दिल्ली विधानसभा: महिला प्रतिनिधित्व में कांग्रेस और आप से पिछड़ी बीजेपी
मोदी सरकार बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ की स्कीम लाती है, केजरीवाल महिला सशक्तिकरण के लिए डीटीसी बसें फ्री करते है लेकिन टिकट बांटने के समय सभी युवाओं और महिलाओं को भुला बैठे।
मोदी सरकार बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ की स्कीम लाती है, केजरीवाल महिला सशक्तिकरण के लिए डीटीसी बसें फ्री करते है लेकिन टिकट बांटने के समय सभी युवाओं और महिलाओं को भुला बैठे।
दिल्ली में महौल काफ़ी गर्म है, जहां एक तरफ़ सीएए को ले कर अब तक विरोध प्रदर्शन जारी है वहीं दिल्ली विधानसभा चुनावों के लिए सभी पार्टियों ने कमर कस ली है। दिल्ली की राजनीतिक दौड़ में आम आदमी पार्टी पहले ही अपने उम्मीदवारों की सूची जारी कर चुकी है वहीं कल बीजेपी ने भी 70 में से 57 सीटों पर और कांग्रेस ने 54 सीटों पर उम्मीदवारों का नाम घोषित कर दिया है। दुनिया के सबसे बड़े लोकतन्त्र की आलोकतांत्रिक पार्टियां के उम्मीदवारों की इन सूचियों में जो चीज़ कॉमन दिखीं वो है महिलाओं और युवाओं के प्रतिनिधित्व की कमी।
अब इस लोकतान्त्रिक दौड़ में जीतता कौन है ये तो भविष्य के गर्भ में ही छुपा है लेकिन जैसे-जैसे सभी पार्टियों की सूचियाँ सामने आ रही है उस से केवल उलझन बढ़ ही रही है। जहां एक तरफ़ ये सभी पार्टियां दुनिया के सबसे बड़े लोकतन्त्र की राजधानी की गद्दी प्राप्त करने के लिए लड़ रही है, वहीं दूसरी तरफ़ ये सभी अपना आंतरिक लोकतन्त्र खोती जा रही है। चाहे बात केजरीवाल की आम आदमी पार्टी की हो या मोदी-शाह की बीजेपी की, दिल्ली के लिए प्रत्याशियों की सूची देख कर साफ पता चलता है कि महिला सशक्तिकरण, ओबीसी सशक्तिकरण, माइनॉरिटि सशक्तिकरण और युवा प्रतिनिधित्व जैसे सभी मुद्दे इन पार्टियों के लिए सिर्फ चुनावी जुमले है।
जो केजरीवाल महिला सशक्तिकरण के लिए डीटीसी बसें फ्री करते है और मेट्रो फ्री कराने की बातें करते है, क्यों वो 70 में से मात्र 11 सीटें ही महिलाओं को दे पाए? क्यों जो मोदी सरकार बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ की स्कीम लाती है वो 57 में से मात्र 4 सीटें महिलाओं को दे पाई?
जहां प्रधानमंत्री और बीजेपी भारत के सबसे युवा देश होने में गर्व प्राप्त करते है वह दिल्ली विधानसभा चुनाव के लिए टिकट बांटते हुए महिलों के साथ-साथ अपने युवा-साथियों को ही भूल गए। इतना ही नहीं यदि भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशियों की पूरी लिस्ट का अध्ययन किया जाए तो ज्ञात होगा कि इस बार बीजेपी भी अपने उसूल तोड़ने में पीछे नहीं रही। चाहें वर्तमान निगम पार्षदों को विधानसभा का टिकट देने की बात हो या अपने क्षेत्र में कई बार हारकर जनता का विश्वास खो चुके बुजुर्ग नेताओं को फिर से टिकट दे कर नए और युवा कार्यकर्ताओं को मौका न देकर उनका मनोबल तोड़ने की, बीजेपी इस बार अपने सारे उसूल तोड़ती नज़र आई। और यदि महिला और युवा प्रतिनिधित्व की बात की जाए तो बीजेपी की हालत इस बार आम आदमी पार्टी और कांग्रेस से भी बुरी रही। बीजेपी ने कुछ समय पहले खुद की एक नियम बनाया था कि वे 75 साल से ज़्यादा आयु के लोगों को चुनाव में नहीं उतरेगी पर ये बात भी झूठी साबित हुई।
दुनिया के सबसे बड़ी पार्टी होने का दावा करने वाली बीजेपी राजधानी में 57 में से मात्र 4 सीटें ही महिलाओं को दे पाई। बीजेपी के लिए दिल्ली में उभरने का ये एक उचित मौका था जहां वे नए और युवा चेहरों को मौका दे कर एक नई और मज़बूत टीम तैयार कर सकती थी, परंतु हर बार कि तरह इस बार भी बीजेपी टिकट वितरण में चूक करती नज़र आई।
यहां तक कि कैंसर से पीड़ित (ईश्वर उनकी आयु लंबी करे) एक बुजुर्ग नेता को भी टिकट देकर पार्टी ने ना जाने कौन सी जीत हांसिल करने की कोशिश की है जबकि वो नेता अपने कैंसर के कारण काफी समय से सक्रिय भी नही हैं।
राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार दिल्ली में सालों से बीजेपी सरकार न बनने का सबसे बड़ा कारण ही बीजेपी का अनुचित टिकट वितरण है और इस बार भाजपा फिर दिल्ली में वहीं गलती दौहरने जा रहीं है।
वहीं दूसरी ओर आम आदमी पार्टी की सीटें घोषित हुए चंद दिन ही हुए है और केजरीवाल पर टिकट बेचने के आरोप पहले ही लग चुके है। यूं तो इस पार्टी का गठन भ्रष्टाचार के खिलाफ़ हुआ था पर देखते ही देखते केजरीवाल खुद भ्रष्टाचार में कब लिप्त हो गए पता ही नहीं चला। और ये कोई पहली बार नहीं है जब केजरीवाल का नाम चुनावी टिकट बेचने में आया हो। आम आदमी पार्टी अपने गठन के समय से ही इस आरोप से हमेशा घिरती आई है।
खैर इस सब से अलग केजरीवाल हमेशा से ही महिला सशक्तिकरण के पक्षधर रहे है। चाहे दिल्ली की सड़कों पर महिला सुरक्षा के लिए सीसीटीवी कैमरों का वादा हो या महिलों के लिए बसें फ्री करना, दिल्ली के मुख्यमंत्री अक्सर ही बड़े-बड़े वादे करते है वो अलग बात है की उन वादों का कुछ ख़ासा परिणाम पिछले 5 साल में दिल्ली की जनता को दिखा नहीं। न ही तो सड़कों पर सुरक्षा के लिए कैमरे लगे और न ही फ्री वाईफाई और ले दे कर जो डीटीसी बसें फ्री की उसका भी खामियाज़ा बेचारी डीटीसी और उसके कर्मचारियों को भुगतना पड़ रहा है।
अब सवाल ये खड़ा होता है कि यदि हमारे मुख्यमंत्री महिलाओं को ले कर इतने ही चिंतित और जागरूक है तो क्यों वो शुरुआत अपने पार्टी से ही नहीं कर पाए? यदि महिलाओं को ले कर बीजेपी और कांग्रेस की नीतियाँ इतनी ही खराब है तो क्यों केजरीवाल साहब एक उचित अनुपात में महिला प्रत्याशी सामने ला कर एक नया उदाहरण पेश नहीं कर पाए?
साथ ही कांग्रेस ने भी 54 सीटों पर अपने ऊमीद्वार घोषित कर दिये है। कांग्रेस ने 54 लोगों के नाम की घोषणा की है जिसमें से 7 महिलाएं है। यूं तो परिवारवाद का अंतर्राष्ट्रीय उदाहरण बन चुकी कांग्रेस से जनता को कुछ ख़ास उम्मीद नहीं है परंतु महिला प्रतिनिधित्व के मामले में कांग्रेस बीजेपी और आम आदमी पार्टी के मुक़ाबले बाज़ी मार गई।
काफ़ी हास्यपद है कि जो पार्टियां हर समय महिलाओं की बराबरी के लिए गाल बाजाती रहती है वो बराबरी का दर्ज़ा तो दूर महिलों को 25% सीटें भी नहीं दे पाई। अब इस अंधी दौड़ में काना राजा कौन बनता है ये देखने वाली बात होगी।