जज V/s जनता और लोकतंत्र में बराबरी का भ्रम !!!
चूँकि सरकार की मज़बूरी होती है की वह नैतिकता और संविधान की मर्यादाओं के कारण किसी जज के खिलाफ खुल कर कोई टिप्पड़ी नहीं कर सकती.... लेकिन देश के आम नागरिको को अपने देश के सुप्रीम कोर्ट से सवाल पूछने और उनके संदेहास्पद आचरण पर खुल कर सवाल करने का हक़ होना चाहिए... और ये हक़ तब जरुर होना चाहिए जब आम जनता के मन में देश की सर्वोच्च न्यायपलिका के आचरण से संदेहों की श्रंखला तैयार हो जाए।
पवन अवस्थी | Updated on:10 May 2018 9:18 PM IST
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चूँकि सरकार की मज़बूरी होती है की वह नैतिकता और संविधान की मर्यादाओं के कारण किसी जज के खिलाफ खुल कर कोई टिप्पड़ी नहीं कर सकती.... लेकिन देश के आम नागरिको को अपने देश के सुप्रीम कोर्ट से सवाल पूछने और उनके संदेहास्पद आचरण पर खुल कर सवाल करने का हक़ होना चाहिए... और ये हक़ तब जरुर होना चाहिए जब आम जनता के मन में देश की सर्वोच्च न्यायपलिका के आचरण से संदेहों की श्रंखला तैयार हो जाए।
लोकतंत्र में अगर जनता द्वारा चुनी गयी पूर्ण वहुमत की सरकार तोप नहीं है तो कोई जज भी तोप नही हो सकता........ शक के दायरे में आने पर अगर सरकार जबाबदेह हो सकती है, नेता, मंत्री, नौकरशाह जबाबदेह हो सकते है, जन प्रतिनिधि और नागरिक जबाबदेह हो सकता है तो .... सुप्रीम कोर्ट के जज और हाईकोर्ट के जज भी जबाबदेह होने चाहिए !!!
अपने एक विशेष एजेंडे पर चलते रहे और चल रहे. सुप्रीम कोर्ट के कुछ जजों को देश के प्रधान न्यायाधीश से बहुत सी समस्याए है........ और इनको बहुत सी समस्याए है देश के प्रधानमन्त्री मोदी से....... इसी कड़ी में विगत समय में.......... मर्यादा और नियम तथा संविधान की धज्जियां उड़ाते हुए सुप्रीम कोर्ट के कुछ जजों ने......... देश की मीडिया के सामने आ कर सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस के खिलाफ प्रेस कांफ्रेंस की थी.........
चूँकि सरकार की मज़बूरी होती है की वह नैतिकता और संविधान की मर्यादाओं के कारण किसी जज के खिलाफ खुल कर कोई टिप्पड़ी नहीं कर सकती.... लेकिन देश के आम नागरिको को अपने देश के सुप्रीम कोर्ट से सवाल पूछने और उनके संदेहास्पद आचरण पर खुल कर सवाल करने का हक़ होना चाहिए... और ये हक़ तब जरुर होना चाहिए जब आम जनता के मन में देश की सर्वोच्च न्यायपलिका के आचरण से संदेहों की श्रंखला तैयार हो जाए।
अब मुद्दा है कि अपने एजेंडे में असफल हो चुके और अब सेवानिवृत्ति के करीब पहुँच चुके सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस चेलमेश्वर ने चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा को चिट्ठी लिखकर उत्तराखंड हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस के॰ एम॰ जोसेफ को सुप्रीम कोर्ट में लाए जाने को लेकर एक बार फिर से विचार करने को कहा है..........
अब जस्टिस चेलमेश्वर से एक नागरिक के तौर पर मेरा सवाल यह है कि वह उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन हटाए जाने और कांग्रेस के फेवर में निर्णय दिए जाने के जस्टिस के॰ एम॰ जोसेफ के निर्णय की बिन्दुवार व्याख्या कर यह सिद्ध करें कि उनका निर्णय कानून की मर्यादा तथा संविधान एवं तत्कालीन तथ्यों के प्रकाश में सही और सटीक था साथ ही जस्टिस चेलमेश्वर ये भी बतायें कि उत्तराखंड के जस्टिस के॰ एम॰ जोसेफ में ऐसी कौन सी विशेष प्रकार की योग्यता है जिसके कारण जस्टिस चेलमेश्वर उनको सुप्रीम कोर्ट में पदस्थापित देखने के लिए परेशान है......
जस्टिस चेलमेश्वर देश की जनता को यह भी बतायेँ कि पिछले दिनों उन्होंने जो आचरण किया था क्या वह संविधान और सुप्रीम कोर्ट की मर्यादा के आचरण के अनुसार सही था एवं इस बात का भी खुलासा करें कि उस प्रैस कान्फ्रेंस के तुरंत बाद डी॰ राजा से क्या गुप्त मीटिंग हुई !!!