भारतीय वामपंथ एक चारण : पूँजीवाद और समाजवाद का मिक्स नॉनवेज पुलाव ?
भारत का कम्युनिस्ट आंदोलन कांग्रेस का बायां हाथ पकड़कर आगे बढ़ा, कांग्रेस ने उसे फलने-फूलने के अवसर दिए
भारत का कम्युनिस्ट आंदोलन कांग्रेस का बायां हाथ पकड़कर आगे बढ़ा, कांग्रेस ने उसे फलने-फूलने के अवसर दिए
वामपंथ मार्क्सवाद दरअसल जर्मन दार्शनिक हीगल के द्वंद्ववाद, इंग्लैंड के पूंजीवाद और फ्रांसीसी समाजवाद का "मिला-जुला नॉनवेज पुलाव" है।
इसमें यूरोपीय सामंती भावना, सबसे उच्च होने का दंभ भी रहा है और भारत, भारतीयों के प्रति हीनभाव भी। यही वजह है कि वामपंथ भारत के स्वाभाविक सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का विरोधी है। ऐसा उसके मूल आयातित चरित्र के कारण जन्मा है, तो वहीं कांग्रेस... 1857 के गदर से सहमी कंपनी सरकार के ही अधिकारी "ए ओ ह्यूम" के हाथों अस्तित्व में आने और हितसाधन के बाद आगे.... तिलक, गांधी, विपिन चंद्र पाल, सरदार पटेल का नेतृत्व पाकर भी राष्ट्रवादी नहीं हो सकी। अपनी नियति के चलते वह आजादी के आंदोलन से राजनीतिक पार्टी और आगे चल कर एक खानदान की प्रॉपर्टी बन गई। कांग्रेस और वामपंथ चरित्र में एक हैं।
भारत में कम्युनिस्ट पार्टी का जन्म रूसी क्रांति की प्रेरणा से नवंबर 1925 में कांग्रेस अधिवेशन की छाया में हुआ था। भारत का कम्युनिस्ट आंदोलन कांग्रेस का बायां हाथ पकड़कर आगे बढ़ा, कांग्रेस ने उसे फलने-फूलने के अवसर दिए। भारतीय वामपंथ को सत्ता के छायावाद में पाले जाने की परंपरा और उनके स्वभाव में समा चुकी....
कांग्रेसी राजनीतिक सत्ता के प्रति परजीविता एवं सत्ता लोलुपता का चरम उदाहरण देश ने उस समय देखा जब "श्रीमती इंदिरा गांधी" ने संविधान सहित देश के सर्वोच्च न्याय एवं सैनिक संस्थानों को अपनी "अंगुली पर नाचते हुये" पूरे निरंकुश भाव के साथ देश में इमरजेंसी लगाई।
जब आपातकाल के समर्थन और विरोध के मुद्दे पर भारतीय वामपंथ में राजनीतिक बटवारा हुआ। इसी समयकाल में कुछ पहले बाकायदा अलग होकर भारतीय वामपंथी राजनीतिक पार्टी के रूप में भाकपा के साथ माकपा अस्तिव में आयी। पंडित नेहरू की तैयार की गयी अल्ट्रा लेफ्ट वैचारिक जमीन पर..... भारतीय वामपंथ का सत्ता के चाकर और चारण के तौर पर स्थापन और क्रूर इस्तेमाल करने का काम किया श्रीमती इंदिरा गांधी ने। राजीव गांधी ने अपने नाना और माँ द्वारा पैदा उस विष बेल का भरपूर इस्तेमाल किया, और तब तक भारतीय वामपंथ खुद के अस्तित्व को लेकर इतना रीढ़ विहीन हो चुका था कि नरसिंहा राव और मनमोहन सिंह तक आते-आते कांग्रेसी राजघराने की मालिकन सोनिया गांधी के रिमोट के बटन के आगे इसकी पहचान सत्ता के साथ "लिव इन रिलेशनशिप" भर की रह गयी।
कांग्रेसी सत्ताओं के साथ साढ़े चार साल का दांपत्य और चुनाव से ठीक छ महीने पहले तीन तलाक, चुनावों बाद सत्ता के साथ फिर दांपत्य शुरू। इस चरित्र से आगे बढ़ पाना कभी भी भारतीय वामपंथी राजनीति के लिए संभव ही न हो पाया। उधार के सिंदूर से सुहागिन बने रहने की गलतफहमी के अतिरिक्त... भारतीय लोकतांत्रिक जमीन पर वामपंथी राजनीति का कुछ भी शेष नहीं। अपने जन्म के समय से कांग्रेसी सत्ताई छायावाद के रहने तक इनका यही चरित्र रहा है और 2014 के बाद की बेरोजगारी के दौर में अपने मालिकान कांग्रेस के लिए गिरोहबाजी करने तक जारी है। कुल मिलाकर भारतीय वामपंथी 2014 के बाद से विधवा हैं और अपने बिनब्याहे भतार कांग्रेस की सत्ता वापसी होने... खुद के सुहागिन होने की आस में हलकान हैं। हालांकि देश जानता है कि इनका यह वैधव्य अब लंबा और इनकी सुहागिन बनने की प्रतीक्षा अंतहीन है।