नक्सलबाड़ी : तब और अब
इस आंदोलन की सफलता के फलस्वरूप पश्चिमी बंगाल से काँग्रेस को उखाड़ के कम्युनिष्ट शासन आ गया जो कि बिना किसी रोक-टोक के निर्बाध तरीके से 38 वर्षों तक रहा। 38 वर्ष बहुत होते हैं किसी भी तर्ज पर राज्य का कायापलट करने के लिए - वो भी बंगाल जैसा राज्य जहाँ कोयला, खनिज, पानी, खेती, चाय, बीड़ी, पहाड़, नदियाँ, झरने सब कुछ हों। परंतु कम्युनिष्टों ने बंगाल को तरक्की के रास्ते पर ले जाने की जगह बंगाल को कंगाली के दलदल में धकेल दिया।
इस आंदोलन की सफलता के फलस्वरूप पश्चिमी बंगाल से काँग्रेस को उखाड़ के कम्युनिष्ट शासन आ गया जो कि बिना किसी रोक-टोक के निर्बाध तरीके से 38 वर्षों तक रहा। 38 वर्ष बहुत होते हैं किसी भी तर्ज पर राज्य का कायापलट करने के लिए - वो भी बंगाल जैसा राज्य जहाँ कोयला, खनिज, पानी, खेती, चाय, बीड़ी, पहाड़, नदियाँ, झरने सब कुछ हों। परंतु कम्युनिष्टों ने बंगाल को तरक्की के रास्ते पर ले जाने की जगह बंगाल को कंगाली के दलदल में धकेल दिया।
हम दिल्ली विवि में पढ़ते थे,
कुछ मित्र और भाई साहब JNU में थे.... अक्सर JNU जाना होता था, शनिवार और रविवार लगभग वहीँ JNU में ही बीतता था.... उस जमाने में JNU में किसी कोने में भी गैर कम्युनिस्ट विचारधारा का कोई नामलेवा नहीं हुआ करता था.... जो थे भी वो AISA/SFI की भीड़ के आगे दीखते नहीं हैं.... हम बाहरी ही जाके दो चार बात बोल आते थे.... तब ही पहली बार संघी की उपाधि मिली थी, हालाँकि आज तक संघ से कोई आस पास का सम्बन्ध नहीं लेकिन विचारधारा समान है....
1993 में चंद्रशेखर प्रसाद JNU का अध्यक्ष बना था, सिवान से पटना होते हुए JNU आया था और खांटी माओवादी - लेनिनवादी जिसके बोल में एक भी अपशब्द नहीं होता था, व्यावहारिक सौम्यता में उसका कोई सानी नहीं था.... लेकिन अगर उसके भाषण को सुन ले तो कमजोर मगज़ वाला तुरन्त AK47 उठा के लाइन से लोगों को मारना चालू कर दे.... खैर कम्युनिष्टों से लड़ाई कैसे करनी है उसका मन्तर भी चन्द्रू से ही सीखा....
उन दिनों भी पूरे JNU में नक्सली से हमदर्दी, नक्सली के नाम पर क्रान्ति का आह्वान, नक्सली के नाम पर उठा पटक.... हम सोचे कि ये नक्सली है क्या.... और फिर एक दिन चल पड़े दिल्ली से हावड़ा....
कुछ दिन कलकत्ते में लाल सलाम वालों का राज-काज का अनुभव लेने के बाद हावड़ा से सिल्लीगुड़ी आए.... हर यात्रा में मिलने वाले कम्युनिष्ट विचार वाले लोग ही हुआ करते थे....
1990 से 1994 तक की हमारी यात्रा के समय भी बंगाल में कम्युनिष्ट राज था और उन्ही कम्युनिष्ट लोगों के साथ ही हम 24 उत्तर परगना, सिलीगुड़ी, आसनसोल, बीरभूम, मेदिनीपुर आदि जा चुके थे....
पहली नक्सलबाड़ी की यात्रा....
वो पहला अनुभव जिसने सोच को एक दिशा दिया और जीवन पर्यन्त भूल नहीं पाएँगे.... अब तक कुल 5 बार नक्सलबाड़ी आ चूका हूँ.... न्यू जलपाईगुड़ी और बागडोगरा से गुजरा तो कई बार हूँ लेकिन हर बार चाह के भी नक्सलबाड़ी नहीं जा सके.... कानू सान्याल से 1994 में उनके घर में मुलाकात हुई थी.... JNU में पढ़ने वाले मित्र के मित्र जो जेवियर्स, कलकत्ता में पढ़ते थे और साथ में नक्सलबाड़ी आए थे उन्होंने ही मुलाकात कराई थी....
दार्जीलिंग लोकसभा के अन्तर्गत आता है सिलीगुड़ी....
दार्जीलिंग जिले के सिलीगुड़ी खण्ड में आता है हाथीघिसा ग्राम पंचायत। इस ग्राम पंचायत में 30 गाँव हैं,
यहाँ पर ही है गाँव जिसको नक्सलबाड़ी बोला जाता है। इसी इलाके का नेता था कानु सान्याल जिसने चारु मजूमदार और जंगल संथाल के साथ मिलकर हिंसक कम्युनिष्ट आंदोलन "नक्सलवाद" का शुरूआत किया था। नक्सलवाद माने नक्सलबाड़ी से उठे विचार.... नक्सली माने नक्सलबाड़ी का रहने वाला.... खैर इन लोगों का मानना था कि सरकारों ने लोगों के साथ भेद भाव किया, जुल्म किये और इनके संसाधनों को छीना। देखा जाए तो एक सीमा तक इन आरोपों में शत-प्रतिशत सच्चाई है क्योंकि तब की काँग्रेस की सरकारों (केंद्र/राज्य) और उसके पोषित बाबुओं ने भोले-भाले गाँव वालों और आदिवासियों को खूब लूटा और शोषण किया। जमीन, जंगल और खनिज सब लुटे.... उनके हक़ के प्राकृतिक संसाधनों का जम के दोहन हुआ, उनको कुछ न देकर काँग्रेस के नेताओं, बाबुओं और पुलिस ने जेबें भरी। गरीब-गरीब होते जा रहा था और दलाल, लुटेरे, चोर-बेईमान, तस्कर अरबपति बन रहे थे। पुलिस इन पर जुल्म ढाने का और ताकत से हर चीज़ छीनने का काम करती थी। अतः इसके खिलाफ आवाज़ उठनी और आंदोलन होना स्वाभाविक ही था।
नतीजा नक्सल आंदोलन - ये एक हथियार बंद आंदोलन था जब एक दिन जंगल संथाल और कानू सान्याल के नेतृत्व में नक्सलबाड़ी के लोगों ने पुलिस पार्टी पर हथियारबंद हमला किया और कई पुलिस वाले मार डाले.... कई जमींदारों और व्यवसयियों को मार के लटका दिया.... बाद में इस आंदोलन को चीन से फण्ड मिलने लगा.... इस आंदोलन का रुख बीजिंग से तय होने लगा, समय-समय पर ये तीनों चीन की यात्राएँ भी करते थे।
इस आंदोलन की सफलता के फलस्वरूप पश्चिमी बंगाल से काँग्रेस को उखाड़ के कम्युनिष्ट शासन आ गया जो कि बिना किसी रोक-टोक के निर्बाध तरीके से 38 वर्षों तक रहा। 38 वर्ष बहुत होते हैं किसी भी तर्ज पर राज्य का कायापलट करने के लिए - वो भी बंगाल जैसा राज्य जहाँ कोयला, खनिज, पानी, खेती, चाय, बीड़ी, पहाड़, नदियाँ, झरने सब कुछ हों।
परंतु कम्युनिष्टों ने बंगाल को तरक्की के रास्ते पर ले जाने की जगह बंगाल को कंगाली के दलदल में धकेल दिया। उद्योग बंद हो गए, पानी के रास्ते का उपयोग सिंचाई की जगह भारत - बांग्लादेश के बीच तस्करी के लिए होने लगा। चाय, सिंघाड़ा, ड्रग्स और पशुओं के तस्करी को कम्युनिष्ट कैडर ने सँभाल लिया। जो विरोध करता या उनका साथ न देता उनकी हत्या की जाने लगी। बंगाल बर्बाद कर दिया कम्युनिष्टों ने....
इस सब के बीच हाथीघिसा ग्राम पंचायत - नक्सलबाड़ी और गर्त में डूबता चला गया। नक्सलबाड़ी में न कोई विद्यालय, न हस्पताल, आने-जाने के कच्चे रस्ते जिस पर साइकिल या राजदूत मोटर साइकिल से ही चला जा सकता था। न बिजली, न ही शुद्ध पेय जल, न ही कृषि उपज को मंडी जाने की व्यवस्था।
मेरे 1994 के यात्रा के समय भी नक्सलबाड़ी पूरा-पाषाण काल में ही जी रहा था, और 2013 के चौथी यात्रा में भी वही हाल था। न वामपंथियों ने कुछ किया और न ही ममता सरकार ने। नक्सलबाड़ी में कुछ नहीं, जहाँ से गरीबों और सर्वहारा की लड़ाई का सशत्र आन्दोलन शुरू हुआ वहाँ गरीब और गरीब हो गया, सर्वहारा अपना सब कुछ हार गया। बदले में नक्सल आंदोलन वाले "नक्सलवादी" नाम को लेकर बस्तर, गढ़चिरौली, करीमनगर अबूझमाड़ होते हुए रॉबर्ट्सगंज, गया, धनबाद, जसीडीह, मयूरभंज, कंधमाल और देवगढ़ तक फ़ैल गए। अवैध वसूली, हथियार, तेंदू पत्ता और ड्रग्स के तस्करी के धंधे को वो आंदोलन का नाम दे चुके हैं। इसको चलाने वाले शहर से लेकर दंडकारण्य में बैठे शहस्त्र कम्युनिष्ट नेता मालामाल हैं और इनके बच्चे विलायत में मौज की जिंदगी बसर कर रहे हैं। तस्करी और वसूली का हिसाब करने के बाद ये भी शहरों और विदेशों में छुट्टियाँ मनाते दीखते हैं।
नक्सलबाड़ी 2016 में.....
2014 में मोदी सरकार आने के बाद सांसद आदर्श ग्राम योजना चालू हुआ।
इसके अन्तर्गत दार्जीलिंग से भाजपा सांसद श्री यस. यस. अहलूवालिया जी ने इसी पूरे इलाके को गोद लिया। बहुत कठिन थी डगर क्योंकि नक्सलवादी मानसिकता से घिरे लोगों में काम करना था। विश्वास बनाए रखना था। वहाँ काम करना था जहाँ बिजली के खम्भे तक नहीं थे, मोबाइल टावर इतने दूर कि सिग्नल न के बराबर, 30 गाँवों के इलाके में सिर्फ 137 हैण्डपम्प थे.... 4000 से ऊपर बने मकानों के इलाके में 50 से कम टॉयलेट, विद्यालय के नाम पर कुछ खँडहर और हस्पताल के नाम पर चारदीवारी।
पूरा माहौल नक्सली के नाम पर कम्युनिष्ट पंथी से भरा हुआ.... पहली बार जब साँसद इलाके में योजनाओं को लेकर गए तो वो सबसे पहले कानू सान्याल के घर गए और उनके लोगों को समझाया, सारी तरक्की की योजनाएं बताईं। वर्षों तक खूनी खेल खेल रहे कानु सान्याल का परिवार और लोग सांसद की बात मान गए....
आज इलाके को गोद लेने के इतने समय के बाद.... 2000 टॉइलट बन चुके हैं, सांसद निधि और केंद्र की मदद से सड़कें 60% बन चुकी हैं। विद्यालय का मरम्मत हो चूका है, अस्पताल चल रहा है और सिलीगुड़ी से डॉक्टर की टीम हफ्ते में दो तीन बार आती है। बिजली के खम्भे लगाए जा चुके हैं और इस पर भी योजना बन रही है कि इलाके में सोलर ग्रिड लगा के बिजली सप्लाई किया जाए जिससे 24X7 बिजली मिले....
2016 तक केरोसिन के लैंप और दिए जलाने वालों के लिए ये क्या हो रहा है खुद ही सोच कर देखिये। काम चल रहा है उम्मीद है कि 2018 तक हाथीघिसा-नक्सलबाड़ी एक आदर्श ग्राम पंचायत बन के उभरेगा। ये आसान भी नहीं था.... सांसद महोदय को कम्युनिष्ट और तृणमूल के गुंडों से भी दो-दो हाथ करना था क्योंकि ये काम होने से पूरा उत्तर बँगाल इनके हाथ से फिसल जाता है ....
इसका सन्देश दूर दंडकारण्य या कंधमाल में बैठे लोगों तक पहुँचता जिससे माओवादी सशत्र आंदोलन जिसका फायदा वामपंथी, तृणमूल और काँग्रेस तीनों बंगाल में उठाते हैं, उसका भरभरा के गिर जाना पक्का था। सांसद महोदय का साथ दिया सिलीगुड़ी के महाविद्यालयों और विश्वविद्यालय के ABVP और पास हो चुके सदस्यों ने और बंगाल के अन्य वि.वि. में पढ़ रहे ABVP के कार्यकर्ताओं ने.... इन लोगों ने एक प्रहरी सेना बनाई जिसका नाम नारायणी सेना रखा जिसका काम था दिन-रात काम पहरा देना क्योंकि कम्युनिष्ट और तृणमूल गुन्डे हमला करके तार तोड़ना, सड़क खोदना, खंभे गिराना आदि करते थे.... इनसे लोहा लिया ABVP ने.... काम होने पर नतीजा तो आना ही था.... कम्युनिष्ट यहाँ से कमजोर हो गए.... जिसके कारण उन्होंने पिछले चुनाव में बंगाल में काँग्रेस से गठबंधन किया.... इस इलाके में भाजपा को 45000 से ऊपर वोट मिले जहाँ भाजपा ग्राम पंचायत भी नहीं जीत सकती थी पहले....
अगले विधानसभा चुनाव में इधर कोई भाजपा को रोक नहीं पाएगा.... नक्सलवादी आंदोलन के नेता कानू सान्याल के यहाँ से योजनाओं का सञ्चालन होता है....
फ़िलहाल चारु मजूमदार के घर के लोगों ने सांसद और उनके कराए जा रहे विकास के गतिविधियों का विरोध जारी रखा हुआ है और जंगल संथाल के लोग न्यूट्रल मुद्रा में हैं....80 बर्षीय वृद्ध शांति मुंडा जो कि कानु सान्याल के घर की रख रखाव करती है वो बताती हैं कि "इतने लोग आये-गए लेकिन पहली बार किसी सांसद ने ऐसी योजनाएँ लायी और काम कर रहा है, कानू बाबु हमारे लिए जो करना चाहते थे वो ये कर रहे हैं, मैं इलाके में बिजली देख के मरूँगी"....
दीपू हलदर जो कि CPI(ML) का इलाके का जनरल सेक्रेटरी हुआ करता था.... वो बताता है कि इतने वर्षों में पहली बार साफ़ पीने का पानी मिला है जो 6 महीने पहले ही इंतज़ाम हो पाया है। हालाँकि इस बात को बताने में वो चोरी कर जाता है कि ये काम सांसद आदर्श ग्राम योजना के अन्तर्गत हुआ है....
नक्सलबाड़ी मैं तुम्हे न भूल पाऊँगा....