मरता बंगाल: ग्राउंड जीरो से एक भारतीय।
वामपंथियों ने कलकत्ता में जिस चेंगड़ा पॉलिटिक्स को जन्म दिया संभवतः उसको पूरे बंगाल में लागू किया होगा (बंगाल के लोग बताएं)। वामपंथियों ने हर मुहल्ले में एक क्लब बनाया जिसमें मुहल्ले के समस्त लफंगे लुच्चे और अराजक गुंडे (चेंगड़े) दिन भर कैरम खेलते थे/हैं और वही से अवैध धंधा वसूली और लोकतंत्र की नस- "वोट" को नियंत्रित करते हैं। मोहल्ले के शरीफ लोगों के ऊपर इस धमकी की तलवार लटका कर कि- "मत दो वोट लेकिन तुम्हारी बहन बेटियां तो इसी क्लब के चौराहे से गुजरेंगी"।
Dr. Tribhuwan Singh | Updated on:31 March 2018 4:15 PM IST
वामपंथियों ने कलकत्ता में जिस चेंगड़ा पॉलिटिक्स को जन्म दिया संभवतः उसको पूरे बंगाल में लागू किया होगा (बंगाल के लोग बताएं)। वामपंथियों ने हर मुहल्ले में एक क्लब बनाया जिसमें मुहल्ले के समस्त लफंगे लुच्चे और अराजक गुंडे (चेंगड़े) दिन भर कैरम खेलते थे/हैं और वही से अवैध धंधा वसूली और लोकतंत्र की नस- "वोट" को नियंत्रित करते हैं। मोहल्ले के शरीफ लोगों के ऊपर इस धमकी की तलवार लटका कर कि- "मत दो वोट लेकिन तुम्हारी बहन बेटियां तो इसी क्लब के चौराहे से गुजरेंगी"।
आज बंगाल का अध्ययन कर रहे एक मित्र से वार्तालाप से ये पता चला कि बंगाल की चेतना अंतिम सांस ले रही है।
बंगाल आज से ढाई सौ साल पूर्व विश्व का सबसे समृद्ध और वैभवशाली प्रदेश था जब 1757 मंप यूरोपीय डकैतों ने उस पर कब्जा किया। उसके वैभव को उन्होंने नष्ट किया लेकिन चेतना नष्ट नही कर पाए थे। क्योंकि 1906 में जिस कारणों और आधारों को नष्ट करने के लिए लुटेरों ने बंगाल का विभाजन किया था, उसी बंगाल ने पूरे देश को सुसुप्तवस्था से झकझोर कर आंख मलते हुए उठ खड़े होने को मजबूर कर दिया। इसके पूर्व भी बंकिम चंद चटर्जी का "सुजलाम सुफलाम मलयज शीतलाम शस्य श्यामलाम मातरम" बन्दे मातरम का उद्घोष और विवेकानंद की 1893 की शिकागो हुंकार ने विश्व को चुनौती दिया था। लेकिन बंग-भंग से निकले सुभाष चंद्र बोस, सान्याल खुदी राम बोस आदि ने भारत की ही नही अपितु विश्व चेतना को झकझोर दिया था और सम्पूर्ण भारत को नेतृत्व प्रदान किया था।
तो पिछले 70 वर्षों में ऐसा क्या हुआ कि चेतन बंगाल "भय-भूख-मैथुन-निद्रा और आहार" के पशुवृत्ति तक सीमित हो गया है। उसकी चेतना को "मूढ़ी-मांस-मछली" तक किस तरह सिमटने को विवश कर दिया गया है - कि दिन में एक बजे से शाम 5 बजे तक बंगाल कुम्भकर्णी नींद में प्रतिदिन सो जाता है चाहे जो हो जाय।
में कलकत्ता में एक साल रहा हूँ लेकिन तब बहुत छोटा था। लेकिन पिछले 50 सालों में विकसित किये गए "टेरर मॉड्यूल की चेंगड़ा पॉलिटिक्स" अभी भी विस्मृत नही हुई है।
वामपंथियों ने कलकत्ता में जिस चेंगड़ा पॉलिटिक्स को जन्म दिया संभवतः उसको पूरे बंगाल में लागू किया होगा (बंगाल के लोग बताएं)। वामपंथियों ने हर मुहल्ले में एक क्लब बनाया जिसमें मुहल्ले के समस्त लफंगे लुच्चे और अराजक गुंडे (चेंगड़े) दिन भर कैरम खेलते थे/हैं और वही से अवैध धंधा वसूली और लोकतंत्र की नस- "वोट" को नियंत्रित करते हैं। मोहल्ले के शरीफ लोगों के ऊपर इस धमकी की तलवार लटका कर कि- "मत दो वोट लेकिन तुम्हारी बहन बेटियां तो इसी क्लब के चौराहे से गुजरेंगी"।
इस टेरर मॉड्यूल को उन्होंने इस्लाम से उधार लिया या स्टॅलिन लेनिन या माओ जैसे हत्यारों के देश से, ये खोज का विषय है। लेकिन इसी मॉड्यूल से उन्होंने बंगाल को चेतन बंगाल से मरता बंगाल बनाया है। जिस बंगाल ने पूरे विश्व को अचंभित किया था आज वही बंगाल अपनी मरती हुई चेतना को लेकर न अचंभित है और न ही चिन्तित।
जिस टेरर मॉड्यूल और चेंगड़ा पॉलिटिक्स को वामपंथियों ने राजनैतिक सत्ता प्राप्त करने के लिए विकसित किया था उसको ममता दी ने अपहृत कर लिया तो बंगाल का वामपंथ भी प्रायः मृतप्राय हो गया है।
मूल चीज है -
टेरर मॉड्यूल, चेगड़ा पॉलिटिक्स।
ये चेंगड़ा पॉलिटिक्स का टेरर मॉड्यूल सिर्फ इलेक्शन को ही नियंत्रित नहीं करता है बल्कि सरकारी संस्थाओं और गैर सरकारी संस्थाओं के साथ-साथ समाज को भी भय के हथियार से नियंत्रित करता है।
और यही गिरोह संस्थाओं से वसूली करके अवैध धंधे भी चलाता है। चूंकि सरकार में इसकी मौसी बैठी है तो इसको किसी का भय भी नही है।
ये मेरी हाइपोथिसिस है। जोड़िए या घटाइए इसमें से।
लेकिन बोलिये जिससे मरते बंगाल को पुनः चेतना मिल सके।
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संपादक - "कश्मीर मर चुका है बंगाल मर रहा है । केरल कब मरेगा ये किसको अब पता है ॥