केजरीवाल और अलका लांबा के बीच आई दरार : आप से अलका का पत्ता कटा ?

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अलका लंबा और केजरीवाल में बड़ी दूरियाँ

आए दिन ड्रामे मे घिरे रहने वाले अरविंद केजरीवाल एक बार फिर सुर्खियों में है और इस बार उनके सुर्खियों में रहने की वजह है "अपने बेतुके बयानों से सुर्खियों" में रहने वाली आम आदमी पार्टी की विधायक अलका लांबा को ट्विटर से अनफॉलो करना। जी हाँ पिछले कुछ दिनों से केजरीवाल और अलका के बीच चल रही खटपट ने अब बड़ा रूप ले लिया है।

पार्टी (आप) की नेता और चांदनी चौक की विधायक अलका लांबा ने कहा है कि पार्टी का उनके प्रति रवैया चीजों को उनके लिए मुश्किल बना रहा है। साथ ही उन्होंने बताया कि दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने उन्हें ट्विटर पर अनफॉलो कर दिया है और पार्टी नेतृत्व अब उन पर विश्वास नहीं रखता है।

आम आदमी पार्टी ने अलका लांबा पर पिछले साल दिसंबर में असेंबली सेशन के दौरान कथित तौर पर '' गलत जानकारी फैलाने '' के लिए कार्रवाई की थी, जिसमें प्रस्ताव रखा गया था कि पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी को दिए गए भारत रत्न को वापस लिया जाए।

दिल्ली विधानसभा में प्रस्ताव पारित होने के तुरंत बाद अलका लांबा को AAP विधायकों के व्हाट्सएप ग्रुप से हटा दिया गया था। उन्हें टेलीविजन चैनलों पर आम आदमी पार्टी का प्रतिनिधित्व न करने का आदेश भी दिया गया था।

अलका ने कहा कि "मेरे लिए काम करना मुश्किल हो रहा है क्योंकि पार्टी ने मुझे ले कर अब तक अपना रुख साफ नहीं किया है। मैं AAP के लिए काम कर रही हूं और आगे भी करने कि उम्मीद करती हूँ और अन्य विधायकों का सम्मान करती हूं। मुझे जरूरत है कि पार्टी मुझ पर विश्वास रखे लेकिन दिसंबर के बाद से स्थिति बिलकुल विपरीत है।"

पिछले कुछ हफ्तों में, अलका लांबा को उनके निर्वाचन क्षेत्र में कई सार्वजनिक बैठकों में देखा गया है। वह लोकसभा प्रभारी पंकज गुप्ता के साथ मिलकर काम कर रही हैं। अलका ने कहा, "चूंकि मैं व्हाट्सएप ग्रुप का हिस्सा नहीं हूं, इसलिए मुझे किसी भी मुद्दे पर पार्टी की राय जानने या महत्वपूर्ण बैठकों की जानकारी के लिए अन्य विधायकों या अधिकारियों को फोन करना पड़ता है।"

पार्टी की ओर से ये अलगाव पैदा होने का सबसे बड़ा कारण उन अफवाहों को माना जा रहा है जिनमें दावा किया गया है कि लोकसभा चुनाव से पहले अलका लांबा कांग्रेस में शामिल होने वाली है। अफवाहों से इनकार करते हुए, अलका ने कहा कि वह AAP के साथ काम करना चाहती हैं, लेकिन अपने स्वाभिमान की कीमत पर नहीं।

आगे देखने वाली बात यह होगी की कब केजरीवाल दूसरों के किस्सों मे पड़ने की जगह अपनी पार्टी में चल रही आंतरिक कलह को सुलझाएँगे?


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