राष्ट्रीय नेता बनने का सपना फिर टूटा: कर्नाटक में भी मिली 'आप' को करारी शिकस्त

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राष्ट्रीय नेता बनने का सपना फिर टूटा: कर्नाटक में भी मिली  आप को करारी शिकस्त
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नई दिल्ली - कर्नाटक विधानसभा चुनाव में सरकार बनाने के सियासी ड्रामे के चलते एक मुख्य खबर से तो देश के लोगों का ध्यान पूरी तरह हट ही गया और ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि मुख्य धारा के TV मीडिया चैनल जो केजरीवाल और आम आदमी पार्टी की हर खबर दिखाने में सबसे आगे रहते हैं लगता है कि उन्होंने भी जानबूझ कर इस खबर को कर्नाटक के बाहर देश की अधिकांश जनता तक पहुँचने से रोका कि कर्नाटक के इन चुनावों में आम आदमी पार्टी को कितनी बुरी तरह हार का सामना करना पड़ा। इन चुनावों में अरविंद केजरीवाल के नाम का असर यह रहा कि गोवा के बाद कर्नाटक में भी केजरीवाल के सभी उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई है। केजरीवाल के लिए आत्ममंथन की बात ये है कि 28 में से 16 सीटों पर 'आप' के प्रत्याशियों को 500-500 वोट भी नहीं मिले हैं।
केजरीवाल का नाम भी नहीं जीता सका एक भी सीट
सूत्रों के अनुसार कर्नाटक चुनाव में आम आदमी पार्टी 222 सीटों में से मात्र 28 सीटों पर ही जैसे-तैसे अपने उम्मीदवार उतार पाई थी। कर्नाटक चुनाव में भी केजरीवाल ने दिल्ली के विकास मॉडल का सपना वहां की जनता को दिखाकर वोट लेने कि कोशिश कि थी एवं वहाँ के आप पदाधिकारियों ने भी केजरीवाल के नाम पर ही वोट मांगे थे। लेकिन चुनाव परिणामों से पता चलता है कि कर्नाटक कि जनता ना तो मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के नाम से ही प्रभावित हुई और ना ही उनके द्वारा दिखाये "दिल्ली जैसा विकास" के झूठे सपने के बहकावे में आई।
आम आदमी पार्टी को मिली लगातार पांचवें राज्य में हार
"आआपा" के राज्यसभा सांसद संजय सिंह ने कर्नाटक चुनाव मे केजरीवाल के नाम का खूब प्रयोग किया। संजय सिंह ने अपने भाषणों में बार - बार दोहराया कि भ्रष्टाचार हमारा मुख्य मुद्दा है। लेकिन लगता है कि दिल्ली में केजरीवाल सरकार पर लगातार लग रहे भ्रष्टाचार के आरोपों के कारण कर्नाटक की जनता को संजय सिंह की इन बातों पर भरोसा नहीं हुआ कि "केजरीवाल भ्राताचर से लड़ भी सकते हैं" और इसी कारण वहाँ की जनता ने आम आदमी पार्टी को सिरे से ही नकार दिया है। केजरीवाल के लिए ये किसी झटके से कम नहीं है कि इन विधानसभा चुनावों में उनके सभी 28 प्रत्याशियों को मिलाकर कुल 21 हजार वोट मिले हैं। वैसे केजरीवाल की लगातार हार का यह पहला मामला नहीं है। इससे पहले पूर्वोत्तर के राज्यों में भी पार्टी की लुटिया डूबी है।
पंजाब, गुजरात, नागालैंड, मेघालय और अब कर्नाटक में मिली इस जबर्दस्त हार ने सिद्ध कर दिया है कि केजरीवाल की लाख कोशिशों के बाद भी दिल्ली के बाहर अन्य राज्यों की जनता अब केजरीवाल की उन लच्छेदार बातों/वायदों पर विश्वास करने को तैयार नहीं हैं जैसी बातें /वायदे उन्होंने दिल्ली विधान सभा चुनावों से पहले दिल्ली की जनता से की थीं। क्योंकि पूरा देश देख रहा हैं कि भ्रष्टाचार के मुद्दे पर केजरीवाल कितने पानी में हैं।

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