राफेल बनाम बोफोर्स : चोरों को सभी चोर नज़र आते हैं

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बोफोर्स के भ्रष्टाचार में डूबी एक परिवार की पूरी पीढ़ी और उसकी पार्टी राफेल के तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर किसी न किसी प्रकार उसे भी भ्रष्ट सौदा सिद्ध करना चाहती है

कांग्रेस की हालत सब कुछ हार चुके किसी, लतिहड़ जुआरी से भी बदतर हो गयी है

फ्रांस के भूतपूर्व राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद का यह बयान कल फ्रांस के एक न्यूज पोर्टल मीडियापोर्ट ने प्रकाशित किया कि... "अनिल अंबानी के रिलायंस का नाम उन्हें भारत सरकार ने सुझाया था। उनके पास और कोई विकल्प नहीं था। भारत सरकार के नाम सुझाने के बाद ही दसॉल्ट एविएशन ने अनिल अंबानी की रिलायंस डिफेंस से बात शुरू की।"

फ्रांस्वा ओलांद का यह बयान कितना सच्चा है और ऐसा बयान देनेवाला फ्रांस्वा ओलांद खुद कितना सच्चा है.? इसकी गवाही देती हैं कुछ तिथियां और तथ्य।

ये समाचार Reuters में 12 फरवरी 2012 को प्रकाशित हुआ था। फोटो पर Click करके उसे पूरा पढ़ सकते हैं।

अतः पहले यह जान लें कि फ्रांस्वा ओलांद 15 मई 2012 को फ्रांस का राष्ट्रपति बना था। अब यह भी जान लीजिए कि उसके राष्ट्रपति बनने से साढ़े 4 महीने पहले ही फाइटर प्लेन राफेल बनाने वाली दसॉल्ट एविएशन के साथ रिलायंस का समझौता 29 जनवरी 2012 में ही हो चुका था। यह समझौता दसॉल्ट एविएशन को फाइटर प्लेन राफेल भारत को बेचने का टेंडर मिलने के 10-15 दिन बाद ही हो गया था। यहां फर्क बस इतना है कि जिस समय यह समझौता रिलायंस डिफेंस के साथ हुआ था उस समय रिलायंस डिफेंस के मालिक मुकेश अम्बानी थे। आज उसके मालिक अनिल अम्बानी है। मालिक जरूर बदल गए थे लेकिन कम्पनी नहीं बदली थी। इसका कारण भी जानिए कि अम्बानी परिवार के दोनों भाइयों मुकेश व अनिल के मध्य चल रहे भीषण शीतयुद्ध को शांत करने के लिए 2015 में हुए समझौते के तहत मुकेश अम्बानी ने अपने कम्पनी समूह रिलायंस इंडिया लिमिटेड (RIL) का कुछ हिस्सा अनिल अम्बानी को दे दिया था। उस हिस्से में रिलायंस डिफेंस नाम की रक्षा क्षेत्र की वह कम्पनी भी शामिल थी जिसके साथ 29 जनवरी 2012 को दसॉल्ट एविएशन का समझौता हो चुका था। इसके बदले में अनिल अम्बानी ने अपनी कम्पनी रिलायंस टेलीकम्युनिकेशन का स्वामित्व मुकेश अम्बानी की कम्पनी जियो को सौंप दिया था।

लेकिन इस पारिवारिक अदला बदली से इतर कांग्रेस को यह बताना चाहिए कि जनवरी 2012 में दसॉल्ट एविएशन को राफेल का टेंडर मिलने के 10-15 दिन के भीतर ही दसॉल्ट एविएशन ने रिलायंस से समझौता किस के दबाव में किया था.? दसॉल्ट एविएशन पर यह दबाव क्या तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने डाला था.? या यह दबाव तत्कालीन सत्तारूढ यूपीए की चेयरपर्सन सोनिया गांधी ने डाला था.? या यह दबाव स्वयं राहुल गांधी ने डाला था.?

कांग्रेस को यह भी जवाब देना चाहिए कि गांधी परिवार के घनिष्ठतम पारिवारिक मित्र तथा आजकल राहुल गांधी का फ्रेंड फिलॉस्फर गाइड बनकर विदेशी दौरों में साये की तरह राहुल गांधी के साथ घूम रहे सैम पित्रोदा की कम्पनी सैमटेल को फाइटर प्लेन बनाने वाली कम्पनी दसॉल्ट एविएशन ने किस की सिफारिश पर समझौता कर के ठेका दिया है.?

इसी के साथ ही फ्रांस के भूतपूर्व राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद को तथा उसका तथाकथित बयान प्रकाशित करने वाले न्यूज पोर्टल को भी यह बताना चाहिए कि... फ्रांस्वा ओलांद के राष्ट्रपति बनने से पूर्व दसॉल्ट एविएशन का जो समझौता रिलायंस के साथ हुआ था। उसे कराने के लिए फ्रांस्वा ओलांद से भारत सरकार का कौन प्रतिनिधि क्यों मिला था.? फ्रांस का राष्ट्रपति बनने से पहले फ्रांस्वा ओलांद क्या दसॉल्ट एविएशन के लिए दलाली करने का धंधा करता था.?

सम्भवतः इतने तथ्य पर्याप्त हैं यह बताने के लिए कि फ्रांस्वा ओलांद का बयान कितना सच्चा है और यदि फ्रांस्वा ओलांद ने ऐसा कोई बयान दिया है तो... ऐसा बयान देनेवाला फ्रांस्वा ओलांद खुद कितना सच्चा है.?

लेकिन महत्वपूर्ण सवाल यह है कि झूठ की जमीन पर झूठ की ईंटों से झूठ का यह महल खड़ा करने की कोशिश हुई क्यों.?

जाहिर है कि ऐसी खबर से कांग्रेस के अलावा किसी और को फायदा नहीं होना था।

रअसल पहले सहारा डायरी फिर जस्टिस लोया की मौत व जयशाह की सम्पत्ति पर भारत के एक न्यूज पोर्टल "दी वायर" के माध्यम से सरासर झूठी किन्तु बहुत सनसनीखेज खबरें प्रकाशित कराई गई। लेकिन तीनों मामलों में अदालत ने जब सबूत मांगे तो उस न्यूज पोर्टल और उसकी आड़ में आरोप लगाने वाली कांग्रेस तथा उसके साथी सहयोगियों का मुंह बुरी तरह काला हुआ। उनको अदालतों से बुरी तरह फटकार खा कर वापस लौटना पड़ा था। अतः इसबार अपने झूठ को एक विदेशी न्यूज पोर्टल की बैसाखियों के सहारे दौड़ाने की अत्यन्त अश्लील कोशिश की गयी। ताकि किसी अदालत में कलई खुलने की कोई सम्भावना नहीं रहे। लेकिन ऐसा करते समय मोदी विरोधी गैंग यह भूल गया कि सोशल मीडिया की "सहस्त्र लेन" सड़क पर दौड़ रहे तिथियों और तथ्यों के बुलडोजर के समक्ष इन बैसाखियों की धज्जियां उड़ जाएंगी।

दरअसल सहारा डायरी, जस्टिस लोया की मौत और जयशाह की सम्पत्ति के मुद्दे का दांव चलने के बाद बुरी तरह से पराजित हो चुकी कांग्रेस ने फ्रांस्वा ओलांद के बयान का यह नया दांव चला है। कांग्रेस का यह दांव उस बुरी तरह हारे हुए लतिहड़ जुआड़ी की याद दिला रहा है जो अपनी धन-सम्पत्ति, अपना घर-द्वार हारने के बाद स्वयं को ही दांव पर लगा देता है।

ये समाचार livemint में 12 फरवरी 2012 को प्रकाशित हुआ था। फोटो पर Click करके उसे पूरा पढ़ सकते हैं।



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