वाह रे न्यायाधीशों का आदेश - फ्लैट की टेरेस पर बकरा तो काट सकते है पर चिड़ियों को दाना नहीं खिला सकते
वाह रे अदालत! लाइसेन्स लेकर बकरे तो काट लें पर मासूम चिड़ियों को खाना खिलाने पर सीधा रोक
वाह रे अदालत! लाइसेन्स लेकर बकरे तो काट लें पर मासूम चिड़ियों को खाना खिलाने पर सीधा रोक
आज वर्ल्ड स्पेरो डे यानि अंतर्राष्ट्रीय गौरय्या दिवस है। इस दिवस के बारे में सुनते ही आपको उन सुंदर चिड़ियों की याद आ गई होगी जो आजकल शायद ही नज़र आती है। चलिये अब गौरय्या दिवस है ही तो चिड़ियाओं के लिए कुछ अच्छा करते है, अब चिड़ियों से केक तो नहीं कटवा सकते, क्यों न बालकनी में जा कर चिड़ियों को दाना डाला जाए।
पर ऐसा करने से पहले आप सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिये गए कल के एक बड़े फैसले को सुनते जाइए। कुछ समय पहले बॉम्बे हाईकोर्ट द्वारा दिये गए एक फैसले पर रोक लगाने से इंकार कराते हुये सुप्रीम कार्ट के आदेशानुसार आप एक फ्लैट की बाल्कनी में पक्षियों को दाना नहीं खिला सकते, क्योंकि ऐसा करने से अन्य रहने वालों के लिए गंदगी के कारण उपद्रव पैदा होता है।
फैसले के दौरान जस्टिस यू॰ यू॰ ललित और इंदु मल्होत्रा की बेंच ने कहा कि "यदि आप एक आवासीय सोसाइटी में रह रहे हैं, तो आपको मानदंडों के अनुसार खुद को संचालित करना होगा।"
बात जब बालकनी में चिड़ियाओं को दाना खिलाने और मुंबई हाईकोर्ट की चली ही है तो मुझे आज से करीब 2 साल पहले आए बॉम्बे हाईकोर्ट के एक दूसरे फैसले की याद आ गई, उस फैसले की जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने बकरीद पर अपने बालकनी और छतों पर खुले रूप से बकरे काटने की इजाज़त दी थी और वो भी 1 या 2 नहीं अपितु पूरे 10 बकरे।
जी हाँ, जिस बॉम्बे कोर्ट ने बालकनी में मासूम चिड़ियों को दाना डालने पर रोक लगाई है उसी हाई कोर्ट ने माना था कि शहर के निवासी बकरीद के अवसर पर बकरों की बलि देने के हकदार हैं और चंद शर्तों के साथ वे खुले रूप से अपनी सोसाइटी और घरों की छतों पर बकरे काट सकते है।
जस्टिस एस जे कथावला और एस सी गुप्ते की पीठ ने दक्षिण मुंबई में एक सहकारी हाउसिंग सोसायटी के दो निवासियों की याचिका को खारिज कर दिया था, जिन्होंने अपने तीन पड़ोसियों द्वारा सोसाइटी परिसर में बकरियों को काटने का विरोध किया था। याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि सोसाइटी परिसर में जानवरों का वध करना अस्वाभाविक था और शहर में बूचड़खाने होने पर इस प्रथा को अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।
इसके जवाब में बेंच ने कहा कि तीनों लोगों ने बकरीद के मौके पर 10 बकरियों का वध करने के लिए नागरिक निकाय से लाइसेंस प्राप्त किया था।
न्यायाधीशों ने कहा कि वे बकरीद पर जानवरों को मारने से नहीं रोक सकते क्योंकि लोगों को अपने धर्म का पालन करने का अधिकार है, लेकिन इस तरह के कार्य लाइसेंस में उल्लिखित नियमों और शर्तों के अधीन होंगे।
वाह रे अदालत! लाइसेन्स लेकर बकरे तो काट लें पर मासूम चिड़ियों को खाना खिलाने पर सीधा रोक, क्या कहने देश की न्याय व्यवस्था के ?
देश के उच्चतम न्यायालयों एवं सर्वोच्च न्यायालय के पास राम मंदिर और कश्मीरी पंडितों के उत्पीड़न जैसे ज्वलंत मुद्दों पर फैसला देने का समय नहीं है लेकिन ऐसे मुद्दों पर वो तुरंत हरकत में आ जाता है।
चलिये देश की ढोंगी सांप्रदायिकता के बीच आपको गौरय्या दिवस की हार्दिक बधाई।
Bakrid: Bombay High Court allows slaughter of goats on building terrace, subject to terms and conditions https://t.co/2Q35Kv7CtV
— Zee News (@ZeeNews) September 13, 2016