चंद्रबाबू नायडू ने दिल्ली में एक दिन के धरने के खर्च में बेदर्दी से बहाये जनता के 11 करोड़ !
आपको बता दें कि मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू सरकार ने सिर्फ 2 स्पेशल ट्रेनों को बुक करने के लिए ही राज्य के खजाने से 1.12 करोड़ रुपए खर्च कर दिया। इसके अलावा 12 घंटे के इस धरने में आने वाले विशिष्ट लोगों, पार्टी कार्यकर्ताओं, के लिए दिल्ली में रिजर्व किए गए 1100 कमरे एवं उनके खाने आदि के अन्य खर्चों के लिए नायडू ने 10 करोड़ रूपये का एक अन्य आदेश अपनी सरकार को दिया। इस प्रकार 12 घंटे के धरने में लगभग 11 करोड़ रूपये का खर्चा किया गया।
आपको बता दें कि मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू सरकार ने सिर्फ 2 स्पेशल ट्रेनों को बुक करने के लिए ही राज्य के खजाने से 1.12 करोड़ रुपए खर्च कर दिया। इसके अलावा 12 घंटे के इस धरने में आने वाले विशिष्ट लोगों, पार्टी कार्यकर्ताओं, के लिए दिल्ली में रिजर्व किए गए 1100 कमरे एवं उनके खाने आदि के अन्य खर्चों के लिए नायडू ने 10 करोड़ रूपये का एक अन्य आदेश अपनी सरकार को दिया। इस प्रकार 12 घंटे के धरने में लगभग 11 करोड़ रूपये का खर्चा किया गया।
चंद्रबाबू नायडू के द्वारा 11 फरबरी को दिल्ली स्थित आंध्र भवन में मात्र 12 घंटे के लिए किए गए धरना प्रदर्शन में भीड़ इकट्ठा करने का खर्च जान कर राज्य की जनता के होश उड़ जाएंगे कि किस प्रकार एक मुख्य मंत्री ने सिर्फ अपनी कुर्सी बचाने के लिए उनकी मेहनत की कमाई के 11 करोड़ रुपए पानी की तरह बहा दिये।
जनता की भलाई की बड़ी - बड़ी बाते करके सत्ता पर काबिज होने वाले ये नेता आजकल सिर्फ अपनी जाती हुई कुर्सी बचाने के लिए उसी जनता के द्वारा टेक्स के रूप में दिये गए राजस्व को बेदर्दी पानी की तरह बहाने से नहीं चूकते।
आपको बता दें कि मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू सरकार ने सिर्फ 2 स्पेशल ट्रेनों को बुक करने के लिए ही राज्य के खजाने से 1.12 करोड़ रुपए खर्च कर दिया। इसके अलावा 12 घंटे के इस धरने में आने वाले विशिष्ट लोगों, पार्टी कार्यकर्ताओं, के लिए दिल्ली में रिजर्व किए गए 1100 कमरे एवं उनके खाने आदि के अन्य खर्चों के लिए नायडू ने 10 करोड़ रूपये का एक अन्य आदेश अपनी सरकार को दिया। इस प्रकार 12 घंटे के धरने में लगभग 11 करोड़ रूपये का खर्चा किया गया।
ध्यान दें कि ये 11 करोड़ रुपया सरकारी खजाने से खर्च किया गया है अगर नायडू चाहते तो वो ये धरना अपने गृह राज्य में कर सकते थे और अगर वो ऐसा करते तो शायद इस खर्चे के 10 प्रतिशत से भी कम में काम हो जाता और बाकी के पैसे को किसी गाँव के विकास में लगाया जाता तो वो गाँव पूरी तरह विकसित हो जाता।
दरअसल पिछले काफी समय से टीडीपी आंध्र प्रदेश के लिए 'विशेष राज्य' के दर्जे की मांग कर रही है लेकिन केंद्र की मोदी सरकार नए नियमों का हवाला देकर इस मांग को खारिज करती आ रही। इसके अलावा आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने पिछले 5 साल से अपने राज्य में जनता की भलाई के लिए कुछ नहीं किया है जिससे वहाँ के लोगों में उनका जनाधार दिन प्रतिदिन खिसक रहा है और ये खिसकता जनाधार ही उनकी चिंता का मुख्य केंद्र बिन्दु है।
अब 2019 के लोकसभा चुनाव एवं उसके साथ या उसके कुछ ही समय बाद आंध्र के विधान सभा चुनाव में अपने खिसकते जनाधार को बचाने के लिए उनके पास कुछ और तो बचा नहीं है इसीलिए शायद उन्होने सोचा कि क्यों ना वो भी केंद्र की मोदी सरकार के विरुद्ध अरविंद केजरीवाल और ममता बनर्जी की तरह से धरना प्रदर्शन की राजनीति का प्रयोग करें। लेकिन यहाँ उन्होने ये गलती करी कि ये धरना आंध्र प्रदेश में करने की जगह दिल्ली में किया।