श्रीराम मंदिर की 67 एकड़ गैर विवादित जमीन लौटाएगी मोदी सरकार, क्या ये कदम विपक्षियों पर पड़ेगा भारी ?
उस समय केंद्र की नरसिंह राव की सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में 67 एकड़ अविवादित भूमि के अधिग्रहण का एफिडेविट दिया था। अब वह एफिडेविट केंद्र की मोदी सरकार वापस लेने की अनुमति मांग रही है। यह भूमि अधिग्रहण केंद्र सरकार ने किया है इसीलिए इस भूमि को रिलीज करने का अधिकार भी केंद्र सरकार का है।
उस समय केंद्र की नरसिंह राव की सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में 67 एकड़ अविवादित भूमि के अधिग्रहण का एफिडेविट दिया था। अब वह एफिडेविट केंद्र की मोदी सरकार वापस लेने की अनुमति मांग रही है। यह भूमि अधिग्रहण केंद्र सरकार ने किया है इसीलिए इस भूमि को रिलीज करने का अधिकार भी केंद्र सरकार का है।
मोदी सरकार ने रामजन्मभूमि की 67 एकड़ अविवादित भूमि रामजन्मभूमि न्यास को सौंपने के लिए आज सुप्रीम कोर्ट में पिटीशन डाला।
रामजन्मभूमि का विवाद मात्र 2.77 एकड़ भूमि पर है जिसके बारे में प्रयागराज उच्च न्यायालय का निर्णय आया था और अब उसका वाद सुप्रीम कोर्ट में लंबित है। विश्व हिंदू परिषद के नेतृत्व वाली राम जन्मभूमि न्यास ने राम जन्मभूमि के आसपास की 67 एकड़ जमीन इस न्यास के लिए विभिन्न मंदिरों, संगठनो, संस्थाओं से दान में मांग लिया था एवं कुछ जमीन को खरीदा भी था। राम जन्मभूमि न्यास ने इस भूमि को श्रीराम जन्मभूमि पर एक विस्तृत मंदिर के निर्माण के लिए ही खरीदा था। उस समय ही श्रीराम जन्मभूमि का उसी अनुरूप नक्शा भी बनाया गया था और तब से ही पत्थरों की नक्काशी का काम भी आरम्भ हो गया था जो आज भी निर्वाध रूप से चल रहा है।
वह 67 एकड़ भूमि केंद्र सरकार ने 1991 में तब चल रहे रामजन्मभूमि आंदोलन के आलोक में अधिग्रहण कर लिया था। सुप्रीम कोर्ट ने 1993 में इस अधिग्रहित भूमि पर यथास्थिति बनाये रखने का आदेश देते हुए कहा था कि केंद्र सरकार यह भूमि किसी भी पक्ष को तब तक न लौटाए जब तक कि इस वाद का निर्णय नहीं आ जाता है। केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से पिटीशन में कहा है कि इस अधिग्रहित भूमि पर कोई विवाद नहीं है। इसीलिए उस पर यथास्थिति बनाये रखने की कोई आवश्यकता नहीं है। अतः उच्चतम न्यायालय अपने 31 मार्च 2003 के यथास्थिति बनाये रखने के अपने आदेश में संसोधन करे या वह आदेश वापस ले और यह भूमि उसके मूल मालिक रामजन्मभूमि न्यास को लौटाने की अनुमति प्रदान करे।
केंद्र ने कहा है कि अयोध्या भूमि अधिग्रहण कानून 1993 के विरुद्ध मुस्लिम पक्ष ने सुप्रीम कोर्ट में अपील किया था जिसमें उन्होंने मात्र 0.313 एकड़ भूमि पर ही अपना अधिकार जताया था। शेष भूमि पर मुस्लिम पक्ष ने कभी अपना दावा नहीं किया है। पिटीशन में कहा गया है कि इस्माईल फारुखी के केस में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था सरकार सिविल सूट पर प्रयागराज उच्च न्यायालय के निर्णय के बाद विवादित भूमि के आसपास की 67 एकड़ भूमि अधिग्रहण के मामले पर विचार किया जा सकता है। केंद्र का कहना है कि प्रयागराज उच्च न्यायालय ने निर्णय दे दिया है और इसके विरुद्ध उच्चतम न्यायालय में वाद लंबित है। गैर-उद्देश्यपूर्ण उद्देश्य के लिए केंद्र सरकार द्वारा भूमि अपने नियंत्रण में रखा जाएगा और मूल मालिकों को अतिरिक्त भूमि वापस कर देना बहत्तर होगा। इस जमीन का कुछ हिस्सा रामजन्मभूमि न्यास को वापस कर देने की अनुमति उच्चतम न्यायालय से मांगी है।
उस समय केंद्र की नरसिंह राव की सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में 67 एकड़ अविवादित भूमि के अधिग्रहण का एफिडेविट दिया था। अब वह एफिडेविट केंद्र की मोदी सरकार वापस लेने की अनुमति मांग रही है। यह भूमि अधिग्रहण केंद्र सरकार ने किया है इसीलिए इस भूमि को रिलीज करने का अधिकार भी केंद्र सरकार का है। चल रहे टाइटिल सूट के आलोक में केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को एफिडेविट दिया था जिस कारण आज इस मामले में सुप्रीम कोर्ट से एफिडेविट वापस मांगना और भूमि रिलीज करने की अनुमति मांगना आवश्यक कानूनी प्रक्रिया है। मोदी सरकार इसी कानूनी प्रक्रिया का अनुपालन करते हुए सुप्रीम कोर्ट गयी है।
Centre moves Supreme Court seeking permission for release of excess vacant land acquired around Ayodhya disputed site and be handed over to Ramjanambhoomi Nyas. Centre seeks direction to release 67 acres acquired land out of which 0.313 acres is disputed land. pic.twitter.com/1rAho51bUJ
— ANI (@ANI) January 29, 2019
ज्ञात हो कि आज 29 जनवरी को ही अयोध्या रामजन्मभूमि विवाद पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होना था। किंतु न्यायमूर्ति एसए बोबड़े के मेडिकल कारणों से उपस्थित न रह पाने के कारण आज होने वाली इस महत्वपूर्ण सुनवाई को टालना पड़ा। सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई के साथ पांच जजों की संविधान पीठ में जस्टिस चंद्रचूड़, जस्टिस अशोक भूषण और अब्दुल नज़ीर शामिल हैं। इससे पहले बनी पांच जजों के बेंच में जस्टिस यू यू ललित शामिल थे किंतु मुस्लिम पक्ष के वकील राजीव धवन ने उनपर प्रश्न उठाया था जिसको एडमिट करते हुए जस्टिस यूयू ललित ने अपने आपको इस संबैधानिक बेंच से बाहर कर लिया था। इसके पश्चात मुख्य न्यायाधीश ने नया पीठ बनाया तो उसमें जस्टिस अब्दुल नज़ीर को शामिल किया गया।
उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने केंद्र सरकार के इस पिटीशन का स्वागत किया है। विश्व हिंदू परिषद द्वारा प्रयागराज कुम्भ में धर्म संसद का आयोजन 31 जनवरी से आरम्भ होना है जिसमें रामजन्मभूमि पर भी विचार होना निश्चित है। साधु संतों के समागम के पूर्व केंद्र सरकार का यह कदम स्वागत योग्य है। केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के द्वारा केस के मामले में टालमटोल की इस नीति पर एक जोरदार दबाब प्रस्तुत कर दिया है। आपको ज्ञात हो कि केंद्र सरकार का यह पिटीशन संबैधानिक बेंच का मामला नहीं है। इसकी सुनवाई तो एक या दो जजों के बेंच द्वारा ही हो जाना तय है। और इस सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट की कोई विशेष भूमिका भी नहीं है। केवल केंद्र का एफिडेविट वापस करना है और अपने पुराने आदेश को मात्र संशोधित करना है या वापस ले लेना है।
पीएम मोदी ने पूर्व में एएनआई को दिए साक्षात्कार में कहा था कि माननीय न्यायालय द्वारा निर्णय आ जाने के बाद केंद्र सरकार की जो जिम्मेदारी होगी वह हम पूर्ण करने के लिए तैयार हैं। उन्होंने यह भी कहा था कि सुप्रीम कोर्ट की प्रक्रिया पूरी होने तक हम इसमें दखल नहीं देंगे। सरकार ने न्याय सम्मत स्टैंड पर कायम रहते हुए एक न्यायपूर्ण मांग सुप्रीम कोर्ट के सामने रख दिया है। "पीएम ने यह भी कहा था कि सुप्रीम कोर्ट में कांग्रेस के वकील मामले को लटकाने के प्रयास में लगे हुए हैं। पीएम ने उनसे अपील किया था कि वो इस मामले को टालने में प्रयासरत न रहें और न्यायालय को शीघ्र निर्णय लेने दें।" किन्तु न्यायालय के रवैये से अब ऐसा लगता है कि न्यायालय का निर्णय संभवतः लोकसभा चुनाव से पूर्व न आ पाए।
किन्तु अधिग्रहित भूमि वापस करने का पिटीशन मोदी सरकार का तुरुप का एक्का है जिसके सामने सारे विरोधी हत्प्रभ हैं। निरुत्तर हैं। मोदी सरकार ने श्रीराम जन्मभूमि के बारे में अपनी नीयत और कमिटमेंट स्पष्ट दिखा दिया है इस पिटीशन के माध्यम से।