नहीं थमी भूख और बेरोजगारी : बुन्देलखण्ड से पलायन लगातार जारी
आंकड़ों की मानें तो बुन्देलखण्ड का क्षेत्र बहुत गरीब एवं पिछड़ा है लेकिन ये आधा सच है। वाकई यहाँ 70% गरीबी और पिछड़ापन है लेकिन उसका कारण यहाँ के वो 20% लोग हैं जिन्होंने यहीं की खनिज सम्पदा को जमकर बारी-बारी से लूटा। सिर्फ खुद ही नही लूटा बल्कि मेहमानों से लुटवाया भी। बड़ी-बड़ी गाड़िया, कई मंजिला बड़े-बड़े बंगले, खूब सारा रुपया ये सब यहाँ की बदहाली पर करारा तमाचा है। जब इतनी ही गरीबी और पिछड़ापन है तो फिर ये ऐशोआराम कहाँ से आता है ?
आंकड़ों की मानें तो बुन्देलखण्ड का क्षेत्र बहुत गरीब एवं पिछड़ा है लेकिन ये आधा सच है। वाकई यहाँ 70% गरीबी और पिछड़ापन है लेकिन उसका कारण यहाँ के वो 20% लोग हैं जिन्होंने यहीं की खनिज सम्पदा को जमकर बारी-बारी से लूटा। सिर्फ खुद ही नही लूटा बल्कि मेहमानों से लुटवाया भी। बड़ी-बड़ी गाड़िया, कई मंजिला बड़े-बड़े बंगले, खूब सारा रुपया ये सब यहाँ की बदहाली पर करारा तमाचा है। जब इतनी ही गरीबी और पिछड़ापन है तो फिर ये ऐशोआराम कहाँ से आता है ?
सरकारी दावे या आंकड़े कुछ भी कहें लेकिन एक बात आज भी सच है कि बुन्देलखण्ड (Bundelkhand) से पलायन अभी भी जारी है। रोजगार न होने की वजह से यहां के सैकड़ो परिवार इस समय रोजाना पलायन करने पर मजबूर हैं। आप रेलवे स्टेशनों और बस स्टेशनों पर देख सकते हैं कि कैसे काम की तलाश में अभी भी लोगों को बाहरी स्थानो में जाना पड़ता है। मोदी सरकार का एक कार्यकाल पूरा हो चुका है और दूसरा कार्यकाल भी काफी तेजी से रफ्तार पकड़े हुए हैं लेकिन अभी भी किसी के पास बुन्देलखण्ड के पलायन को रोकने का एक्शन प्लान नहीं है। ताजा तस्वीरें चित्रकूट जिले के मानिकपुर विकासखण्ड अंतर्गत आने वाले टिकरिया, जमुनिहाई, मंनगवा और मारकुंडी गांवो की जहां से परिवारों का पलायन हो रहा है। सभी काम की तलाश में आस पास के जिलो में जा रहे हैं। आज ही मानिकपुर जंक्शन पर ऐसे परिवारों से मेरी भेंट हुई। ऐसा ही एक परिवार है 35 वर्ष के दुर्गा प्रसाद का, जो कि टिकरिया गांव के निवासी हैं। आज इनका पूरा परिवार बच्चों सहित पलायन को मजबूर है क्योंकि इनके पास कोई काम नही है।
दुर्गा प्रसाद कहते हैं कि 'जब कौनो काम नहीं आए तो घर का पेट चलावे खातिर काम तो करेंन का पड़ी ,चाहे वहिके खातिर बाहर जाए का पडे'। बहरहाल दुर्गा प्रसाद ये बात बताते बताते थोड़ा भावुक भी हो गए क्योंकि उनका ये भी कहना था कि कौन अपनी जमीन, समाज, अपनो को और घर छोड़ना चाहता है लेकिन कमबख्त ये पेट सब कुछ कराता है। इस दौरान एक दृश्य और भयावह था और वह था छोटे-छोटे बच्चों की पढ़ाई का नुकसान।
अधिकांश बच्चे स्कूल जाने वाले थे और बाकी का एडमिशन होना था लेकिन रोजगार की चाहत में पलायन करने को मजबूर इस परिवार के पास घर छोड़ना ही आखिरी विकल्प था। फिलहाल यहां से बाहर काम पर जाने वाले परिवारो के बच्चों का भविष्य भी संकट में है। क्योंकि बाहर ये बच्चे भी काम ही करते हैं। आने वाला कल भी उसी पलायन की जकड़ में है और देश का भविष्य संकट में।
ऐसे ही कई परिवार स्टेशन पर अपने परिवार के साथ ट्रेन का इंतजार कर रहे थे जिन्हें रोजगार की तलाश में बाहर जाना था। इन सभी का यही कहना था कि काम के लिए बाहर जाना पड़ेगा अब चाहे बच्चो के भविष्य का नुकसान हो या फ़िर कुछ और लेकिन जिंदगी तो बचेगी। फ़िलहाल इस मुद्दे पर जिम्मेदार अधिकारी कुछ भी बोलने को तैयार नहीं। जब इस सम्बंध में जनप्रतिनिधियों से बात की गई तो उनका कहना था सरकार बुन्देलखण्ड में रोजगार के लिए बहुत बड़े एक्शन प्लान में काम कर रही है और जल्द ही हर हाथ मे रोजगार होगा।
आंकड़ों की मानें तो बुन्देलखण्ड का क्षेत्र बहुत गरीब एवं पिछड़ा है लेकिन ये आधा सच है। वाकई यहाँ 70% गरीबी और पिछड़ापन है लेकिन उसका कारण यहाँ के वो 20% लोग हैं जिन्होंने यहीं की खनिज सम्पदा को जमकर बारी-बारी से लूटा। सिर्फ खुद ही नही लूटा बल्कि मेहमानों से लुटवाया भी। बड़ी-बड़ी गाड़िया, कई मंजिला बड़े-बड़े बंगले, खूब सारा रुपया ये सब यहाँ की बदहाली पर करारा तमाचा है। जब इतनी ही गरीबी और पिछड़ापन है तो फिर ये ऐशोआराम कहाँ से आता है! शायद इसी का उत्तर है यहां हो रहा अवैध खनन। बाकि बचे 5% लोग तो मेहनत से भी ये सब अर्जित कर लेते हैं।
देश का एक ऐसा हिस्सा जहाँ का प्रत्येक गाँव भूख और आत्महत्याओं की दुःख भरी कहानियों से भरा पड़ा है। बुन्देलखण्ड के विकास पर पानी की कमी, भूमि अनुपजाऊ और जनप्रतिनिधियों की असक्रियता तीनों एक साथ प्रहार करते आये हैं। बुन्देलखण्ड दशकों से सूखे की मार झेल रहा है और अगर हम वर्ष 2000 के बाद से अब तक का समय देखें तो यहाँ के लोगों ने लगभग 8 बार सूखे का दौर देखा है। रिपोर्टों के अनुसार पिछले 15 वर्षों में लगभग 62 लाख लोग यहाँ से पलायन कर चुके हैं। यानी कि बुन्देलखण्ड की धरती से हर रोज लगभग 6000 लोग पलायन करते हैं। यहाँ की सबसे बड़ी समस्या रोजगार का न होना है जो जनप्रतिनिधियों कि विचार शून्यता का सीधा परिणाम है। लगातार सूखा पड़ने के कारण खेती में कुछ खास नहीं है और फिर बैंको का कर्ज किसानों-मजदूरों को यहाँ से पलायन करने पर मजबूर कर देता है। मौजूदा समय में बुन्देलखण्ड की हालत यह है कि अधिकांश गाँवो में आपको बुजुर्ग व्यक्ति ही दिखेंगे क्योंकि नौजवान रोजगार की तलाश में यहाँ से पलायन कर चुके हैं। स्वराज्य अभियान के 2015 के सर्वे के अनुसार, सूखे की मार झेल रहे इस क्षेत्र का हर छठा घर घास की रोटी खाने के लिए अभिशप्त है। पिछले सूखे में यहाँ के हर पांचवा घर भूखा सोया और 60% घरों को दूध, 53% घरों को दाल मयस्सर नहीं हुई और मजबूरी में 40% परिवारों को अपना पशुधन बेचना पड़ा। बुन्देलखण्ड में नौकरी आज भी एक सपना है क्योंकि रोजगार का कोई बड़ा माध्यम नहीं है। उद्योग विकसित हुए और सिमट गये, कताई मिलें भी बड़ी तेजी से बन्द हो रही हैं। यहाँ की मूलभूत सुविधाएं (सड़क ,पानी , घर, बिजली) का आज भी आम लोगों को अभाव है।
बुन्देलखण्ड के पिछड़ेपन के लिए यहाँ के बन्द हो गए उद्योग धंधों को सबसे बड़ा कारण माना जाता है। बुन्देलखण्ड में रोजगार का कोई बड़ा साधन न होने के कारण बेरोजगारी इस कदर बड़ी की लाखों लोगो को पलायन करना पड़ा। बुन्देलखण्ड की चर्चा के दौरान जब हमने चित्रकूट धाम मंडल का दौरा किया तो सारी हकीकत से हमारा सामना हुआ। एशिया की एकमात्र बरगढ़ ग्लास फैक्ट्री जिसका शिलान्यास अस्सी के दशक में हो गया था लेकिन कुछ काम होने के बाद इस फैक्ट्री को बंद कर दिया गया। बुन्देलखण्ड के हजारो किसानों मजदूरो को मिलने वाला रोजगार का ये बड़ा केंद्र शुरू होने से पहले ही बन्द हो गया। करोड़ो-अरबों की मशीनें नीलाम कर दी गई। आज भी बरगढ़ ग्लास फैक्ट्री की दीवारें चींख चींख कर अपनी बदहाली पर रो रही हैं। इसी प्रकार मानिकपुर की बॉक्साइट फैक्ट्री जो दशकों पहले बन्द हो गई थी। इस फैक्ट्री में हजारों मजदूर काम करते थे लेकिन फैक्ट्री बन्द होते ही सब बेरोजगार हो गए। वैसे तो पूरे चित्रकूट धाम मंडल में छोटे-छोटे उद्योग बड़ी संख्या में थे लेकिन आज सब बन्द हैं। ऐसे ही बांदा की भरुआ सुमेरपुर में मौजूदा समय में लगभग सभी फैक्ट्रियां बन्द हो चुकी हैं। एकाध फैक्ट्रियां चालू हैं लेकिन ये नाकाफी है। फैक्ट्रियां बन्द होने के कारण बड़ी संख्या में आस पास के लोग बेरोजगार हो गए। बुन्देलखण्ड की चर्चा के दौरान जब हमने स्थानीय लोगो से बात की तो सभी ने बताया कि भरुआ सुमेरपुर की पहचान इन्ही फैक्ट्रियों से होती थी लेकिन आज इनके बंद होने के कारण सब बदल गया है। ऐसे ही हमीरपुर और महोबा की भी हालत है। कुल मिलाकर अगर हम सपनों के बुन्देलखण्ड की बात करें तो सबसे पहले सरकार को यहाँ उद्योग धंधों को चालू करना होगा तभी यहाँ का विकास हो सकता है और पलायन रुक सकता है।
फिलहाल अब बुन्देलखण्ड के लोगो को देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से काफी आशाएं हैं। आपको बता दें कि पिछले कुछ समय पूर्व बुदेलखंड के दौरे पर आये मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने आयोजित एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा था कि बुंदेलखंड के भाग्य का उदय होगा। उन्होंने कहा था की सरकार बिना भेदभाव सबको सुरक्षा देगी और किसी को अराजकता फैलाने नहीं देगी। पीएम नरेंद्र मोदी भी कह चुके हैं कि केंद्र सरकार बुन्देलखण्ड के विकास हेतु चिंतित है। अब देखना होगा की इन दावों और घोषणाओं का क्या भविष्य होगा बाकी गांवो में रह रहे आम लोगो का पलायन तो जारी ही है।