डॉक्टरी ज्ञान पर भारी बाइबिल | IMA प्रमुख एक डॉक्टर से अधिक मिशनरी हैं?

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डॉक्टरी ज्ञान पर भारी बाइबिल | IMA  प्रमुख एक डॉक्टर से अधिक मिशनरी हैं?

डॉक्टरी ज्ञान पर भारी बाइबिल | IMA प्रमुख एक डॉक्टर से अधिक मिशनरी हैं?

भारत में एलोपैथी डॉक्टरों का सबसे ताकतवर और नामी एसोसिएशन, जिसका नाम लगभग सभी जानते हैं, वो है 'इंडियन मेडिकल एसोसिएशन'। माना जाता है कि इस संस्था के अध्यक्ष पद पर किसी उच्चकोटि के डॉक्टर का चयन किया जाता है। लेकिन लगता है कि इस बार इस इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने अपना प्रमुख किसी डॉक्टर को ना बना कर किसी 'मजहबी कट्टर ईसाई' को बना दिया है। जिसका मुख्य उद्देश्य है इस संस्था का लाभ गैर-इसाइयों (मुख्यतः हिंदुओं) को ईसाई बनाने के लिए करना है।

उस व्यक्ति का नाम भी आपको जान ही लेना चाहिए, उसका नाम है 'डॉ॰ जे॰ए॰ जयालाल'। इसके नाम में लगे जयालाल से भ्रमित ना हों, क्योंकि इसका पूरा नाम है 'डॉ जॉनरोज ऑस्टिन जयालाल' और ये 'एक डॉक्टर कम एक मजहबी ईसाई अधिक है'

यूं तो ये व्यक्ति एलोपैथी के अनुसार एक सर्जन है, लेकिन इसके क्रिया-कलापों और समय-समय पर दिये इसके कथनों से, ऐसा लगता है कि उसे अपने सर्जरी के औजारों और अपने चिकित्सकीय ज्ञान से अधिक भरोसा अपनी मजहबी किताबों पर है?

हाल ही में केंद्र सरकार द्वारा आयुर्वेद, यूनानी, सिद्ध, होम्योपैथी, योग और प्राकृतिक चिकित्सा जैसी भारतीय चिकित्सा प्रणालियों को पश्चिमी एलोपैथिक उपचार के साथ एकीकृत करने के लिए कदम उठाए गए हैं। डॉ॰ जयालाल, इस फैसले के विरोध में सबसे आगे है। फैसले के विरोध में काही गई उसकी बातों को सुनकर ऐसा लगता है जैसी कि जयालाल को इस फैसले से कुछ निजी/मजहबी परेशानी है। उसके अनुसार उसकी दृष्टि में एलोपैथी और ईसाई धर्म का साथ जनता के स्वास्थ के लिए सर्वश्रेष्ठ है। वह पैदा बेशक भारत में हुआ है लेकिन वह भारतीय संस्कृति और उसकी चिकित्सा प्रणालियों को गहराई से हीन मानता है।

क्रिश्चियनिटी टुडे नामक एक पत्रिका को दिये साक्षात्कार में उसने कहा "वैज्ञानिक प्रमाणों के आधार पर सबसे आम प्रणाली आधुनिक चिकित्सा है। जबकि भारत सरकार, हिंदुत्व में अपने सांस्कृतिक मूल्य और पारंपरिक विश्वास के कारण, आयुर्वेद नामक एक प्रणाली में विश्वास करती है,। आगे उसने कहा "पिछले तीन या चार वर्षों से, उन्होंने आधुनिक चिकित्सा को इसके साथ बदलने की कोशिश की है। अब, आपको आयुर्वेद, यूनानी, सिद्ध, होम्योपैथी, योग और प्राकृतिक चिकित्सा के साथ इसका अध्ययन करना होगा।

इस कट्टर मजहबी कथित डॉक्टर द्वारा साक्षात्कार में कही गई बातों से साफ लगता है कि इसके दिल में हिंदुत्व के प्रति कितनी नफरत है।


उसने कहा "वे इसे एक राष्ट्र, एक चिकित्सा प्रणाली बनाना चाहते हैं। आगे वे इसे एक धर्म बनाना चाहेंगे। वह भी संस्कृत भाषा पर आधारित होगा, जो हमेशा पारंपरिक रूप से हिंदू सिद्धांतों पर आधारित होती है। यह सरकार के लिए लोगों के मन में संस्कृत की भाषा और हिंदुत्व की भाषा को पेश करने का एक अप्रत्यक्ष तरीका है,।

"मैं देख सकता हूं, उत्पीड़न के बीच भी, कठिनाइयों के बीच भी, यहां तक कि सरकार के नियंत्रण के बीच भी, यहां तक कि खुले तौर पर 'सुसमाचार' (बाइबिल का संदेश) की घोषणा (प्रचार) करने में हमारे सामने आने वाली बाधाओं के बीच, विभिन्न तरीकों और मार्गों से, ईसाई धर्म बढ़ रहा है।"

वह अपने मिशन में अटल है। "इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के नेता के रूप में, मुझे सरकार के खिलाफ फाइलिंग जारी रखने की जरूरत है। हमने विभिन्न प्रदर्शनों और विरोध प्रदर्शनों का आयोजन किया है। पिछले 14 दिनों में, मैंने देश भर में भूख हड़ताल की है, और हमारे अधिकांश आधुनिक डॉक्टरों ने भाग लिया है। लेकिन इस समय, मैं इस कठिन समय में क्या करूंगा, इसके बारे में सर्वशक्तिमान ईश्वर से ज्ञान और मार्गदर्शन भी मांग रहा हूं।"

इस मजहबी डॉ. जयालाल की बातों से ऐसा लगता है कि ईसाई धर्म को स्वीकार करना ही एलोपैथी के साथ न्याय एवं समन्वयवाद है, और इससे भी दो कदम आगे बढ़कर वह अपने इस मजहबी पागलपन को अस्पतालों जैसे धर्मनिरपेक्ष स्थानों पर धर्मांतरण के संदिग्ध और अधिक खतरनाक रूप में फैलाना चाहता है? उसके प्रति ये हमारे विचार नहीं है अपितु साक्षात्कार में कही गई उसकी बातें ये ही सिद्ध कर रही हैं।

उसने कहा है "जब मैं एक ईसाई डॉक्टर के रूप में काम करता हूं तो मेरी प्राथमिक चिंता यह सुनिश्चित करना है कि मेरे पास व्यक्ति की मानसिक भलाई और आध्यात्मिक उपचार के बारे में बात करने का समय है। हमें धर्मनिरपेक्ष संस्थानों, मिशन संस्थानों और मेडिकल कॉलेजों में अधिक काम करने के लिए और अधिक ईसाई डॉक्टरों की आवश्यकता है,।"

"मैं एक मेडिकल कॉलेज में सर्जरी के प्रोफेसर के रूप में काम कर रहा हूं, इसलिए यह मेरे लिए वहां ईसाई उपचार के सिद्धांतों को आगे बढ़ाने का एक अच्छा अवसर है। मुझे स्नातकों और प्रशिक्षुओं को सलाह देने का भी सौभाग्य प्राप्त हुआ है।"

डॉ जयालाल ने अपने मजहबी विचारों के आधार पर धर्मनिरपेक्ष, हिंदू, मुस्लिम, सिख, बौद्ध या जैन गैर सरकारी संगठनों के प्रयासों को खारिज करते हुए उसका मानना है, कि यह केवल ईसाई धर्म है जो COVID-19 महामारी के दौरान भारतीय गरीबों के उद्धारकर्ता के रूप में आया है।

उसने क्रिश्चियनिटी टुडे को बताया "बीमार होने वाले अधिकांश लोग मध्यम या शीर्ष सामाजिक आर्थिक स्थिति से थे। निचले स्तर के लोग - हाँ, यह एक समस्या थी, लेकिन अधिकांश समय यह वास्तव में चर्च ही थे जो उनकी देखभाल कर रहे थे। सरकार उनका समर्थन करने के लिए आगे नहीं आई है,"।

जब एक डॉक्टर के चेहरे के पीछे छिपे हुये मजहबी जयालाल के इस साक्षात्कार पर सवाल उठाने लगे तो उसने अपने बचाव में एक विचित्र सा तर्क दिया, जयालाल ने आईएमए जैसी संस्था का दुरुपयोग कराते हुये उसके बैनर के तहत एक विज्ञप्ति में कहा कि उसे साक्षात्कार में संदर्भ से बाहर किया गया था। लेकिन यहाँ बड़ा सवाल ये पैदा होता है कि प्रश्न-उत्तर प्रारूप में प्रकाशित एक साक्षात्कार में किसी को संदर्भ से बाहर कैसे उद्धृत किया जा सकता है? और अगर साक्षात्कार लेने वालों ने अपनी तरफ से ऐसा कुछ प्रकाशित किया जो इसने नहीं कहा तो फिर ये उनके विरुद्ध कोर्ट क्यों नहीं गया। लेकिन इसका उसके पास कोई जबाब नहीं है।

अगर जयालाल ने खुद को एक उत्साही पादरी या एक खोजी प्रचारक होने तक सीमित रखा, तो समस्या सीमित होगी। वह डॉक्टरों के एक बहुत बड़े और सम्मानित संघ का नेतृत्व करता है और अपनी कट्टरता में घुसने के लिए उस महान भूमिका के पीछे छिप जाता है, यह संदिग्ध और समस्याग्रस्त है।

यह प्राचीन और समय-परीक्षणित भारतीय इलाज प्रणालियों के एकीकरण को रोकने के उनके एजेंडे पर भी गंभीर संदेह पैदा करता है, जिनमें से कई योग और आयुर्वेद जैसे दुनिया भर में बेहद लोकप्रिय हैं। इस तरह के पूर्वाग्रह के साथ, किसी को आश्चर्य होता है कि क्या वह हर मरीज का निष्पक्ष इलाज करने के लिए फिट है?

अंत में यहाँ हम 'इंडियन मेडिकल एसोसिएशन' जैसी धर्मनिरपेक्ष संस्था और साथ ही देश की सरकार से ये सवाल करते हैं कि वो किस कारण से अपने आंखो और कानों को बंद करके ऐसे कट्टर मजहबी व्यक्ति को (जिसे किसी चर्च का पादरी होना चाहिए) संस्था के प्रमुख जैसे ज़िम्मेदारी वाले पद पर बनाए हुये है?

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