"जामिया मिलिया" - स्टूडेंट इस्लामिक मूवमेंट ऑफ़ इंडिया (SIMI) के कब्जे में जा रहा है ?
क्या राष्ट्रवाद तथा सेक्युलरवाद का देदीप्यमान प्रकाशस्तंभ जामिया मिलिया इस्लामिया अब प्रतिबंधित स्टूडेंट इस्लामिक मूवमेंट ऑफ़ इंडिया (सिमी) के कब्जे़ में आ जाएगा
क्या राष्ट्रवाद तथा सेक्युलरवाद का देदीप्यमान प्रकाशस्तंभ जामिया मिलिया इस्लामिया अब प्रतिबंधित स्टूडेंट इस्लामिक मूवमेंट ऑफ़ इंडिया (सिमी) के कब्जे़ में आ जाएगा
जामिया मिलिया को फिरकापरस्तों से छुड़ाना होगा| आज इस गाँधीवादी सेक्युलर संस्थान पर दुबारा जिन्नावादियों का शिकंजा कस रहा है| आजादी के समय पहला हुआ था| बात कोई व्यंजनावाली नहीं है क्योंकि जामिया में हो रहे सिरफिरे छात्रों वाले हादसे से भारतीय राष्ट्र-राज्य के वैचारिक वैविध्य और बहुलतावादी समाज को आघात हुआ है। मुस्लिम वोट झपटनेवालों ने तथ्यों को तोड़ा है। सेक्युलर जामिया मिलिया के प्रति व्यापक राष्ट्रवादी सरोकार ने कट्टरवादी मुसलमानों के समक्ष यह स्पष्ट कर दिया कि यह गांधीवादी संस्थान न बिकाऊ है, न पालाबदलू है। इसके संस्थापकों का आस्थामंत्र है: हुबुल वतन, मीनल ईमान (अर्थात देश के प्रति तुम्हारा प्रेम, तुम्हारे विश्वास का हिस्सा है)। अगले वर्ष इसकी शताब्दी है| दशकों से जामिया मिलिया इस्लामिया राष्ट्रवाद का सर्वाधिक उम्दा प्रतीक रहा, किन्तु अब भ्रामक कारणों से सुर्खियों में आ गया। इसके वर्तमान को देखने के पूर्व इसके गुजरे वक्त का विश्लेषण करें। इस पर संकट अनेकों आये थे, कई तो आज की विपत्ति से भी ज्यादा भीषण, मगर अपनी राष्ट्रवादी आस्था के कारण इसने उन सबका सामना किया, उन्हें पार किया और हल किया।
अनभिज्ञ हिन्दू के लिए जामिया मिलिया एक मदरसानुमा है जहाँ केवल इस्लाम पढ़ाया जाता है। इस्लामिस्टों की नजर में यह धर्मविरोधी केन्द्र रहा। राष्ट्र के कैलेण्डर में जामिया मिलिया का उद्भव हुआ जब अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय ने मुस्लिम अलगाववाद को गहरा कर दिया था और हिन्दू-मुस्लिम को दो राष्ट्र के रूप में पेश किया था। जामिया ने इन दोनों अवधारणाओं की जमकर मुखालफत की थी। जामिया मिलिया गांधीजी के अपील से सृजित हुई थी कि मेकालेवादी ब्रिटिश शिक्षा संस्थानों का बहिष्कार करो और राष्ट्रीय शिक्षा केन्द्रों को गठित करो, जैसे गुजरात और काशी विद्यापीठ। सेवाग्राम में रचित बुनियादी तालीम योजना तथा स्वाधीनता संग्राम की कोख से जामिया मिलिया जन्मा था। इसने भारत के विभाजन का, इस्लामी पाकिस्तान के सृजन का पुरजोर विरोध किया था। यह अखण्ड भारत का पक्षधर रहा।
जामिया की स्थापना ही बड़े सेक्युलर ढंग से हुई। मुस्लिम युनिवर्सिटी से अलग होने के बाद अलीगढ़ में सेठ किशोरी लाल के कृष्णा आश्रम में 31 अक्तूबर 1920 में इसकी नींव पड़ी। हकीम अजमल खान, हसरत मोहानी, मौलाना शौकत अली, मौलाना मोहम्मद अली आदि ने जामिया भवन बनाया। वे सब अलीगढ़ युनिवार्सिटी के संकुचित, सांप्रदायिक सिद्धांतो से असहमत थे।
यहां एक तुलना उल्लेखनीय है। अलीगढ़ मुस्लिम युनिवर्सिटी की स्थापना सैय्यद अहमद खान ने की, जिन्हें उनकी सेवा के एवज में ब्रिटिश सरकार ने "सर" के खिताब से नवाजा था। इसी समय जामिया मिलिया की स्थापना मौलाना महमूद हसन ने की जो तभी मालटा में ब्रिटिश जेल की कैद से रिहा होकर भारत लौटे थे। उनके इस राष्ट्रवादी शैक्षणिक अभियान में मौलाना अबुल कलाम आजाद, डा. सैफुद्दीन किचलू, डा. मुख्तार अहमद अंसारी, मौलाना अब्दुल बारी फरंगीमहली तथा मौलाना हुसैन अहमद मदनी शामिल थे।
गांधी जी के असहयोग आन्दोलन में जामिया मिलिया इस्लामिया के अध्यापक सत्याग्रही बनकर ब्रिटिश जेलों में रहे। वे लोग सरदार पटेल के बारदोली आन्दोलन से जुडे़ थे। मौलवी साद अंसारी, छात्र नेता हुसैन हसन, खादीधारी और गांधीटोपी लगानेवाले शफीकुर रहमान किदवई स्वाधीनता संग्राम में जेल गए। जब गांधी जी ओखला-स्थित जामिया मिलिया के परिसर में (2 नवम्बर 1927) आये थे तो उनके स्वागत में खादी पहने, तकली से सूत कातते छात्र प्रवेशमार्ग की दोनों ओर खड़े थे। "मुझे लगता है मैं अपने घर आ गया हूँ| कहा था तब बापू ने।
एक बार जामिया पर भारी वित्तीय संकट आ गया था। अलीगढ़ मुस्लिम युनिवर्सिटी को तो ब्रिटिश सरकार से अपार धनराशि मिलती थी। मगर जामिया मिलिया ब्रिटिश सरकार की मुखालफत करती थी। उस समय जामिया के अध्यापक डा. जाकिर हुसैन और मोहम्मद मुजीब साबरमती आश्रम गये। बापू से मदद मांगी। गांधी जी ने कहा, "जामिया मिलिया के लिये मैं भिक्षापात्र लेकर सारे भारत में धूमूंगा|" उनके कई शिष्यों, जिनमें धनश्यामदास बिडला भी थे, ने जामिया को आर्थिक इमदाद दी। स्वाधीनता के बाद ही पहली बार भारत सरकार से जामिया ने आर्थिक सहायता पाई थी।
जामिया के राष्ट्रीय स्वरूप पर बेहतरीन टिप्पणी की थी उसके पुराने छात्र राणा जंग बहादुर ने जो बाद में टाइम्स आफ़ इंडिया के सम्पादक बने और इंडियन फेडरेशन ऑफ़ वर्किंग जर्नलिस्ट्स के संस्थापक थे। राणा ने कहा थाः "हिन्दुस्तान की प्यासी जवानी का जामिया के पनघट पर मेला लग गया था|"
मगर आज जामिया मिलिया की सेक्युलर छवि चोटिल हो गई है। वोट बैंक लुटेरों ने इसमें सियासत को घोल दिया है| विश्वसनीयता का संकट उपजा। आज सवाल उठ रहें है कि क्या राष्ट्रवाद तथा सेक्युलरवाद का देदीप्यमान प्रकाशस्तंभ जामिया मिलिया इस्लामिया अब प्रतिबंधित स्टूडेंट इस्लामिक मूवमेंट ऑफ़ इंडिया (सिमी) के कब्जे़ में आ जाएगा| पंथनिरपेक्ष भारतीयों को जवाब चाहिए, गांधी के अनुयायियों को तो खासकर।