला है। कंटेंट को लेकर इसको नियमबद्ध करना अति आवश्यक है। क्योंकि नेटफ्लिक्स और अमेजॉन प्राइम के अलावे ऑल्ट बालाजी, उल्लू, आदि अश्लीलता की हदें पार कर चुके है।

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साभार : इस समीक्षा लेख की काफी सामग्री Pawan Saxena एवं निलेश पान्डे के द्वारा लिखित है।

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