अध्यात्म से दूर भौतिकी में उलझा मानव
पानी का फॉर्मूला निकाल लिया गया पर उस फॉर्मूले का प्रयोग कर पानी बनाना नहीं आया। रक्त, स्पर्म, ओवा, मिट्टी,आदि,ये सभी चीजें जो इस भौतिक संसार की रचना के मूल में हैं, अभी भी किसी अन्य शक्ति के नियंत्रण में हैं। इनकी संरचना को बेहतर तरीके से जान लेने के बावजूद आदमी इनकी रचना नहीं कर पाया।

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पानी का फॉर्मूला निकाल लिया गया पर उस फॉर्मूले का प्रयोग कर पानी बनाना नहीं आया। रक्त, स्पर्म, ओवा, मिट्टी,आदि,ये सभी चीजें जो इस भौतिक संसार की रचना के मूल में हैं, अभी भी किसी अन्य शक्ति के नियंत्रण में हैं। इनकी संरचना को बेहतर तरीके से जान लेने के बावजूद आदमी इनकी रचना नहीं कर पाया।
शोध की प्रखरतम अवस्थता वह होती जब मानवता उस अज्ञात को जान लेने के निकट होती।
शोध किया गया तो भौतिक सुखों के लिए, विज्ञान भौतिकी से ऊपर उठ नहीं पाया बल्कि अब भी उलझा उसी में है, जो उलझाए जा रही है पृथिवी पर हमारी स्थिती। हर आविष्कार का एक विपरीत परिणाम दिख जाता है, जो धरती, आकाश, पाताल के बिफरते गुस्से में दिखाई दे जाता है।
विज्ञान की सत्यता हर बार किसी नए सत्य के खोज पर टिकी दिखती है।
पानी का फॉर्मूला निकाल लिया गया पर उस फॉर्मूले का प्रयोग कर पानी बनाना नहीं आया। रक्त, स्पर्म, ओवा, मिट्टी,आदि,ये सभी चीजें जो इस भौतिक संसार की रचना के मूल में हैं, अभी भी किसी अन्य शक्ति के नियंत्रण में हैं। इनकी संरचना को बेहतर तरीके से जान लेने के बावजूद आदमी इनकी रचना नहीं कर पाया।
उस अन्य शक्ति के नज़दीक पहुँचने को यह भौतिक दुनिया बड़ी बाधा रही होगी, मानी जाती रही होगी।
ऊपर दी गई फ़ोटो मानो किसी ऐसे ही अध्ययनरत शोधार्थी की है जिसने हर तरह की भौतिकता से दूर उत्कृष्ट अनुसंधान के प्रयास किए हो।
जिसके लिए शरीरिक सुख की महत्ता, उसकी भव्यता नगण्य रही होगी क्योंकि अनुसंधान का लक्ष्य लौकिक न होकर, परालौकिक था। यही कारण था कि भौतिक सुख-सुविधाओं पर शोध करने की आवश्यकता नहीं थी।
ये लोग इस युग से ज़्यादा समृद्ध युग में जी रहे थे, जहाँ जीवन का लक्ष्य भौतिक न होकर चैतन्य की प्राप्ति के निमित्त था। यानी शोध के विशेष चरण में, समय के किसी बिंदु पर। फिर वह समय ही सिमट गया और भुला दिया गया।
इस युग में उस अपार शक्ति को जान लेने की क्षमता शोधार्थियों में नहीं है। यह शोध न होकर व्यवसाय हो चुका है।
हमने चेतनता और उस दिव्यता को जान पाने के शोध की अभी शुरुआत तक नहीं की है, जिसके प्रयास से दुनिया के तमाम समस्याओं के हल निकल आ सकते हो।
बल्कि हम उसे नकार डालने की सभी संभावित व्याख्याओं की समीक्षा करेंगे महज़ इसलिए कि भौतिक चक्र से निकल पाने का साहस हमारे भीतर नहीं है।