आपका धिम्मीपन हर बार ज़ाहिर करता है हिन्दुत्व से आपकी दूरी ?
या जब कोई आपसे पूछता है की राष्ट्र पहले या धर्म तो झुककर राष्ट्र की माला जपने लगते हैं और भगवा के जगह तिरंगा हाथ में लिए काँवड़ यात्रा पर निकल पड़ते हैं बजाय सीना ठोक कर यह कहने के कि हमारा धर्म ही है जिसने हमको राष्ट्र भक्ति सिखाई जिसने यह समझाया की राष्ट्र क्या है राष्ट्र की अवधारणा क्या है एक आदर्श राष्ट्र ही राम-राज्य होता है इसलिए धर्म ही महान है क्यूँ की उसी से यह राष्ट्र है ?
या जब कोई आपसे पूछता है की राष्ट्र पहले या धर्म तो झुककर राष्ट्र की माला जपने लगते हैं और भगवा के जगह तिरंगा हाथ में लिए काँवड़ यात्रा पर निकल पड़ते हैं बजाय सीना ठोक कर यह कहने के कि हमारा धर्म ही है जिसने हमको राष्ट्र भक्ति सिखाई जिसने यह समझाया की राष्ट्र क्या है राष्ट्र की अवधारणा क्या है एक आदर्श राष्ट्र ही राम-राज्य होता है इसलिए धर्म ही महान है क्यूँ की उसी से यह राष्ट्र है ?
जब आप किसी के आक्षेप पर दौड़े-दौड़े किसी नासा की रिपोर्ट का लिंक लेकर आते हैं और कहते हैं कि देखिए "ऐडम ब्रिज (सही नाम 'राम सेतु')" को नासा भी 5000 साल पुराना बताती है और यह मानव निर्मित है तब आप अपने इष्ट प्रभु "श्री राम और रामायण" काल का ख़ुद ही हनन कर रहे होते हैं यह ज्ञात नहीं रहता आपको ?
या फिर जब कोई कहता है कि "शिव लिंग" पर दूध चढ़ाना बेवक़ूफ़ी है ग़रीबों में बाँट दो तब आप शिव लिंग पर दूध चढ़ाने के सौ फ़ायदे गिनाने वाले आर्टिकल की खोज में पूरा गूगल छान मारते हैं उस समय भी अपनी भक्ति की बली चढ़ाकर छद्म-विज्ञान का आवरण ओढ़ते प्रतीत होते हैं ?
या जब कोई आपके अनुग्रह के स्वामी "श्री गणेश" के हाथी के सर पर प्रश्न उठाता है तो रोते-बिलखते आधुनिक विज्ञान की अंग-प्रत्यारोपण (प्लास्टिक सर्जरी) के सामने दाँत चियारते (खींसे निपोरते) नज़र आते हैं और आधी-अधूरी थ्योरी से पूरा सत्य सम्पादित करने में नाकाम होते हैं?
या जब कोई आपसे पूछता है की राष्ट्र पहले या धर्म तो झुककर राष्ट्र की माला जपने लगते हैं और भगवा के जगह तिरंगा हाथ में लिए काँवर यात्रा पर निकल पड़ते हैं बजाय सीना ठोक कर यह कहने के कि हमारा धर्म ही है जिसने हमको राष्ट्र भक्ति सिखाई जिसने यह समझाया की राष्ट्र क्या है राष्ट्र की अवधारणा क्या है एक आदर्श राष्ट्र ही राम-राज्य होता है इसलिए धर्म ही महान है क्यूँ की उसी से यह राष्ट्र है ?
या फिर तब भी जब कोई आपसे शिव लिंग या किसी भगवान की मूर्ति को पत्थर कहकर आपसे सवाल पूछता है और आप औंधे मुँह आकर उल-ज़लुल तर्क देते हैं की यह तो पहली सीढ़ी है ध्यान लगाने के लिए है इत्यादि या फिर आर्य समाजियों की तरह तर्क न होने पर आप उसे नकार देते हैं बजाय यह कहने की हमने प्राण प्रतिष्ठा की है अब इसमें भगवान का वास है अब यही ईश्वर हैं कण-कण में राम हैं यह हमारी आस्था और हमारी मान्यता है और पत्थर उनकी ?
आपको अपनी मान्यताओ को प्रतिपादित करने के लिए किसी पश्चिम के अर्ध ज्ञानी या अरबी खच्चर की क्या ज़रूरत है जो हमारी मान्यता है वह है उसका सम्पादन और प्रतिपादन हमारे धर्म-शास्त्रों ने किया हुआ है
या अधिक ही तर्क शील बनना चाहते हैं तो स्वयं को उनके खोखले प्रमाणों से बाहर निकालिए, एक छोटा सा उदाहरण देता हूँ ...
उन्होंने आपसे कहा 2H +O2 पानी होता है आपने मान लिया हाँ-हाँ जी वाह मिलकर H2O माने पानी बन गया कभी पूछा उनसे की कौन सी लैब में यह बनता है कौन सी लैब में दो hidrogen और oxygen मिलकर पानी बनते हैं नहीं पूछा होगा क्यूँ की आप धिम्मी हैं और साथ ही मानसिक ग़ुलाम भी
अगर ऐसा पानी बनता तो विश्व की पानी की समस्या कब की समाप्त हो जाती सबके पास पानी होता, हाँ यह ज़रूर है कि पानी को तोड़ने पर हाइड्रोजन और ऑक्सिजन निकलता है जब इतनी सीधी सी बात को वह पूरी तरह नहीं बता सकते तो आपके पुरखों का हज़ारों लाखों वर्षों विज्ञान वह घंटा प्रतिपादित करेंगे ??
पानी जो आपके पुरखों ने बताया वैसे ही बनता है और पूरे विश्व में वैसे ही बनता है नहीं तो मुझे उस लैब का नाम बताइए जहाँ अलग तरीक़े से बन सके
इसलिए इस धिम्मीपने से बाहर निकलिए जिस दिन आप इससे बाहर निकलकर अपनी मान्यताओ पर अडिग रहेंगे उसी दिन यह राष्ट्र हिंदू राष्ट्र बन जाएगा और बन क्या जाएगा यह हमेशा से हिन्दु राष्ट्र ही था और है कुछ बदला है तो आपकी मानसिकता इसलिए किसी सम्राट से अपेक्षा रखने से पहले अपने धिम्मीपने को त्याग दीजिए !