मॉब लिंचिंग: हकीकत या फ़साना?

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राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो, मोब लिंचिंग, मुसलमान, हिन्दू, धार्मिक राजनीति, सांप्रदायिकता, गौ हत्या,
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धर्म के नाम पर दोहरापन क्यूँ?

आइए इस विषय पर थोड़ा ध्यान देते हैं की यह षड्यंत्र कैसे काम करता है

NCRB (National Crime Record Bureau) यह एक सरकारी संस्था है इनके आँकड़े के अनुसार हर साल लगभग 33082 हत्यायें होती हैं (२०१५)! अब अगर आप एक माह का देखेंगे तो लगभग 2757 हत्या प्रति माह होती है और प्रति सप्ताह अगर एक माह में 4 सप्ताह पकड़ लें तो 690 हत्या प्रति सप्ताह होती है इस देश में ! अब अगर इनमें से प्रति सप्ताह यदि 690 में से १०% भी अगर मरने वाले मुसलमान होते हैं तो लगभग 70 लोग हर सप्ताह में हो जाते हैं उन 70 में यदि दो चार को भी गौ हत्या के शक में मारा हुआ मान लिया जाए या झूठा प्रचारित ही कर दिया जाए जो की अक्सर झूठ ही होता है तो प्रति सप्ताह एक बड़ी ख़बर आपके सामने होती है।

इसके अनेकों उदाहरण हैं चाहे वह ट्रेन में ज़ूनैद की हत्या का मामला हो या पहलू खान का इस तरह के अनेको मामले झूठे पाए जाते हैं और ख़बर पर एक छोटा सा डिस्क्लेमर डालकर न्यूज़ एजेन्सी अपना बचाव कर लेती है सरकार भी सुध नहीं लेती है।

और जैसे ही ख़बर निकलती है सारे गैंग ऐक्टिव हो जाते हैं 'बड़ी_बिंदी गैंग', 'इंटॉलरंटब्रिगेड', 'NOT_IN_MY_NAME' वामपंथी इत्यादि पोस्टर बैनर के साथ आप हिंदुओं का चीरहरण शुरू कर देते हैं आप डिफ़ेन्सिव मॉड पर चले जाते हैं या फिर उनके साथ ही तखती लेकर खड़े दिखाई देते हैं।

वही इसके विपरीत यदि हत्या किसी हिंदू की होती है तो बचाव में कोई नहीं आता है न विरोध में कोई गैंग आती है हाँ यदि उसके नाम के सामने दलित चिपका दिया जाए तो ज़रूर समाज तोड़क यंत्र लाशें नोचने पहुँच जाएँगे।

अब आप सोचेंगे की इससे क्या फ़र्क़ पड़ता है तो मैं आपको बता दूँ इससे इतना फ़र्क़ पड़ता है की आपके देश के प्रधानमंत्री को वैश्विक मंच पर सफ़ाई देनी पड़ती है सरकार घुटनो के बल आ जाती है।

कांग्रेस इसी काम के लिए वामपंथी बुद्धि परपंचियो को पाल कर रखती है और ख़ूब अवार्ड बाँटती है और भाजपा वालों को बुद्धिजीवियों से डर लगता है अवार्ड की तो छोड़ ही दीजिए, लेकिन इनको यह नहीं पता कि जब वही ५६ चोर मिलकर अपना अवार्ड वापस कर देते हैं अपनी वफ़ादारी मालिक को साबित करते हुए तो इनकी घिग्ग़ि बंध जाती है और कुर्सी हिलने लगती है (अवार्ड वापसी गैंग)!

फिर आपके हृदय सम्राट इतने से भी भरपाई न होने के कारण मन की बात में भी गौरक्षको को गुंडा इत्यादि बोलकर डैमिज कंट्रोल करते दिखाई देते हैं।

लेकिन उसका कोई फ़ायदा नहीं होता है क्यूँकि एक बार वैश्विक पटल से लेकर देश भर में माहौल ख़राब हो चुका और जब सच्चाई पता चलेगी तो आप हम जैसे कुछ राष्ट्रवादी उसपर दो चार लाइनकहकर शांत हो जाएँगे या फिर प्रधानमंत्री को ही गुंडा बोलने के लिए गाली देकर अपनी भड़ास मिटा लेंगे।

यह सब इस समय लिखने का कारण यह है की अभी हाल ही में अकबर खान की गौ तस्करी के आरोप में हत्या हुई है ऐसा संदेह है पुष्टि नहीं हुई है न ही अभी तक कोई सबूत ऐसा लगा है साथ ही यह भी बता दें की अकबर जी इतने शरीफ़ थे की 2014-16 तक उनके ऊपर गौ तस्करी के चार मुक़दमे दर्ज हैं।

ज़मानत पर बाहर आकर फिर वही धंधा चालू था अब जबकि कोई गिरफ़्तार नहीं कोई प्रमाण नहीं लेकिन फिर भी ख़बरंडियो ने पूरे गौ रक्षक समुदाय को कटघरे में खड़ा कर दिया और हिंदू अपराधबोध शिकार महसूस कर रहा है।

अगर हम इस हत्या को जो की अभी तक स्पष्ट नहीं है गौ तस्करी के अपराध के तहत हुई हत्या मान भी लें तो माननीय सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए गौ रक्षा अधिकार और 2005 में गौ हत्या विरोध में निर्णय में यह स्पष्ट किया गया है की भारत के हर नागरिक को गौ रक्षा की ज़िम्मेदारी लेनी चाहिए।

अपराध तय हों गौ तस्करी और हत्या के अपराध को मृत्यु दंड प्रावधान हो गौ रक्षको को प्रोत्साहन मिले अन्यथा बिना गौ इस देश को बचाना मुश्किल है।

अगर पहलू एकलाख पर बात होती है तो नारंग और चंदन गुप्ता पर भी हो अन्यथा देश में होने वाली प्रतिदिन ११० हत्यायों की तरह यह भी एक सामान्य घटना भर है अपराध बोध से बाहर निकलिए और चर्चा कीजिए बात सब पर होनी चाहिए।

चर्चा 33082 हत्यायों पर होनी चाहिए लेकिन ऐसा नहीं है क्यूँ की उसमें से महत्वपूर्ण 365 चुनाव हो चुके हैं जो हर दिन ज़हर बाटने के लिए काफ़ी हैं यह आपकी मेन स्ट्रीम मीडिया का दोगला चरित्र हैं।

यही हालत पत्रकार हत्या की भी है उस पर फिर कभी।

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