नोटबंदी : जाली नोटों का सूत्राधार कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व ?

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देश के सबसे बड़े नोट घोटाले में शामिल थे कांग्रेस के आलाकमान नेता ?

दुनिया का सबसे बड़ा घोटाला खुलेगा 2019 के बाद, जो शायद दुनिया मे कहीं नहीं हुआ होगा और इस महाघोटाले का मुख्य अभियुक्त है चिदंबरम !!

इसको पढ़िए की क्यों किया गया अचानक नोटबन्दी का फैसला और क्यों टूट गयी पाकिस्तान की अर्थव्यस्था। सबूत भी बाहर आएंगे जांच हो रही है इसको पढ़ के आपके पैर के नीचे से ज़मीन खिसक जाएगी।

पीएम मोदी ने नोटबंदी करके इस घोटाले को रोक तो दिया, मगर उसके बाद ये बात निकल कर सामने आई कि देश में बिल्कुल असली जैसे दिखने वाले एक ही नंबर के कई नोट चल रहे थे। ये ऐसे नोट थे, जिन्हें पहचानना लगभग नामुमकिन था क्योंकि ये उसी कागज़ पर छपे थे जिसपर भारत सरकार नोट छपवाती है।

समाचार के अनुसार De La Rue जोकि एक ब्रिटिश कंपनी है, इसके साथ मिलकर तत्कालीन वित्तमंत्री पी चिदंबरम एक बड़ा खेल खेल रहे थे, जिसमें उनके एडिशनल सचिव अशोक चावला और वित्त सचिव अरविंद मायाराम भी शामिल थे।

कैसा खेला गया घोटाले का खेल?

कहा जा रहा है कि घोटाले का प्रारम्भ 2005 में तब हुआ जब वित्त मंत्रालय में अरविन्द मायाराम वित्त सचिव के पद पर थे और अशोक चावला एडिशनल सचिव के पद पर थे। कांग्रेस के सत्ता में आने के बाद 2006 में सिक्योरिटी प्रिंटिंग एंड मींटिंग कारपोरेशन ऑफ़ इंडिया लिमिटेड एक कंपनी बनाई गई, जिसके मैनेजिंग डायरेक्टर अरविंद मायाराम थे और चेयरमैन अशोक चावला थे, यानी दो सरकारी अधिकारी पद पर रहते हुए इस कंपनी को चला रहे थे।

बिना एसीसी के अनुमोदन के एमडी और चेयरमैन की नियुक्ति

इस प्रकार नियुक्तियों के लिए अपॉइंटमेंट्स कमिटी ऑफ़ कैबिनेट (ACC) के सामने विषय को रखकर उसके अनुमोदन की आवश्यकता होती है किन्तु चिदंबरम ने भला कब नियम-कायदों की परवाह की जो अब करते। अर्थात् ACC के सामने इन नियुक्तियों का विषय लाया ही नहीं गया और ऐसे ही इनकी नियुक्ति कर दी गयी।

इसके बाद असली खेल शुरू हुआ। इस घोटाले में चिदंबरम के दाएं व बाएं हाथ बताये जाने वाले अशोक चावला व अरविंद मायाराम ने भारतीय रिज़र्व बैंक नोट मुद्रण प्राइवेट लिमिटेड (BRBNMPL), जोकि नोटों की छपाई का काम देखती है, उससे कहा कि उनकी कंपनी के साथ मिलकर सिक्योरिटी पेपर प्रिंटिंग के सप्लायर को ढूंढो। जिसके बाद पहले से ब्लैकलिस्टेड की जा चुकी De La Rue कंपनी से नोटों की छपाई में इस्तेमाल होने वाले सिक्योरिटी पेपर को लेना जारी रखा गया।

क्या इसके लिए चिदंबरम को घूस दी गयी थी? इस ब्रिटिश कंपनी द्वारा या पाकिस्तान के आईएसआई द्वारा चिदंबरम को पैसा दिया जा रहा था? ये जांच का विषय है। बहरहाल पहले जानते हैं कि De La Rue को क्यों बैन किया गया था और पाक आईएसआई का इस घोटाले में क्या भूमिका है?

De La Rue कंपनी का खेल

दरअसल वित्त वर्ष 2009-10 के दौरान नकली मुद्रा रैकेट का पता लगाने के लिए सीबीआई ने भारत नेपाल सीमा पर विभिन्न बैंकों के करीब 70 शाखाओं पर छापेमारी की तो बैंकों से ही नकली करेंसी पकड़ी गई। जब पूछताछ कीगई तो उन बैंक शाखाओं के अधिकारियों ने सीबीआई से कहा कि जो नोट सीबीआई ने छापें में बरामद किये हैं वो तो स्वयं रिजर्व बैंक से ही उन्हें मिले हैं।

ये एक बेहद गंभीर खुलासा था क्योंकि इसके अनुसार आरबीआई भी नकली नोटों के खेल में संलिप्त लग रहा था! हांलाकि इतनी अहम् खबर को इस देश की मीडिया ने दिखाना आवश्यक नहीं समझा क्योंकि उस समय कांग्रेस सत्ता में थी।

इस खुलासे के बाद सीबीआई ने भारतीय रिजर्व बैंक के तहख़ानों में भी छापेमारी की और आश्चर्यजनक तरीके से भारी मात्रा में 500 और 1000 रुपये के जाली नोट पकडे गए। आश्चर्य की बात ये थी कि लगभग वैसे ही समान जाली मुद्रा पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई द्वारा भारत में तस्करी से पहुँचाया जाता था।

अब प्रश्न उठा कि यह जाली नोट आखिर भारतीय रिजर्व बैंक के तहख़ानों में कैसे पहुंच गए? आखिर ये सब देश में चल क्या रहा था?

जांच के लिए शैलभद्र कमिटी का गठन हुआ और 2010 में कमिटी उस वक़्त चौंक गई जब उसे ज्ञात हुआ कि भारत सरकार द्वारा ही समूचे राष्ट्र की आर्थिक संप्रभुता को दांव पर रख कर कैसे अमेरिका, ब्रिटेन और जर्मनी को 1 लाख करोड़ की छपाई का ठेका दिया गया था!

जाँच हुई तो ज्ञात हुआ कि De La Rue कंपनी में ही घोटाला चल रहा था। एक षड्यंत्र के तहत भारतीय करेंसी छापने में उपयोग होने वाले सिक्योरिटी पेपर की सिक्योरिटी को घटाया जा रहा था ताकि पाकिस्तान सरलता से नकली भारतीय करेंसी छाप सके और इसका उपयोग भारत में आतंकवाद फैलाने में किया जा सके।

इस समाचार के सामने आते ही भारत सरकार द्वारा De La Rue कंपनी पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया। मगर अरविन्द मायाराम ने इस ब्लैकलिस्टेड कंपनी से सिक्योरिटी पेपर लेना जारी रखा। इसे लेने के लिए उसने गृह मंत्रालय से अनुमति ली। कहा गया कि ये फाइल चिदंबरम को दिखाई ही नहीं गई, जबकि ये बात मानने लायक ही नहीं क्योंकि वित्त मंत्रालय से यदि गृहमंत्रालय को कोई भी पत्र भेजा जाता है तो पहले अप्रूवल के लिए वित्तमंत्री के सामने पेश किया जाता है।

क्या है पाक आईएसआई की भूमिका?

समाचार के अनुसार De La Rue कंपनी से भारत को दिए जाने वाले सिक्योरिटी पेपर के सिक्योरिटी फीचर को कम किया जा रहा था, ये कंपनी पाकिस्तान के लिए भी सिक्योरिटी पेपर छापने का काम करती है। जिसके बाद ये आरोप लगे कि इस कंपनी द्वारा भारत का सिक्योरिटी पेपर पाकिस्तान को गुपचुप तरीके से दिया जा रहा था ताकि भारत के नकली नोट छापने में पाक को सरलता हो।

यहाँ पाक आईएसआई का नाम सामने आया कि आईएसआई की ओर से कंपनी के कर्मचारियों को घूस दी जाती थी. मगर इस खेल में अरविंद मायाराम क्यों शामिल थे? क्यों वो ब्लैकलिस्टेड कंपनी से पेपर लेते रहे?

मोदी सरकार ने लिया एक्शन

जब 2014 में मोदी सरकार सत्ता में आई तब गृहमंत्री राजनाथ सिंह को ये पता चला की इतना बड़ा गोलमाल चल रहा है। इसके बाद उन्होंने सिक्योरिटी पेपर De La Rue कंपनी से लेना बंद करवाया। ये भी सामने आया कि इस कंपनी से सिक्योरिटी पेपर काफी महंगे दाम पर खरीदा जा रहा था, यानी ये कंपनी देश को लूट रही थी और देश का वित्त मंत्रालय इस काम में विदेशी कंपनी की मदद कर रहा था।

मायाराम के इस काले कारनामे की खबर पीएमओ को हुई तो पीएमओ ने गंभीरता पूर्वक इस मामले को उठाया और मुख्य सतर्कता आयुक्त द्वारा इसकी जांच करवाई। मुख्य सतर्कता आयुक्त द्वारा वित्तमंत्रालय से इससे जुड़ी फाइल मांगी गई। इस वक़्त तक वित्तमंत्री अरुण जेटली बन चुके थे मगर इसके बावजूद वित्त मंत्रालय द्वारा फाइल देने में देर की गयी।

इसके बाद ये मामला पीएमओ से होता हुआ सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संज्ञान में आया और फिर मोदी ने खुद एक्शन लिया तब जाकर मुख्य सतर्कता आयुक्त के पास फाइल पहुंची। जेटली ने फाइलें देने में देर करवाई या फिर कोंग्रेसी चाटुकारों ने जो वित्त मंत्रालय तक में बैठे हैं? ये बात साफ़ नहीं हो पाई।

नोटबंदी ना करते मोदी तो नकली करेंसी का ये खेल चलता ही रहता। De La Rue से सिक्योरिटी पेपर लेना बंद किया गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने और पीएम मोदी ने की नोटबंदी, जिसके कारण पाकिस्तान द्वारा नकली करेंसी की छपाई बेहद कम हुई और यही कारण है कि कांग्रेस के दस वर्षों में आतंकवादी घटनाएं जो आम हो गयी थी, वो मोदी सरकार के काल में ना के बराबर हुई।

कश्मीर के अलावा देश के किसी भी राज्य में बम ब्लास्ट नहीं हो पाए। आतंकियों तक पैसा पहुंचना जो बंद हो गया था। पीएम मोदी ने जांच करवाई और मायाराम के खिलाफ मुख्य सतर्कता आयुक्त और सीबीआई द्वारा आरोप तय किये गए।

आपको यहाँ ये भी बता दें कि जिस मायाराम के खिलाफ चार्ज फ्रेम किये गए हैं, उसी को राजस्थान में कांग्रेस सरकार बनते ही मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने अपने आर्थिक सलाहकार के पद पर नियुक्त कर लिया। यानी एक घपलेबाज को अपना आर्थिक सलाहकार बना लिया।

वहीँ अशोक चावला का नाम चिदंबरम के एयरसेल-मैक्सिस घोटाले में भी सामने आया। जिसके बाद ने नेशनल स्टॉ क एक्साचेंज ऑफ इंडिया लिमिटेड के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स के चेयरमैन व पब्लिक इंटरेस्ट डायरेक्टदर पद से अशोक चावला को इस्तीफा देना पड़ा।

जुलाई 2018 में सीबीआई ने चिदंबरम को एयरसेल-मैक्सिस मामले में आरोपी बनाया था। सीबीआई ने चिदंबरम, उनके बेटे कार्ति और 16 अन्यद के खिलाफ चार्जशीट दायर की थी, जिसमें आर्थिक मामलों के पूर्व केंद्रीय सचिव अशोक कुमार झा, तत्काीलीन अतिरिक्तक सचिव अशोक चावला, संयुक्तर सचिव कुमार संजय कृष्णां और डायरेक्टकर दीपक कुमार सिंह, अंडर सेक्रेटरी राम शरण शामिल हैं।

इस पूरे मामले से ये बात तो साफ़ हो जाती है कि चिदंबरम ने देश में केवल एक या दो नहीं बल्कि जहाँ-जहाँ से हो सका, वहां-वहां से देश को लूटा। चिदंबरम व उसके बेटे कार्ति चिदंबरम ने मिलकर खूब लूटा और इस खेल में ना केवल नौकरशाह शामिल रहे बल्कि न्यायपालिका में भी कई चिदंबरम भक्त बैठे हैं, जो आज भी उसे जेल जाने से बचाते आ रहे हैं।

कहा जा रहा है कि सभी में लूट का माल मिलकर बंटता था और यदि चिदंबरम जेल गए तो सीबीआई व ईडी की कम्बल कुटाई उनसे एक दिन भी नहीं झेली जायेगी और वो सब उगल देंगे। यदि ऐसा हुआ तो सभी जेल जाएंगे। यही कारण है कि चिदंबरम को हर बार अग्रिम जमानत दे दी जाती है।

मगर ये भी तय माना जा रहा है कि यदि मोदी इस बार भी चुनाव जीतकर पीएम बन गए तो चिदंबरम का जेल जाना तय है और फिर कई अन्य गड़े मुर्दे भी बाहर आएंगे। देश को कैसे-कैसे और किस-किस ने लूटा, सबको एक-एक करके सजा होगी। कांग्रेसी चाटुकार नौकरशाहों समेत माँ-बेटे व कई कोंग्रेसी नेता सलाखों के पीछे पहुंचेंगे।

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C S Sandhu ji की वॉल से

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