"हयग्रीव माधव" मंदिर, आसाम

  • whatsapp
  • Telegram
  • koo
Guwahati, sacred Hindu and Buddhist pilgrimage, acred shrine, Manikuta hill, Hindu God Vishnu, Lord Vishnu, Lord Brahma, Buddhists, Dhoparguri Satra, Powa Mecca, Buddha, hayagriva-madhava-temple-situated-in-Hajo-GuwahatiHayagriva Madhava temple situated in Hajo Guwahati

कामरूप के हाजो (Hajo) में मणिपर्वत टीले के ऊपर "हयग्रीव माधव" मंदिर स्थित है। हाजो शहर, गुवाहाटी (Guwahati) के पश्चिम में 30 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।

घोड़े की मुखाकृति के विष्णु के अवतार "हयग्रीव" की यहाँ पूजा होती है। संस्कृत में घोड़े को "हय" और गले को "ग्रीव" कहा जाता है। इसीलिए मंदिर का नाम "हयग्रीव" है।

किंवदंती है कि 'मधु' और 'कैटभ' नामक दो असुरों ने ब्रह्मा से वेदों की चोरी की। ब्रह्मा ने सोये हुए विष्णु को नींद से जगाकर वेदों के उद्धार के लिए अनुरोध किया। तब विष्णु ने हयग्रीव का रूप धारण कर रसातल जाकर वेदों का उद्धार कर ब्रह्मा को सौंप दिया। उसके बाद विष्णु पूर्वोत्तर आकर हयग्रीव रूप में ही सो गए। मधु और कैटभ ने आकर विष्णु को युद्ध के लिए ललकारा। युद्ध में विष्णु ने दोनों असुरों का वध किया।

दशवीं शती में कामरूप में रचित 'कालिका पुराण' के अनुसार इस तीर्थस्थान की प्रतिष्ठा और्वऋषि ने की थी। भगवान विष्णु ने और्वऋषि के तपस्या भंगकारी और भी पाँच असुरों का वध कर हयग्रीव माधव नामक इस पर्वत में ही अवस्थान किया।

यद्यपि यह एक प्राचीन मंदिर है, पर वर्त्तमान का ढाँचा बाद के समय का है। कालापाहार के द्वारा प्राचीन मंदिर को बरबाद करने के बाद कोच राजा रघुदेव ने 1543 में मंदिर का पुनः निर्माण करवाया। किन्हीं इतिहासकारों के अनुसार पाल राजवंशी राजाओं ने छठी शताब्दी में इसका निर्माण करवाया।

आहोम के पूर्णानंद बरगोहाईं के समय कलियभोमोरा बरफुकन की पहली पत्नी शयनी ने कुछ ज़मीन और उसे देख-भाल करने के लिए एक परिवार मंदिर को दान में दिया। मंदिर के अंदर कोच राजा रघुदेव और आहोम राजा प्रमत्त सिंह और कमलेश्वर सिंह का शिलालेख है।

यह मंदिर पत्थर से बना है। इसके दीवार में हाथी की प्रतिमूर्तियों की एक पंक्ति है। इन्हें असमिया स्थापत्य शिल्प का नमूना माना जाता है। पूरे मंदिर का ढाँचा ईट के स्तंभ के ऊपर स्थित है। मंदिर तीन भागों में विभक्त हैं-गर्भगृह,मध्यभाग और शिखर(ऊपर का हिस्सा)। मंदिर का गेट ग्रेनाइट पत्थर का है। शिखर पिरामीड आकार का है। कमरे की दोनों ओर कमल के आकार में बने हुए दो दीवारें हैं।

मंदिर के बाहर विष्णु के दशावतार का वर्णन करते हुए भास्कर बने हुए हैं। इसके अलावा भी बहुत से भास्कर हैं, जिन्हें पहचाना नहीं जा सकता। फिर भी इतना तो तय है कि ज्यादातर पुरुषाकृति और हाथों में त्रिशूल लिए हुए हैं। मूल मंदिर के पास ही आहोम राजा प्रमत्त सिंह द्वारा निर्मित एक अन्य छोटा मंदिर भी है, पास ही 'माधव पोखोरी' नाम से एक पोखर भी है।

इसे बौद्ध धर्मावलंबी लोग भी अपना पवित्र तीर्थस्थान मानते हैं। इस धर्म के लोगों का भी इस मंदिर में आना-जाना लगा रहता है। उन लोगों के अनुसार यही पर बुद्धदेव ने शरीर त्याग या मोक्ष लाभ किया था।

हर साल यहाँ धूम-धाम से दौल उत्सव (होली), बिहू और कृष्ण जन्मोत्सव मनाया जाता है।

--------------

Rajashree Devi
























Tags:    
Share it