पुलवामा अटैक : ये हाथ किसके साथ ?
अब संकट ये है कि अब महीने भर मे कोई सैन्य कार्यवाई हुई और जिसमें कोई नुकसान हो गया तो हिंदू पुलवामा भूल कर मोदी पर टूट पड़ेंगे। अपना राष्ट्रवाद भी इतना सतही है। कल कांग्रेसी एससी-एसी एक्ट पर कोई शिगूफा छोड़ दें तो पुलवामा भूल जाएंगे हिंदू।

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अब संकट ये है कि अब महीने भर मे कोई सैन्य कार्यवाई हुई और जिसमें कोई नुकसान हो गया तो हिंदू पुलवामा भूल कर मोदी पर टूट पड़ेंगे। अपना राष्ट्रवाद भी इतना सतही है। कल कांग्रेसी एससी-एसी एक्ट पर कोई शिगूफा छोड़ दें तो पुलवामा भूल जाएंगे हिंदू।
पाकिस्तान जिहादी देश है। वो जिहाद कर रहा है। हमेशा जानता है कि युद्ध में बुरी से बुरी स्थिति में पासा कैसे पलटा जाए। संसद पर हमला याद करें। तब अफगानिस्तान पर अमेरिका ने हमला किया था। पाकिस्तान को किसी तरह जिहादियों को वहां से बचा कर अपने घर लाना था। इसलिए जैश से संसद पर हमला कराया। हमने पूरी सेना पाकिस्तान की तरफ कूच कर दी और हमला किया नहीं। लेकिन इसकी आड़ में पाकिस्तान ने अपनी सारी सेना अफगानिस्तान सीमा से हटा कर भारत की ओर भेज दी और जिहादियों के पाकिस्तान आने का रास्ता साफ कर दिया। मुल्ला उमर और लादेन आराम से आईएसआई के सेफ हाउसेज में पहुंच गए।
इस बार के हमले की टाइमिंग गजब है। जवाब देने का समय बहुत कम है और सर्जिकल स्ट्राइक से पाकिस्तानी समझदार भी हो चुके हैं। पूरी एहतियात बरतेंगे सीमा पर। महीने भर में हमारे यहां चुनाव की तारीखें आ जाएंगी और कांग्रेसी जिहादी मुहर्रम मनाएंगे। पूछेंगे, कहां है 56 इंच का सीना? उनकी हाइपर राष्ट्रभक्ति देखकर हम भी झेंप जाएंगे। वो हमे युद्ध के लिए उकसाएंगे इस उम्मीद में कि शायद सैन्य आपरेशन में कड़े पलटवार का सामना करना पड़े और भारत की क्षति कुछ ज्यादा हो जाए।
फिर 1971 का डंका बजना शुरू हो जाएगा। जयचंद और पिडी बताएंगे कि किस तरह इंदिरा गांधी ने उन्हें लोटपोट कर दिया। हमें तो याद नहीं रहेगा कि तब पाकिस्तान की बांग्लादेश से दूरी दो हजार किलोमीटर से ज्यादा थी और सीधी पहुंच का कोई रास्ता तक नहीं था। लेकिन इंदिरा जी ने तब भी पाकिस्तान पर एक बम नहीं गिराया था। अब उसके पास परमाणु बम है। लेकिन महान विजय के बावजूद इंदिरा जी 90 हजार के बदले हजार भारतीय सैनिकों को रिहा कराने की चिंता नहीं कर पाईं। वाहवाही लूट लीं। नोबेल की लालसा थी शायद।
अब संकट ये है कि अब महीने भर मे कोई सैन्य कार्यवाई हुई और जिसमें कोई नुकसान हो गया तो हिंदू पुलवामा भूल कर मोदी पर टूट पड़ेंगे। अपना राष्ट्रवाद भी इतना सतही है। कल कांग्रेसी एससी-एसी एक्ट पर कोई शिगूफा छोड़ दें तो पुलवामा भूल जाएंगे हिंदू।
यहां असली सवाल हमले की टाइमिंग का है। यदि यह शीघ्र नहीं हो पाया तो नोटा वालों की संख्या सौ गुना बढ़ जाएगी। वे गरजेंगे, इतिहास बताएंगे कि हम हिंदू हमेशा से सुपर पावर रहे हैं। मजाल क्या कि कभी किसी ने एक तमाचा मारा हो हमें। इसलिए मोदी ने महीने भर में कोई जवाब नहीं दिया तो कांग्रेस को लाएंगे।
सारा मामला ही कांग्रेस को वापस लाने के लिए रचा गया है। ये जुगलबंदी बहुत दिन से जारी थी। मणिशंकर अय्यर और सलमान खुर्शीद यूं ही रोज पाकिस्तान नहीं जाते थे। चुनाव में अब कांग्रेस का सबसे मजबूत गठबंधन सहयोगी पाकिस्तान ही है। हम तो मोदी से इससे ही नाराज हो जाते हैं कि आज धूप नहीं खिली। बहरहाल कमल खिले न खिले लेकिन ये तो पूछो कि हाथ किसके साथ है और हाथ के साथ कौन है?