चंद्रबाबू नायडू के साथ भ्रष्टों का धरना या धरने पर भ्रष्ट ?
सवाल यह उठता है कि वह भूख हड़ताल करने के लिए दिल्ली क्यों आये? जब राज्य के हक़ की बात थी तो क्या ये उचित नहीं होता कि वह आन्ध्र की राजधानी अमरावती में ही अनशन करते?
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सवाल यह उठता है कि वह भूख हड़ताल करने के लिए दिल्ली क्यों आये? जब राज्य के हक़ की बात थी तो क्या ये उचित नहीं होता कि वह आन्ध्र की राजधानी अमरावती में ही अनशन करते?
आन्ध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू आज पूरे लाव लश्कर के साथ दिल्ली पहुंचे हुए थे, भूख हड़ताल करने के लिए। वो देश को बताना चाहते थे कि कैसे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आन्ध्र प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा न दे कर आन्ध्र के लोगों के साथ छल किया है।
पर सवाल यह उठता है कि वह भूख हड़ताल करने के लिए दिल्ली क्यों आये? जब राज्य के हक़ की बात थी तो क्या ये उचित नहीं होता कि वह आन्ध्र की राजधानी अमरावती में ही अनशन करते? उनका तो चुनावी मुद्दा ही यही था कि वह अमरावती को एक वर्ल्ड क्लास राजधानी बनाएंगे। और जहाँ तक राहुल गाँधी, केजरीवाल, तृणमूल कांग्रेस इत्यादि के समर्थन की बात है तो ये सब तो अमरावती में भी इकट्ठे हो सकते थे जैसे पहले बैंगलोर और फिर कोलकाता में हुए थे।
नायडू अमरावती में अनशन कर के अपनी माँग को ज़्यादा प्रभावी ढंग से रख सकते थे। देश को पता भी चल जाता कि 2015 में जिस राजधानी की आधारशिला रखी गई है, 4 साल में वहाँ कितना काम हुआ है।
लेकिन नायडू ने ऐसा नहीं किया।
क्योंकि पिछले चार सालों में अमरावती में कोई काम हुआ ही नहीं है। योजना तो ये थी कि दस सालों में आधुनिक सुविधाओं से सुसज्जित अमरावती खड़ा हो जायेगा। लेकिन ऐसा कुछ हुआ नहीं।
ऐसे हालात में अमरावती में भूख हड़ताल करने का मतलब होता खुद को ही एक्सपोज़ करना और चंद्रबाबू नायडू कतई ऐसा नहीं होने देना चाहते थे।
सिंतबर 2018 में एक रिपोर्ट आई थी जिसके अनुसार अमरावती में drainage और बिजली जैसी मूलभूत सुविधाएं तक भी तैयार नहीं हुई थीं। इकनोमिक टाइम्स में छपी एक खबर के अनुसार, केंद्र ने राज्य को 1500 करोड़ रुपये अमरावती के लिए और पाँच-पाँच सौ करोड़ गुंटूर और विजयवाड़ा के लिए दिए थे। क्या हुआ उन पैसों का, किसी को नहीं पता। जब प्रधानमंत्री से चंद्रबाबू नायडू ने और पैसों की माँग की तो प्रधानमंत्री ने उनसे पहले से दिए गए पैसों का हिसाब देने को कहा, जो वो नहीं दे पाए। कैसे देते? आधे पैसे तो उड़ा दिए उन्होंने। और यही जड़ है चंद्रबाबू नायडू के गुस्से का। चुनाव आने वाले हैं, उनके पास जनता को दिखाने के लिए कुछ है नहीं तो उन्होंने अपने पाप का घड़ा नरेंद्र मोदी के सर पर फोड़ने का निर्णय लिया ताकि वह जनता को बेवकूफ बना सकें।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राज्यों से यह साफ कह दिया था कि जो भी पैसा केंद्र देगा, उसकी पाई-पाई का हिसाब लेगा। अब नायडू के पास कोई हिसाब नहीं था तो मोदी ने आगे पैसे देने से मना कर दिया।
यही है असली कारण नायडू के गुस्से का। अपनी नाकामियों को छुपाने के लिए ही वह मोदी पर लगातार प्रहार कर रहे है ।
पर नरेंद्र मोदी ऐसे प्रहारों से कब डरे हैं भला !
जो सत्य के मार्ग पर चलता है, उसे किसी भी चीज से से डर नहीं लगता।
मोदी सत्य के मार्ग पे चलते थे, चलते हैं और चलते रहेंगे।