शादी के बाद उसे "इस्लाम कबूल" करने के लिए मजबूर किया : वाजिद खान की पत्नी के आरोप

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शादी के बाद उसे इस्लाम कबूल करने के लिए मजबूर किया : वाजिद खान की पत्नी के आरोप

इसका परिणाम ये हुआ कि मुझे मेरे पति के परिवार वालों ने परिवार से बहिष्कृत कर दिया और मेरे खिलाफ एक से एक डरावने तरीके इस्तेमाल किये ताकि मैं इस्लाम कबूल कर लूं

दिवंगत संगीतकार वाजिद खान की पत्नी, कमालरुख खान ने एक हैरान कर देने वाला खुलासा कराते हुये आरोप लगाया है कि उनकी शादी के बाद उनके पति के परिवार ने उन्हें इस्लाम में धर्मांतरित करने के लिए कई हथकंडे अपनाए यहाँ तक कि उसे तलाक की धमकी भी दी गई।

ज्ञात हो संगीतकार वाजिद खान मशहूर साजिद-वाजिद संगीतकार जोड़ी का अहम हिस्सा थे इस साल की शुरुआत में 42 साल की कम उम्र में उनका निधन हो गया।

एक पारसी के रूप में जन्मी, कमालरुख खान ने एक लंबे इंस्टाग्राम बयान में "अपनी पीड़ा और साथ हुये भेदभाव" को लोगों के साथ साझा किया। उसने लिखा कि उसने अपनी शादी के बाद मैंने नख-शिख सहित इसके खिलाफ लड़ाई लड़ी है। इसका परिणाम ये हुआ कि मेरे ससुरालवालों ने मेरे खिलाफ एक से एक डरावने तरीके इस्तेमाल किये ताकि मैं इस्लाम कबूल कर लूं। नतीजतन, वह अपने पति के परिवार से बहिष्कृत थी और उसे बहिष्कृत समझा जाता था।

कमालरुख ने यह भी लिखा कि मैं हमेशा सभी धर्मों का सम्मान करती हूं और उनके सभी धार्मिक आयोजनों में शामिल भी होती थी लेकिन मेरे ऊपर धर्मांतरण का दबाव लगातार बढता जा रहा था और ये दबाव यहां तक बढा कि मुझे तलाक के लिए अदालत की शरण लेनी पड़ी।

कमालरुख ने कहा कि मेरी गरिमा और स्वाभिमान ने मुझे उनके और उनके परिवार के लिए इस्लाम में परिवर्तित होने की अनुमति नहीं दी।

कमालरुख का दर्द उनकी ही लिखी इबारत में पढ़ें, जिसे उन्होंने सोशल मीडिया पर साझा किया है।

मेरा नाम कमालरुख खान है। मैं स्वर्गीय संगीतकार वाजिद खान की पत्नी हूं। विवाह से पहले मैंने और वाजिद ने दस साल एक दूसरे के साथ बिताया था।

मैं पारसी थी और वो मुस्लिम थे। आप हमें कॉलेज स्वीटहार्ट कह सकते हैं। हम दोनों ने स्पेशल मैरिज एक्ट (इस नियम के तहत पति-पत्नी को शादी के बाद भी अपने ही धर्म को मानने करने का अधिकार देता है) के तहत विवाह किया था।

यही वह कारण है जिसकी वजह से वर्तमान में चल रही धर्मांतरण विरोधी बिल की बहस मेरे लिए भी महत्वपूर्ण हो जाती है।

मैं एक अंतर्धार्मिक विवाह के अपने अनुभव आपके साथ इसलिए बांटना चाहती हूं कि मजहब के नाम पर एक औरत को किस तरह भेदभाव, दमन और पूर्वाग्रह का सामना करना पड़ता है। जो धर्म के नाम पर पूरी तरह से शर्म की बात है..... और आंख खोलनेवाली है।

मेरे सामान्य पारसी परिवार का पालन पोषण बहुत लोकतांत्रिक मूल्यों वाला था। वैचारिक स्वतंत्रता को बढावा दिया जाता था और लोकतांत्रिक बहसें सामान्य सी बात थी। हर स्तर पर शिक्षा का महत्व सर्वोपरि होता था। लेकिन मेरी शादी के बाद यही वैचारिक स्वतंत्रता, लोकतांत्रिक जीवन मूल्य और शिक्षा मेरे पति के परिवारवालों के लिए सबसे बड़ी समस्या थी।

एक पढ़ी-लिखी लड़की जो वैचारिक स्वतंत्रता रखती हो, उनके परिवार को कभी भी स्वीकार नहीं थी। इस्लाम कबूल न करने का विरोध तो सबसे अपवित्र कार्य साबित हुआ।

मैं हमेशा सभी धर्मों का सम्मान करती हूं और उनके सभी धार्मिक आयोजनों में शामिल भी होती थी, लेकिन इस्लाम में परिवर्तित ना होने के मेरे प्रतिरोध ने मेरे और मेरे पति के बीच के विभाजन को काफी बढ़ा दिया, जिससे यह हमारे पति और पत्नी के रूप में रिश्ते को नष्ट करने के लिए काफी विषाक्त हो गया, और हमारे बच्चों के लिए एक वर्तमान में पिता बने रहने की उनकी क्षमता।।

मेरी गरिमा और स्वाभिमान मुझे उनके या उनके परिवार के लिए इस्लाम कबूल करने की अनुमति नहीं दे रहा था।

मैं जिन मूल्यों में विश्वास करती हूं उसमें धर्म परिवर्तन के लिए कोई स्थान नहीं है। न ही मैं अपनी 16 वर्षीय बेटी Arshi और 9 वर्षीय बेटे Hrehaan में ये संस्कार डालना चाहती हूं। लेकिन इस भयानक सोचा के विरुद्ध अपनी शादी के बाद के पूरे समय मैंने अपने नख-शिख सहित इसके खिलाफ लड़ाई लड़ी है।

इसका परिणाम ये हुआ कि मुझे मेरे पति के परिवार वालों ने परिवार से बहिष्कृत कर दिया और मेरे खिलाफ एक से एक डरावने तरीके इस्तेमाल किये ताकि मैं इस्लाम कबूल कर लूं। मैं तबाह हो गया थी, लगा जैसे विश्वासघात हुआ और मैं भावनात्मक रूप से खाली हो गई थी, लेकिन मेरे बच्चों और मैंने इसे धैर्य रखा।

वाजिद एक सुपर टैलेन्टेड संगीतकार थे जिन्होंने धुन बनाने के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया था। मेरे बच्चे और मैं उन्हें बहुत याद करते हैं और हम चाहते हैं कि वह एक परिवार के रूप में हमारे लिए अधिक समय समर्पित करते, धार्मिक पूर्वाग्रहों से रहित, जिस तरह से उन्होंने अपनी धुनें बनाई थीं।

हमें उनके और उनके परिवार की धार्मिक कट्टरता के कारण कभी परिवार नहीं मिला। आज उनकी असामयिक मृत्यु के बाद भी उनके परिवार का उत्पीड़न जारी है। मैं अपने बच्चों के अधिकारों और विरासत के लिए लड़ रही हूँ, जो उनके द्वारा बेकार कर दिए गए हैं।

वो लोग मुझसे सिर्फ इसलिए नफरत करते हैं क्योंकि मैंने इस्लाम कबूल करने से मना कर दिया। ये नफरत इतनी गहरी है कि प्रियजन की मौत के बाद भी खत्म नहीं हुई है। दुर्भाग्य से उनकी मृत्यु के बाद भी उनके परिवार की ओर से मेरी प्रताड़ना जारी है।

मैं वास्तव में इस धर्मांतरण विरोधी कानून का राष्ट्रीयकरण चाहती हूँ, मेरे जैसी महिलाओं के लिए संघर्ष को कम करना जो अंतर्धार्मिक विवाह में धर्म की विषाक्तता से लड़ रही हैं।। हमें अपनी जमीन पर खड़े होने के लिए बदनाम किया जाता है।

इस धर्मांतरण चक्र के असली दुश्मन वो लोग हैं जो शुरुआत से ही दूसरे धर्मों के विरुद्ध नफरत फैलाने का अभियान चलाते आए हैं। यह कितना अप्रिय है कि किसी सार्वजनिक स्थान से यह घोषित किया जाए कि किसी का अपना मजहब "एकमात्र सच्चा मजहब" है और किसी का अपना ईश्वर / पैगंबर "एकमात्र सच्चा ईश्वर / पैगंबर" है।

धर्म मतभेदों को दूर करने के जश्न का एक कारण होना चाहिए, ना कि परिवारों को तोड़ने का। धर्मांतरण विरोधी बिल के बारे में यह बहस पितृसत्तात्मक मानसिकता से भी गहरी होनी चाहिए, यह ज्यादातर हमेशा महिलाओं को जबरन धर्म परिवर्तन कराती है। धर्मांतरण अभियान को पहचानना होगा कि यह क्या है - विभिन्न धार्मिक विचारधाराओं के खिलाफ नफरत फैलाना, पत्नियों और बच्चों को उनके पिता से अलग करना।

सभी धर्म परमात्मा का मार्ग हैं। जियो दो और जीने दो एक ही धर्म होना चाहिए जिसका हम सभी अभ्यास करें।

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